भारत की कूटनीति: अमेरिका और रूस के बीच संतुलन साधने की चुनौती

भारत की कूटनीतिक चुनौतियाँ
भारत अब एक महत्वपूर्ण वैश्विक मोड़ पर खड़ा है, जहां उसे संतुलन साधने की कला में माहिर होना पड़ेगा। रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने एशिया में RIC (रूस-भारत-चीन) गठबंधन को पुनर्जीवित करने की कोशिशें तेज कर दी हैं, जिसका उद्देश्य अमेरिका के प्रभाव को चुनौती देना है। दूसरी ओर, अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप की वापसी के बाद भारत-अमेरिका संबंधों में तनाव बढ़ने लगा है, जिससे भारत की विदेश नीति की असली परीक्षा शुरू हो गई है।
पुतिन की नई रणनीति
रूसी राष्ट्रपति पुतिन अमेरिका के खिलाफ एक कूटनीतिक मोर्चा खोलने की योजना बना रहे हैं। उनकी मंशा RIC संवाद को फिर से सक्रिय करना है, जो भारत और चीन को एक मंच पर लाकर एशिया में अमेरिकी प्रभाव को सीमित करने का प्रयास है। हालांकि, भारत-चीन संबंधों की जटिलता इस कदम को चुनौतीपूर्ण बना सकती है।
अमेरिका का बदलता दृष्टिकोण
जो बाइडेन प्रशासन के दौरान भारत-अमेरिका संबंधों में जो गर्मजोशी थी, वह ट्रंप की वापसी के साथ कम होती जा रही है। अमेरिकी वाणिज्य सचिव हावर्ड लटनिक ने हाल ही में भारत की कुछ नीतियों पर असंतोष व्यक्त किया है, जिसमें रूस से सैन्य खरीद और ब्रिक्स में भारत की सक्रियता शामिल हैं। यह भारत के लिए एक स्पष्ट संकेत है कि अमेरिका अब नई दिल्ली के रुख पर ध्यान दे रहा है।
रूस के साथ पुराने रिश्तों को पुनर्जीवित करना
रूस भारत को लुभाने के लिए अपने रणनीतिक हथियार सौदों का सहारा ले रहा है। रिपोर्टों के अनुसार, रूस ने भारत को S-500 मिसाइल डिफेंस सिस्टम की तकनीक ट्रांसफर करने की पेशकश की है। इसके अलावा, SU-57 स्टील्थ फाइटर जेट के सोर्स कोड की पेशकश भी की गई है, जो 'मेक इन इंडिया' के लिए महत्वपूर्ण हो सकता है।
भारत की दोधारी नीति
Quad (भारत, अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया) के साथ भारत की सैन्य साझेदारी बढ़ रही है। अमेरिका के रक्षा मंत्री पीट हेगसेथ ने भारत के साथ गहरे सहयोग की बात की है, जिसमें 'टाइगर ट्रायम्फ' और 'टॉसन सेबर' जैसे सैन्य अभ्यास शामिल हैं।
विश्लेषक की राय
JNU के प्रोफेसर राजन कुमार ने RIC को लेकर रूस की उम्मीदों को 'कोरी कल्पना' बताया है। उन्होंने कहा कि यह वर्तमान भू-राजनीतिक परिदृश्य में प्रासंगिक नहीं है।
बहुध्रुवीय संतुलन की आवश्यकता
भारत आज एक कूटनीतिक चौराहे पर है, जहां उसे Quad की रणनीतिक साझेदारी, रूस के पुराने संबंधों और चीन की आक्रामकता के बीच संतुलन बनाना होगा। यह दशक भारत की विदेश नीति के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण साबित हो सकता है।