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भारत की लोकतांत्रिक स्थिति पर चिंता: वी-डेम रिपोर्ट

हालिया वी-डेम रिपोर्ट में भारत की लोकतांत्रिक स्थिति पर चिंता जताई गई है, जिसमें इसे 'निर्वाचित निरंकुशता' की श्रेणी में रखा गया है। रिपोर्ट के अनुसार, भारत की रैंकिंग में गिरावट आई है, और सरकार का ध्यान काम करने की बजाय प्रोपेगेंडा पर केंद्रित है। भ्रष्टाचार के मामलों में सुधार न होने के कारण सरकार ने एमनेस्टी इंटरनेशनल को बंद कर दिया। इसके अलावा, सरकारी कार्यों की स्थिति भी चिंताजनक है, जहां नारे तो गढ़े जा रहे हैं, लेकिन वास्तविकता में सुधार नहीं दिख रहा है।
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भारत की लोकतांत्रिक स्थिति पर चिंता: वी-डेम रिपोर्ट

भारत की लोकतांत्रिक रैंकिंग में गिरावट

अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं भारत की लोकतंत्र की सेहत को लेकर चिंतित हैं, और उनकी रैंकिंग में लगातार गिरावट देखी जा रही है। वी-डेम की हालिया रिपोर्ट के अनुसार, डेमोक्रेसी इंडेक्स में भारत 179 देशों की सूची में 100वें स्थान पर है। इस रिपोर्ट में भारत को 'निर्वाचित निरंकुशता' की श्रेणी में रखा गया है, जिसे अघोषित इमरजेंसी के रूप में देखा जा रहा है। यह सवाल उठता है कि क्या इस 'निर्वाचित निरंकुशता' के बावजूद भारत में कार्यवाही उसी तरह हो रही है जैसे कि घोषित इमरजेंसी के दौरान होती थी। आंकड़े बताते हैं कि सरकार का ध्यान काम करने की बजाय प्रोपेगेंडा पर केंद्रित है। 'न खाऊंगा, न खाने दूंगा' के नारे के बावजूद, भारत भ्रष्टाचार के वैश्विक इंडेक्स में लगातार नीचे गिरता जा रहा है।


भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्रवाई

जब भारत की भ्रष्टाचार रैंकिंग में सुधार नहीं हुआ, तो सरकार ने रैंकिंग बनाने वाली संस्था एमनेस्टी इंटरनेशनल को बंद करने का निर्णय लिया। इसके खाते सील कर दिए गए और कार्यालयों पर ताले लगवा दिए गए। इसके बावजूद, भ्रष्टाचार के मामलों में भारत की स्थिति में कोई सुधार नहीं आया। ट्रेनों का समय पर चलना अब भी लोगों के लिए एक दुर्लभ अनुभव है। पहले की तुलना में एक बदलाव यह आया है कि अब हर नई ट्रेन को प्रधानमंत्री खुद हरी झंडी दिखाते हैं, जबकि इंदिरा गांधी ऐसा नहीं करती थीं।


सरकारी कार्यों की स्थिति

हाल ही में दिल्ली में एक दिन में 3,433 गड्ढे भरे गए, और मंत्री तथा विधायक इस कार्य की तस्वीरें और वीडियो साझा कर रहे थे। गुजरात में मानसून के दौरान बड़े गड्ढों के कारण अहमदाबाद-मुंबई हाईवे पर लंबा जाम लग गया था। प्रचार में कमी नहीं है; हाल ही में प्रधानमंत्री ने बिहार में 10,000 करोड़ रुपए की परियोजनाओं का उद्घाटन करने का दावा किया, लेकिन बाद में पता चला कि ये सभी सीवरेज और सीवर ट्रीटमेंट प्लांट से संबंधित थीं।


शिक्षा और सरकारी दफ्तरों की स्थिति

स्कूलों और कॉलेजों की स्थिति या सरकारी दफ्तरों के कामकाज की बात करें, तो अधिकांश जगहों पर सब कुछ भगवान भरोसे है। नारे तो बहुत गढ़े गए हैं, जैसे 'न खाऊंगा न खाने दूंगा', 'मेक इन इंडिया', और 'बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ', लेकिन इनका वास्तविक प्रभाव नहीं दिख रहा है। लिंगानुपात में सुधार नहीं हुआ है और महिलाओं के खिलाफ अपराधों पर कोई अंकुश नहीं है। 'मेक इन इंडिया' के तहत भारत में कंपनियां चीन से आए उत्पादों को असेंबल कर बेच रही हैं।