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भारत की विदेश नीति: चुनौतियाँ और अवसर

भारत की विदेश नीति का विश्लेषण करते हुए, यह स्पष्ट होता है कि देश अमेरिका, चीन और रूस के बीच एक महत्वपूर्ण स्थान पर है। प्रधानमंत्री मोदी की कूटनीति और नेहरू के विचारों के बीच का संबंध दर्शाता है कि भारत ने स्वतंत्र निर्णय लेने की क्षमता बनाए रखी है। इस लेख में, हम भारत की विदेश नीति की चुनौतियों और अवसरों पर चर्चा करेंगे, जिसमें आंतरिक और बाहरी सुरक्षा के मुद्दे शामिल हैं। जानें कैसे भारत अपने रणनीतिक विकल्पों को खुला रखता है और भविष्य की दिशा निर्धारित करता है।
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भारत की विदेश नीति: चुनौतियाँ और अवसर

भारत की विदेश नीति का विश्लेषण

भारत अब अमेरिका, चीन और रूस के बीच एक महत्वपूर्ण स्थान पर है। प्रधानमंत्री मोदी इन तीनों देशों के नेताओं के साथ तस्वीरें खिंचवाते हैं, जो भारत की विदेश नीति की वास्तविकता को दर्शाता है। 1947 से 2025 तक के 78 वर्षों में भारत की विदेश नीति में क्या विशेषताएँ हैं जो 140 करोड़ लोगों की सामरिक-सुरक्षा और भू-राजनीतिक आवश्यकताओं को दर्शाती हैं? यह एक गंभीर प्रश्न है। यह स्पष्ट है कि नेहरू से लेकर मोदी तक, भारत की विदेश नीति में यह आग्रह रहा है कि हम स्वतंत्र निर्णय लेने की क्षमता बनाए रखें। हमें किसी एक गुट में नहीं बंधना है, बल्कि अपने रणनीतिक विकल्पों को खुला रखना है।


यह शायद एक सर्वमान्य उत्तर है। इस दृष्टिकोण से, नेहरू और मोदी के विचार एक ही धारा के दो किनारे हैं। इसलिए यह आश्चर्य की बात नहीं है कि संघ परिवार ने हमेशा सोवियत संघ और चीन से दूरी बनाई, लेकिन जब मोदी का हिंदुत्व आया, तो वह भी शी जिनपिंग, पुतिन और ट्रंप के प्रति समान रूप से विनम्रता दिखाते हैं।


इससे यह स्पष्ट होता है कि भारत एक सभ्यतागत देश है। इसका अस्तित्व उसके इतिहास, भूगोल और समाज-संस्कृति से जुड़ा हुआ है। यह हमेशा के लिए, आने वाले पचास-सौ वर्षों में 160-170 करोड़ जनसंख्या के चरम पर भी भारत के अस्तित्व पर प्रश्नचिन्ह लगाएगा। मेरा मानना है कि पृथ्वी पर ऐसा कोई अन्य देश नहीं है जिसकी चिंताएँ भारत जैसी हों।


यदि हम अमेरिका की स्थिति पर विचार करें, तो वह इसलिए चिंतामुक्त है क्योंकि उसके पड़ोस में कोई प्रतिकूल देश नहीं है। अमेरिका का भूगोल और इतिहास भारत की तुलना में कहीं अधिक सुरक्षित है। अमेरिका की राजनीतिक व्यवस्था में मजबूत चेक और बैलेंस हैं, जो नागरिकों को स्वतंत्रता और पूंजीवाद का अनुभव कराते हैं।


चीन की स्थिति भी कुछ इसी तरह है। चीन अपने पड़ोसियों से सुरक्षित है और वहां की सामाजिक व्यवस्था में अनुशासन है। चीन के नागरिक सामूहिकता और राज्य की नैतिकता को सहजता से स्वीकार करते हैं।


रूस की स्थिति भी इसी प्रकार की है। जारशाही से लेकर सोवियत संघ और वर्तमान रूस तक, यह एक सांस्कृतिक निरंतरता में बंधा हुआ है। पश्चिमी यूरोप की स्थिति भी भारत जैसी नहीं है, जहां आंतरिक और बाहरी चुनौतियाँ इतनी अधिक हैं।


अब भारत की स्थिति पर विचार करें। भारत के सामने कई चुनौतियाँ हैं, जैसे कि चीन और पाकिस्तान से सुरक्षा का खतरा और आंतरिक जातीय, भाषाई और धार्मिक विभाजन। यह एक गंभीर स्थिति है।


भारत की विदेश नीति का विश्लेषण करते समय, हमें यह देखना होगा कि पिछले 78 वर्षों में अमेरिका, रूस, चीन और अन्य देशों की नीतियों की तुलना में भारत की स्थिति क्या है। यह स्पष्ट है कि भारत की विदेश नीति अवसरवाद पर आधारित है।


इसलिए, यह आवश्यक है कि भारत अपनी विदेश नीति को मजबूत और संस्थागत बनाए, ताकि वह अपने दुश्मनों के बाजार में न बदल जाए।