भारत की सुरक्षा को मजबूत करने के लिए न्योमा एयरबेस का निर्माण

न्योमा एयरबेस का महत्व
Nyoama Airstrip: भारत के खिलाफ चीन और पाकिस्तान की साजिशें लगातार जारी हैं। ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भी चीन ने पाकिस्तान का साथ दिया था। इसी बीच, बांग्लादेश भी भारत को धमकी दे रहा है और चीन से निवेश की मांग कर रहा है। इन घटनाक्रमों को देखते हुए, नई दिल्ली ने वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) के निकट बुनियादी ढांचे को सुधारने का कार्य शुरू कर दिया है।
इस प्रयास के तहत, चीन की सीमा से सटे क्षेत्र में चौथी हवाई पट्टी का निर्माण जल्द ही पूरा हो जाएगा। यह हवाई पट्टी अक्टूबर 2023 से परिचालन के लिए तैयार हो जाएगी, जिससे राफेल और सुखोई 30KI जैसे अत्याधुनिक लड़ाकू विमानों की लैंडिंग संभव होगी।
यह भारत के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है, क्योंकि लेह-लद्दाख से लेकर अरुणाचल प्रदेश तक चीन समय-समय पर अजीबोगरीब दावे करता रहता है। इसके अलावा, चीन अपने सीमावर्ती क्षेत्रों में बुनियादी ढांचे को लगातार मजबूत कर रहा है, इसलिए भारत को भी इस दिशा में कदम उठाना आवश्यक है।
न्योमा एयरबेस की विशेषताएँ
न्योमा एयरबेस की अहमियत
एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, सीमा सड़क संगठन (BRO) के महानिदेशक लेफ्टिनेंट जनरल रघु श्रीनिवासन ने बताया कि पिछले वर्ष पूर्वी लद्दाख के न्योमा में कच्ची धूल भरी पट्टी को पक्के रनवे में परिवर्तित किया गया था। शेष कार्य अक्टूबर 2025 तक पूरा होने की योजना है। यह एयरबेस वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) से केवल 30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है और इसकी ऊंचाई समुद्र तल से लगभग 13,700 फीट है, जहां सर्दियों में तापमान -20 डिग्री सेल्सियस तक गिर सकता है। इसलिए, यहां का निर्माण कार्य ठंड के मौसम के अनुकूल किया जा रहा है।
लद्दाख के न्योमा में बन रहा यह रणनीतिक एयरबेस अक्टूबर 2023 तक तैयार हो जाएगा, और अगले पांच वर्षों में हिमालयी क्षेत्र में भारतीय सेना की सभी अग्रिम चौकियों तक सड़क संपर्क स्थापित करने का लक्ष्य है।
लद्दाख में वायुसेना की बढ़ती ताकत
लद्दाख में बढ़ती वायुसेना की ताकत
न्योमा एयरबेस से विमानों के उड़ान भरने और उतरने के साथ-साथ छोटे मरम्मत कार्य भी संभव होंगे। इसके अलावा, यहां भारतीय वायुसेना के जवानों के लिए रडार स्टेशन और आवास सुविधाएं विकसित की जा रही हैं। इस एयरबेस के सक्रिय होने के बाद, यह लद्दाख में भारतीय वायुसेना का चौथा सक्रिय बेस बन जाएगा।
आपको यह जानकर खुशी होगी कि लेह, कारगिल और सियाचिन में पहले से ही हवाई पट्टियाँ मौजूद हैं, जबकि दौलत बेग ओल्डी (DBO) जैसे क्षेत्रों में सीमित सुविधाएं हैं।
वर्तमान में, सेना के जवानों को लद्दाख और उत्तर-पूर्व के कई दुर्गम क्षेत्रों में पैदल पहुंचना पड़ता है, लेकिन अब इन सभी अग्रिम चौकियों को सड़क नेटवर्क से जोड़ा जा रहा है।