Newzfatafatlogo

भारत की हिप्पोक्रेसी: क्रिकेट और राजनीति का संगम

इस लेख में भारत की क्रिकेट हिप्पोक्रेसी और राजनीतिक नैरेटिव के बीच के संबंधों की गहराई से चर्चा की गई है। क्या भारतीय क्रिकेट टीम ने अपने खेल को राजनीति में बदल दिया है? जानें कैसे पाकिस्तान के साथ खेलते समय भारतीय खिलाड़ियों ने दोहरे मानदंड अपनाए और क्या यह हिप्पोक्रेसी केवल क्रिकेट तक सीमित है। इस लेख में उन सवालों का उत्तर दिया गया है जो इस मुद्दे को और भी जटिल बनाते हैं।
 | 
भारत की हिप्पोक्रेसी: क्रिकेट और राजनीति का संगम

भारत की पहचान: हिप्पोक्रेसी

आजकल टेलीविजन पर होने वाले इंटरव्यू में रैपिड फायर राउंड का चलन बढ़ गया है, जिसमें किसी व्यक्ति या घटना को एक शब्द में परिभाषित करने के लिए कहा जाता है। यदि भारत और इसके 140 करोड़ लोगों को एक शब्द में व्यक्त करने को कहा जाए, तो हर कोई अलग-अलग शब्द चुन सकता है। लेकिन मेरे लिए वह शब्द होगा 'हिप्पोक्रेसी'! दरअसल, यह दोहरा चरित्र भारतीयों की पहचान बन चुका है। यह कोई नई बात नहीं है, बल्कि प्राचीन काल से चली आ रही है। हमारे सामाजिक व्यवहार से लेकर धार्मिक मान्यताओं तक, हर जगह इस दोहरेपन का प्रमाण मिलता है। हाल के घटनाक्रमों में, जैसे पहलगाम कांड और पाकिस्तान के साथ क्रिकेट मैचों की श्रृंखला, इस हिप्पोक्रेसी को स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है।


क्रिकेट और हिप्पोक्रेसी का खेल

'पानी और खून एक साथ नहीं बह सकता' और 'गोली व वार्ता साथ नहीं चल सकती' जैसे बयानों से लेकर आमने-सामने के मैच खेलने तक, यह हिप्पोक्रेसी स्पष्ट है। यह केवल भारतीय क्रिकेट टीम या क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड की नहीं, बल्कि आम नागरिकों की भी है। जब पाकिस्तान के साथ मैच की घोषणा हुई, तो कई लोगों ने विरोध किया और पहले मैच में नहीं गए। लेकिन बाद में वे सभी मैच देखने लगे। आखिर 14 दिनों में क्या बदल गया? क्या पाकिस्तान ने अपनी नीतियों में बदलाव किया? क्या उसने आतंकवाद के ठिकानों को बंद कर दिया?


पाकिस्तान के साथ खेलना: एक दुविधा

इन सवालों का जवाब नकारात्मक है। उल्टे, इन 14 दिनों में पाकिस्तान का भारत विरोध और भी बढ़ गया। मैच के दौरान पाकिस्तानी खिलाड़ियों ने भारत के खिलाफ अपमानजनक इशारे किए। ऐसे खिलाड़ियों के साथ खेलना क्या मजबूरी थी? इस दौरान पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ने भारत को दुश्मन बताया, जबकि भारतीय क्रिकेट टीम पाकिस्तान के साथ मैच खेलने की तैयारी कर रही थी।


ट्रॉफी का विवाद

फाइनल मैच जीतने के बाद भारतीय टीम ने पाकिस्तानी क्रिकेट बोर्ड के अध्यक्ष से ट्रॉफी लेने से इनकार कर दिया। यह हिप्पोक्रेसी की एक और मिसाल है। मोहसिन नकवी, जो पाकिस्तान के गृह मंत्री हैं, के हाथों ट्रॉफी लेने से एतराज है, लेकिन उनके साथ खेलना मंजूर है। यह दोहरे मानदंडों का स्पष्ट उदाहरण है।


राजनीतिक नैरेटिव का खेल

इस टूर्नामेंट के दौरान भारतीय क्रिकेट टीम का रवैया निराशाजनक रहा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इस खेल को राजनीतिक रंग देने की कोशिश की। उन्होंने क्रिकेट को युद्ध से जोड़ते हुए एक पोस्ट लिखा। अगर भारतीय टीम हार जाती, तो क्या पाकिस्तान को यह कहने का मौका नहीं मिलता कि खेल के मैदान में भी वही नतीजा होता?


आर्थिक मदद का सवाल

पहले मैच में भारतीय कप्तान ने जीत पहलगाम के पीड़ितों को समर्पित की, लेकिन हारने पर क्या होता? क्या सिर्फ जीत को ही समर्पित करना उचित है? एशिया कप में भारत ने बड़ी कमाई की है, क्या उस राशि को पहलगाम के पीड़ितों के परिवारों को नहीं दिया जा सकता? अगर आतंकवाद के शिकार लोगों के प्रति थोड़ी भी सहानुभूति होती, तो भारतीय टीम इस टूर्नामेंट में भाग नहीं लेती।