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भारत के एमएसएमई पर अमेरिकी आयात शुल्क का प्रभाव और नए बाजारों की संभावनाएं

अमेरिका द्वारा भारतीय सामानों पर आयात शुल्क बढ़ाने की योजना से देश के सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (एमएसएमई) में चिंता बढ़ गई है। इस चुनौती का सामना करने के लिए भारत नए बाजारों की खोज कर रहा है, विशेषकर यूके में हालिया मुक्त व्यापार समझौते के चलते। रिपोर्ट के अनुसार, एमएसएमई क्षेत्र को अमेरिकी टैरिफ से सबसे अधिक नुकसान होगा, खासकर कपड़ा और आभूषण उद्योगों में। जानें इस स्थिति का एमएसएमई पर क्या प्रभाव पड़ेगा और राहत के संभावित रास्ते क्या हैं।
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अमेरिकी आयात शुल्क में वृद्धि से चिंतित एमएसएमई

भारत के सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (एमएसएमई) इस समय एक नई चुनौती का सामना कर रहे हैं, क्योंकि अमेरिका भारतीय उत्पादों पर आयात शुल्क बढ़ाने की योजना बना रहा है। इस स्थिति से निपटने के लिए भारत अब नए रणनीतिक विकल्पों पर विचार कर रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि सरकार और उद्योग का ध्यान नए बाजारों की ओर बढ़ रहा है, विशेषकर यूके जैसे देशों पर, जहां हाल ही में मुक्त व्यापार समझौता (FTA) हुआ है।


क्रिसिल इंटेलिजेंस द्वारा जारी एक रिपोर्ट के अनुसार, एमएसएमई क्षेत्र, जो भारत के कुल निर्यात में लगभग 45% का योगदान देता है, अमेरिकी टैरिफ से सबसे अधिक प्रभावित होगा। वर्तमान में, अमेरिका पहले से ही भारतीय उत्पादों पर 25% शुल्क लगा चुका है और 27 अगस्त से इसे 25% और बढ़ाने की योजना है, जिससे कुल शुल्क 50% तक पहुंच सकता है।


रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि कपड़ा, समुद्री खाद्य पदार्थ, और आभूषण जैसे उद्योगों पर इस टैरिफ का सबसे अधिक प्रभाव पड़ेगा। अमेरिका को भारत के इन क्षेत्रों से होने वाले निर्यात का 25% हिस्सा प्राप्त होता है, और इनमें से अधिकांश उत्पादन छोटे और मध्यम उद्योगों द्वारा किया जाता है। उदाहरण के लिए, हीरा उद्योग में सूरत स्थित एमएसएमई की हिस्सेदारी 80% से अधिक है।


एमएसएमई पहले से ही कम लाभ पर काम कर रहे हैं, और बढ़ती लागत उनके लिए एक बड़ी चुनौती बन सकती है। क्रिसिल के निदेशक पुशन शर्मा के अनुसार, उन्हें लागत का एक हिस्सा खुद उठाना पड़ेगा, जिससे उनकी प्रतिस्पर्धा पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।


हालांकि, भारत-यूके मुक्त व्यापार समझौता एमएसएमई के लिए एक सकारात्मक संकेत बनकर उभरा है। क्रिसिल इंटेलिजेंस की एसोसिएट डायरेक्टर एलिजाबेथ मास्टर का कहना है कि यह समझौता विशेष रूप से कपड़ा, आभूषण, समुद्री उत्पाद, चमड़ा और दवा उद्योग के लिए फायदेमंद हो सकता है।


हालांकि, ऑटो पार्ट्स और फार्मास्यूटिकल उत्पादों को इस टैरिफ से कुछ राहत मिल सकती है, क्योंकि अमेरिका में इनका योगदान सीमित है।