भारत के तेल आयात में रूस की प्रमुखता: आर्थिक और कूटनीतिक लाभ

रूस का कच्चा तेल: भारत के लिए प्राथमिक विकल्प
वित्तीय वर्ष 2025 की दूसरी छमाही में, रूस ने भारत के समुद्री कच्चे तेल आयात में अपनी प्रमुखता बनाए रखी है। गहरी छूट, संचालन में सरलता और मजबूत कूटनीतिक संबंधों के चलते, रूस की बाजार हिस्सेदारी एक तिहाई से अधिक बनी हुई है.
आकर्षक आर्थिक लाभ
रूस द्वारा दी जाने वाली आर्थिक सुविधाएं और भू-राजनीतिक लचीलापन भारतीय रिफाइनरियों के लिए रूसी तेल को प्राथमिकता बनाते हैं। केपलर के विशेषज्ञ सुमित रितोलिया ने बताया, "रूस लगातार कच्चे तेल पर छूट प्रदान करता है... ये आर्थिक लाभ, संचालन की सरलता और भू-राजनीतिक लचीलापन रूसी तेल को भारतीय रिफाइनरियों के लिए एक आकर्षक विकल्प बनाते हैं."
सप्लाई चेन में स्थिरता
रूस की यह रणनीति न केवल भारत के तेल आयात की लागत को कम करती है, बल्कि आपूर्ति श्रृंखला में स्थिरता भी सुनिश्चित करती है। भारत, जो अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं के लिए आयात पर निर्भर है, रूस के साथ अपने व्यापारिक संबंधों को और मजबूत कर रहा है.
कूटनीतिक संबंधों का महत्व
रूस और भारत के बीच गहरे कूटनीतिक रिश्तों ने तेल व्यापार को और बढ़ावा दिया है। रूस की छूट नीति ने अन्य आपूर्तिकर्ताओं, जैसे सऊदी अरब और इराक, को पीछे छोड़ दिया है। यह स्थिति भारत के लिए ऊर्जा सुरक्षा को बढ़ाने में महत्वपूर्ण साबित हो रही है.
भविष्य की संभावनाएं
विश्लेषकों का मानना है कि रूस की यह मजबूत स्थिति निकट भविष्य में भी बनी रहेगी, क्योंकि भारत अपनी ऊर्जा मांग को पूरा करने के लिए लागत प्रभावी और विश्वसनीय स्रोतों की तलाश में है। रूस का तेल बाजार में दबदबा भारत के लिए आर्थिक और रणनीतिक दोनों दृष्टिकोण से लाभकारी है.
भारत की ऊर्जा नीति में रूस की भूमिका
रूस का बढ़ता प्रभाव भारत की ऊर्जा नीति में एक महत्वपूर्ण बदलाव का संकेत देता है। यह साझेदारी न केवल तेल आयात तक सीमित है, बल्कि दोनों देशों के बीच व्यापक आर्थिक सहयोग का आधार भी बन रही है.