भारत के राष्ट्रगान और राष्ट्रगीत: प्रेरक कहानियाँ और लेखकों का योगदान

भारत के राष्ट्रीय गीतों की प्रेरक कहानियाँ
Independence Day: जब भी 15 अगस्त, 26 जनवरी या अन्य राष्ट्रीय पर्व पर 'जन गण मन' गूंजता है, तब हर भारतीय का दिल गर्व से भर जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि हमारे राष्ट्रगान और राष्ट्रगीत के पीछे की कहानी क्या है? किसने इन गीतों को लिखा और इन्हें राष्ट्र का सम्मान कैसे मिला? भारत की स्वतंत्रता केवल हथियारों से नहीं मिली, बल्कि यह एक ऐसी क्रांति थी जिसमें शब्दों ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इनमें 'जन गण मन' और 'वंदे मातरम' शामिल हैं। आइए जानते हैं कि इन गीतों के लेखकों और उनकी प्रेरणादायक कहानियों के बारे में।
राष्ट्रगीत 'वंदे मातरम' का लेखक
राष्ट्रगीत 'वंदे मातरम' को बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय ने लिखा था। यह गीत उन्होंने 1870 के दशक में लिखा और 1882 में अपने उपन्यास 'आनंदमठ' में प्रकाशित किया। यह एक क्रांतिकारी गीत है, जिसे एक ऐसे व्यक्ति ने लिखा जो स्वयं ब्रिटिश अधिकारी थे, लेकिन भारतीयों पर हो रहे अत्याचारों ने उन्हें अपनी मातृभूमि के प्रति प्रेम जगाया। 'वंदे मातरम' का अर्थ है 'माँ को नमन'।
इस गीत की धुन रवींद्रनाथ टैगोर ने बनाई थी। इसे 1950 में राष्ट्रीय गीत का दर्जा दिया गया। हालांकि, इसे सबसे पहले 1896 में सार्वजनिक रूप से गाया गया था, जब भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (INC) ने इसे कलकत्ता में गाया था।
कैसे बना राष्ट्रगान 'जन गण मन'?
भारत का राष्ट्रगान 'जन गण मन' ऐसा गीत है जो देश की पवित्र भूमि और विभिन्न क्षेत्रों का वर्णन करता है। इसे रवींद्रनाथ टैगोर ने लिखा था और इसका निर्माण 1911 में हुआ। इसे पहली बार 27 दिसंबर 1911 को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में गाया गया। उस समय यह गीत विवादों में भी रहा, क्योंकि कुछ लोगों ने इसे अंग्रेजी सम्राट जॉर्ज पंचम की प्रशंसा में गाया गया समझा, जबकि टैगोर ने इसे भारत की जन शक्ति और आत्मा को समर्पित किया था। इसे 1950 में राष्ट्रगान का दर्जा मिला। यह 52 सेकंड का संगीत है और इसे सरला देवी चौधुरानी ने गाया था।
स्कूलों और सरकारी दफ्तरों में गूंजते हैं ये गीत
भारत में 'जन गण मन' और 'वंदे मातरम' हर राष्ट्रीय उत्सव पर गाए जाते हैं। सभी स्कूलों में प्रार्थना के बाद राष्ट्रगान गाया जाता है, जो बच्चों में देशभक्ति की भावना को जागृत करता है। सरकारी और सार्वजनिक कार्यक्रमों की शुरुआत और अंत राष्ट्रगान के साथ होता है। खेल, सांस्कृतिक, और राजनीतिक कार्यक्रमों में भी इन गीतों को प्राथमिकता दी जाती है। संसद सत्रों की शुरुआत भी राष्ट्रगान से होती है, जिससे सभी सांसदों में एकता की भावना बनी रहती है।