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भारत के रूस में फंसे 1.4 अरब डॉलर: ऊर्जा सुरक्षा की चुनौती

भारत ने पिछले दो दशकों में रूस में ऊर्जा सुरक्षा के लिए बड़े पैमाने पर निवेश किया है, लेकिन वर्तमान में 1.4 अरब डॉलर की राशि युद्ध और अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों के कारण फंसी हुई है। भारतीय कंपनियाँ इस राशि को वापस लाने के लिए विभिन्न विकल्पों की तलाश कर रही हैं, लेकिन कानूनी और तकनीकी बाधाएँ उनके प्रयासों को जटिल बना रही हैं। जानें इस मुद्दे की पूरी कहानी और इसके संभावित समाधान।
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भारत के रूस में फंसे 1.4 अरब डॉलर: ऊर्जा सुरक्षा की चुनौती

भारत का निवेश और वर्तमान स्थिति

भारत ने पिछले 20 वर्षों में ऊर्जा सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए रूस की कई महत्वपूर्ण तेल और गैस परियोजनाओं में भारी निवेश किया है। हालांकि, इन निवेशों से मिलने वाला लाभ सुरक्षित है, लेकिन पिछले तीन वर्षों से कंपनियां इस राशि को देश में वापस लाने में असमर्थ हैं। युद्ध और अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों के कारण पेमेंट चैनल में बाधाएं इस समस्या का मुख्य कारण बन गई हैं।


सूत्रों के अनुसार, भारतीय सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों ने रूस की विभिन्न परियोजनाओं में 6 अरब डॉलर से अधिक का निवेश किया है। इसमें ओएनजीसी विदेश (OVL) की सबसे बड़ी हिस्सेदारी है, जो सखालिन-1 और वेंकोर परियोजनाओं में शामिल है। OVL का लगभग 400 मिलियन डॉलर का लाभ रूस में फंसा हुआ है।


अन्य कंपनियों का योगदान

ये कंपनियां भी शामिल


इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन (IOC), ऑयल इंडिया (OIL) और भारत पेट्रोलियम की सहायक कंपनी बीपीआरएल का कंसोर्टियम भी लगभग 1 अरब डॉलर का निवेश कर चुका है। यह निवेश भारत की ऊर्जा आवश्यकताओं को सुरक्षित करने की रणनीति का हिस्सा है, लेकिन वर्तमान परिस्थितियों ने इसे चुनौतीपूर्ण बना दिया है।


रूस-यूक्रेन युद्ध का प्रभाव

रूस-यूक्रेन युद्ध और पेमेंट चैनल की रुकावट


फरवरी 2022 में रूस-यूक्रेन युद्ध के आरंभ होने के बाद स्थिति और जटिल हो गई। कई प्रमुख रूसी बैंकों को SWIFT प्रणाली से बाहर कर दिया गया, जिससे उनकी अंतरराष्ट्रीय भुगतान क्षमता पर गंभीर प्रभाव पड़ा। इसके अतिरिक्त, रूस ने अमेरिकी डॉलर की निकासी पर रोक लगा दी है।


भारतीय कंपनियों का लाभ अब मॉस्को स्थित कमर्शियल इंडो बैंक लिमिटेड (CIBL) में जमा है, जो स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की सहयोगी है। यह राशि रूबल में है, लेकिन इसे भारत लाना या किसी अन्य तरीके से उपयोग करना संभव नहीं हो रहा है।


विकल्पों की खोज

देश के भीतर विकल्प तलाशने की कोशिश


कंपनियों और सरकार ने इस राशि को रूस में ही उपयोग करने का प्रयास किया है, जैसे नई परियोजनाओं में निवेश करना या मौजूदा परियोजनाओं पर खर्च करना। लेकिन समस्या यह है कि अधिकांश परियोजनाएं अब अपने बड़े पूंजीगत खर्च के दौर से गुजर चुकी हैं, और नए भारी निवेश की संभावना नहीं है।


एकमात्र अपवाद OVL का मामला है, जिसे सखालिन-1 परियोजना में हिस्सेदारी बनाए रखने के लिए लगभग 600 मिलियन डॉलर का भुगतान करना है। कंपनी चाहती है कि यह फंसी हुई राशि उसके भुगतान में मदद करे, लेकिन डॉलर भुगतान से जुड़ी जटिलताओं के कारण मामला अटका हुआ है।


तेल भुगतान की जटिलताएँ

तेल भुगतान से जोड़ने की जटिलता


सबसे सरल विकल्प यह हो सकता था कि रूस से आयातित तेल की भुगतान इसी लाभ से की जाए। लेकिन इसमें भी कई कानूनी और तकनीकी बाधाएं हैं। IOC और BPCL रूस से तेल खरीदते हैं, लेकिन OVL और OIL ऐसा नहीं करते। इसके अलावा, ये निवेश विशेष प्रयोजन वाहनों (SPVs) के माध्यम से किए गए थे, जो सिंगापुर जैसे देशों में पंजीकृत हैं। यदि इस राशि का उपयोग तेल भुगतान के लिए किया जाता है, तो यह केवल भारत और रूस ही नहीं, बल्कि तीसरे देशों के अधिकार क्षेत्र में भी आ जाएगा। पश्चिमी देशों के कड़े प्रतिबंधों के बीच यह रास्ता बेहद पेचीदा हो जाता है।


भविष्य की संभावनाएँ

क्या है आगे का रास्ता?


यह मामला लगातार भारत और रूस की सरकारों के बीच चर्चा में है, लेकिन कोई ठोस समाधान निकलना आसान नहीं है। विशेषज्ञों का मानना है कि जब तक रूस-यूक्रेन युद्ध समाप्त नहीं होता और पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों में ढील नहीं आती, तब तक इस राशि को भारत लाना लगभग असंभव है। भारतीय कंपनियाँ अब अंतरराष्ट्रीय अकाउंटिंग और कानूनी विशेषज्ञों की मदद ले रही हैं ताकि कोई वैकल्पिक रास्ता निकाला जा सके। लेकिन सच यह है कि फिलहाल इस 1.4 अरब डॉलर की राशि का उपयोग भारत के बाहर नहीं किया जा सकता।