भारत के लिए ब्रिक्स समिट का महत्व: पीएम मोदी की यात्रा

ब्रिक्स समिट का महत्व
प्रधानमंत्री मोदी अपनी पांच देशों की यात्रा के चौथे चरण में पहुंच चुके हैं। घाना और त्रिनिदाद एवं टोबैगो के बाद, उन्होंने अर्जेंटीना का दौरा किया और अब ब्राजील में हैं। यह यात्रा राष्ट्रपति लुईस इनासियो लूला दा सिल्वा के निमंत्रण पर हो रही है। यह पिछले 60 वर्षों में किसी भारतीय प्रधानमंत्री की पहली यात्रा है। पीएम मोदी ने ब्राजील में चौथी बार कदम रखा है।
समिट में भागीदारी
रियो डी जेनेरियो के गैलेओ इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर उनका स्वागत किया गया। पीएम मोदी आज और कल 17वें ब्रिक्स समिट में भाग लेंगे। इस समिट में भारत, ब्राजील, चीन, रूस, इंडोनेशिया, ईरान, इजिप्ट, UAE, सऊदी अरब, दक्षिण अफ्रीका और इथोपिया जैसे 11 सदस्य देश शामिल हैं। 8 और 9 जुलाई को, वे ब्राजील की आधिकारिक यात्रा पर रहेंगे और ब्रासीलिया में राष्ट्रपति सिल्वा के साथ द्विपक्षीय वार्ता करेंगे।
अंतरराष्ट्रीय पहचान के लिए समिट की आवश्यकता
प्रधानमंत्री मोदी की ब्रिक्स समिट में भागीदारी भारत की वैश्विक कूटनीति और आर्थिक रणनीति के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। उनकी उपस्थिति भारत की बढ़ती भूमिका, आर्थिक सहयोग, कूटनीतिक संतुलन और वैश्विक शांति के प्रति प्रतिबद्धता को दर्शाती है।
भारत में अगली समिट की मेज़बानी
समिट में पीएम मोदी की उपस्थिति इसलिए भी आवश्यक है ताकि भारत में अगली ब्रिक्स समिट कराने की प्रतिबद्धता दिखाई जा सके। उनकी उपस्थिति सदस्य देशों को विश्वास दिलाती है कि भारत इस समिट की मेज़बानी करने में सक्षम है।
द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करना
प्रधानमंत्री मोदी का ब्रिक्स समिट में जाने का मुख्य उद्देश्य दक्षिणी देशों के साथ संबंधों को मजबूत करना है। यह समिट भारत को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी स्थिति को और मजबूत करने का अवसर प्रदान करता है।
आर्थिक सहयोग को बढ़ावा
ब्रिक्स समिट में भाग लेने से भारत की आर्थिक कूटनीति को मजबूती मिलती है। UPI ट्रांजेक्शन इसी समिट का परिणाम है। यह समिट स्थानीय मुद्रा में व्यापार करने की संभावनाओं को बढ़ाता है और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर डॉलर पर निर्भरता को कम करने की दिशा में एक कदम है।
कूटनीतिक संतुलन बनाए रखना
भारत ब्रिक्स और क्वाड समिट में अपनी उपस्थिति दर्ज कराना चाहता है ताकि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कूटनीतिक संतुलन बना रहे। पीएम मोदी यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि ब्रिक्स पश्चिम-विरोधी गुटों या चीन-रूस के दबदबे वाला मंच न बने।