भारत, चीन और रूस के बीच एससीओ समिट में नई रणनीतिक साझेदारी

अंतरराष्ट्रीय राजनीति में हलचल
चीन में आयोजित शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) समिट के दौरान, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की व्यापार नीतियों और भारत के प्रति उनके नकारात्मक दृष्टिकोण के बीच, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की मुलाकात ने वैश्विक राजनीति में नई हलचल पैदा की है। इस बैठक को विभिन्न दृष्टिकोणों से देखा जा रहा है। इस बीच, विश्लेषक एड प्राइस का एक बयान सामने आया है, जिसने अंतरराष्ट्रीय राजनीति में और भी हलचल मचा दी है.
भारत और अमेरिका के रिश्तों में तनाव
एड प्राइस ने कहा है कि 'यदि भारत, चीन और रूस किसी भी प्रकार के गठबंधन में एकजुट होते हैं, तो अमेरिका 21वीं सदी में प्रतिस्पर्धा नहीं कर पाएगा। हमें तो घर लौट जाना ही बेहतर होगा।' यह सामरिक सहयोग पश्चिमी प्रभाव को संतुलित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।
डोनाल्ड ट्रंप के कार्यकाल में भारत और अमेरिका के रिश्ते तनावपूर्ण हो गए हैं। विशेष रूप से, ट्रंप की व्यापार नीतियों और उनके सलाहकारों के विवादास्पद बयानों ने नई दिल्ली को असहज कर दिया है। ऐसे में, प्रधानमंत्री मोदी का चीन दौरा और वहां पुतिन और शी जिनपिंग से मुलाकात, वैश्विक समीकरणों को नया आयाम देने वाला कदम हो सकता है।
ट्रंप प्रशासन ने भारत सहित कई देशों पर अतिरिक्त टैरिफ लगाकर वैश्विक व्यापार संतुलन को चुनौती दी है। स्टील, एल्युमिनियम और टेक्नोलॉजी सेक्टर में अमेरिकी नीतियों ने साझेदार देशों को प्रभावित किया है। यही कारण है कि भारत को न केवल आर्थिक दबाव का सामना करना पड़ रहा है, बल्कि अमेरिका से जुड़ी कूटनीतिक समस्याओं का भी सामना करना पड़ रहा है।
एससीओ समिट में नई रणनीति
तियानजिन में आयोजित एससीओ सम्मेलन भारत के लिए विशेष महत्व रखता है, क्योंकि यह मोदी का सात साल बाद चीन दौरा है। इस समिट के दौरान मोदी, शी और पुतिन की मुलाकात को 'गेम चेंजर' माना जा रहा है। यह बातचीत केवल कूटनीतिक औपचारिकता नहीं, बल्कि भविष्य की आर्थिक और रणनीतिक साझेदारी की नींव रखती है।
सामरिक संतुलन की कोशिश
भारत, चीन और रूस का एक मंच पर आना पश्चिमी देशों के लिए सीधी चुनौती है। इन देशों का उद्देश्य न केवल अमेरिकी टैरिफ नीतियों के प्रभाव को कम करना है, बल्कि ऊर्जा, सुरक्षा और निवेश के क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाना भी है। इससे 'रिक' (Russia-India-China) समूह को एक नया रूप मिल सकता है, जो अंतरराष्ट्रीय शक्ति संतुलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
भविष्य की राह
हालांकि भारत और चीन के बीच सीमा विवाद और अन्य मतभेद मौजूद हैं, लेकिन वैश्विक दबाव और आर्थिक चुनौतियां दोनों को एक-दूसरे के करीब ला सकती हैं। रूस पहले से ही पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों का सामना कर रहा है, और भारत-चीन के साथ जुड़ाव उसे बड़ी राहत दे सकता है। आने वाले समय में यह त्रिकोणीय सहयोग वैश्विक कूटनीति में अमेरिका की नीतियों के लिए एक बड़ी परीक्षा साबित हो सकता है।