भारत-चीन संबंधों का ऐतिहासिक सफर: उतार-चढ़ाव और बदलाव

भारत-चीन संबंधों का इतिहास
भारत-चीन संबंध: भारत और चीन के बीच के रिश्ते हमेशा से जटिल रहे हैं। आजादी के बाद से लेकर वर्तमान समय तक, हर प्रधानमंत्री के कार्यकाल में इन संबंधों में कई उतार-चढ़ाव आए हैं। नेहरू के समय में दोस्ती की शुरुआत हुई, लेकिन 1962 का युद्ध इन संबंधों में खटास लेकर आया। इंदिरा गांधी और लाल बहादुर शास्त्री के कार्यकाल में तनाव बना रहा, जबकि राजीव गांधी और अटल बिहारी वाजपेयी ने रिश्तों को सुधारने का प्रयास किया।
डॉ. मनमोहन सिंह ने आर्थिक सहयोग को प्राथमिकता दी। नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में गलवान घाटी में हुई झड़प ने रिश्तों को और बिगाड़ दिया, लेकिन हाल के वर्षों में शांति बहाली के प्रयास जारी हैं। दोनों देशों के बीच संबंध कभी दोस्ताना, कभी तनावपूर्ण और कभी युद्ध में बदलते रहे हैं। हर प्रधानमंत्री ने अपनी नीतियों के अनुसार इस जटिल रिश्ते को संभालने की कोशिश की है। आइए जानते हैं समय के साथ इन रिश्तों में कैसे बदलाव आए।
नेहरू के समय में संबंध
1950 में, जवाहरलाल नेहरू ने कम्युनिस्ट चीन को मान्यता दी और 1954 में पंचशील समझौते पर हस्ताक्षर किए। 'हिंदी-चीनी भाई-भाई' का नारा दिया गया, लेकिन तिब्बत पर चीन के कब्जे और सीमा विवाद ने स्थिति को बिगाड़ दिया। 1962 में भारत-चीन युद्ध हुआ, जिसमें भारत को हार का सामना करना पड़ा।
लाल बहादुर शास्त्री का कार्यकाल
लाल बहादुर शास्त्री का कार्यकाल छोटा था। 1965 में भारत-पाक युद्ध के दौरान, चीन ने भारत को धमकी दी, लेकिन शास्त्री ने कड़ा रुख अपनाया और रक्षा तैयारियों को मजबूत किया।
इंदिरा गांधी के समय में तनाव
इंदिरा गांधी के कार्यकाल में रिश्ते तनावपूर्ण रहे। 1967 में नाथू ला और चो ला में झड़पें हुईं। हालांकि, 1976 में कूटनीति के माध्यम से राजनयिक संबंध फिर से स्थापित किए गए।
राजीव गांधी का ऐतिहासिक दौरा
1988 में, राजीव गांधी ने चीन का ऐतिहासिक दौरा किया। यह 1962 के बाद किसी भारतीय प्रधानमंत्री का पहला दौरा था। इस यात्रा ने दोनों देशों के बीच व्यापार और कूटनीति में नया अध्याय जोड़ा।
अटल बिहारी वाजपेयी का योगदान
अटल बिहारी वाजपेयी ने 2003 में चीन का दौरा किया और सीमा विवाद पर विशेष प्रतिनिधि तंत्र की शुरुआत की। नाथू ला दर्रा 2006 में खोला गया, जिससे व्यापार को बढ़ावा मिला। उनके कार्यकाल में रिश्ते बेहतर हुए, लेकिन सीमा विवाद बना रहा।
मनमोहन सिंह का आर्थिक सहयोग
मनमोहन सिंह ने 2008 और 2013 में चीन का दौरा किया, जिसमें आर्थिक और व्यापारिक सहयोग को बढ़ावा दिया गया। हालांकि, 2013 में लद्दाख में चीनी घुसपैठ ने रिश्तों को बिगाड़ा, लेकिन कूटनीति से हालात को संभाला गया।
नरेंद्र मोदी का कार्यकाल
नरेंद्र मोदी के शासनकाल में भी रिश्ते उतार-चढ़ाव से भरे रहे। 2014 में शी जिनपिंग भारत आए और 2015 में मोदी चीन गए। व्यापार और सांस्कृतिक संबंध बढ़ाने की कोशिश की गई, लेकिन 2020 में गलवान घाटी की हिंसक झड़प ने रिश्तों में गहरी दरार डाली। मोदी सरकार ने सख्त रुख अपनाते हुए सीमा पर सैन्य तैनाती बढ़ाई और चीनी ऐप्स पर प्रतिबंध लगाया। 2024-25 में फिर से बैठक हुई जिसमें शांति और सहयोग पर चर्चा हुई और कैलाश मानसरोवर यात्रा बहाल की गई।