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भारत-चीन संबंधों पर विदेश मंत्री जयशंकर का महत्वपूर्ण बयान

विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने नई दिल्ली में एक फोरम में भारत-चीन संबंधों पर महत्वपूर्ण बयान दिया। उन्होंने कहा कि अमेरिका के साथ घटनाओं का सीधा प्रभाव चीन के साथ रिश्तों पर नहीं पड़ता। जयशंकर ने व्यापारिक तनाव और तेल खरीद पर भारत की स्थिति को स्पष्ट किया। उनका यह बयान प्रधानमंत्री मोदी की आगामी यात्रा से भी जुड़ा हुआ है, जिसमें वे शंघाई सहयोग संगठन के शिखर सम्मेलन में भाग लेंगे।
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भारत-चीन संबंधों पर विदेश मंत्री जयशंकर का महत्वपूर्ण बयान

भारत-चीन संबंधों की स्वतंत्र दृष्टि

नई दिल्ली में आयोजित द इकनॉमिक टाइम्स वर्ल्ड लीडर्स फोरम 2025 में विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने भारत-चीन संबंधों पर एक महत्वपूर्ण टिप्पणी की। उन्होंने स्पष्ट किया कि यह धारणा गलत है कि अमेरिका के साथ किसी भी घटना का सीधा प्रभाव चीन के साथ भारत के रिश्तों पर पड़ता है।


रिश्तों की जटिलता

जयशंकर ने कहा कि भारत और चीन के संबंधों को एक स्वतंत्र दृष्टिकोण से देखना आवश्यक है। उन्होंने कहा, 'यह एक काला और सफेद मामला नहीं है। अमेरिका के साथ कुछ घटित होने पर यह मान लेना कि चीन के साथ भी वही होगा, गलत है। हर संबंध की अपनी विशेषताएँ और चुनौतियाँ होती हैं।' विदेश मंत्री ने यह भी कहा कि भारत-चीन संबंधों का प्रवाह अपनी दिशा में चलता है और इसे अमेरिका से जोड़कर देखना वास्तविकता नहीं है।


अमेरिका के साथ व्यापारिक तनाव

अमेरिका के साथ तनाव और टैरिफ विवाद


यह बयान उस समय आया है जब अमेरिका और भारत के बीच व्यापारिक तनाव बढ़ रहा है। ट्रंप प्रशासन ने हाल ही में भारत से आने वाले उत्पादों पर भारी टैरिफ लगाया है। जयशंकर ने इस निर्णय को 'अनुचित और असंगत' बताया और कहा कि भारत अपने किसानों और छोटे उत्पादकों के हितों की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है। उन्होंने स्पष्ट किया कि यह मुद्दा केवल तेल खरीद का नहीं है, बल्कि इसे गलत तरीके से प्रस्तुत किया गया है।


भारत पर तेल खरीद का आरोप

तेल खरीद पर भारत पर निशाना क्यों


जयशंकर ने कहा कि भारत पर रूस से तेल खरीदने को लेकर उंगलियां उठाई जा रही हैं, जबकि चीन और यूरोपीय देश बड़े आयातक होने के बावजूद आलोचना से बच गए हैं। उन्होंने कहा, 'जो तर्क भारत के खिलाफ इस्तेमाल किए जा रहे हैं, वे चीन, जो सबसे बड़ा तेल आयातक है, और यूरोप, जो सबसे बड़ा एलएनजी आयातक है, पर लागू नहीं किए गए।'


भविष्य की कूटनीति

क्या है आगे की कूटनीति?


जयशंकर हाल ही में मास्को गए थे, जहां उन्होंने राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और अन्य शीर्ष रूसी अधिकारियों से बातचीत की। उनके इस बयान को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आगामी जापान और चीन यात्रा से भी जोड़ा जा रहा है, जहां वह शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) शिखर सम्मेलन में भाग लेंगे। विशेषज्ञों का मानना है कि भारत अपने कूटनीतिक संतुलन को बनाए रखते हुए अमेरिका, चीन और रूस के साथ अलग-अलग प्राथमिकताओं पर काम करना चाहता है।