भारत-चीन संबंधों में सहयोग की आवश्यकता पर जोर

भारत-चीन संबंधों की स्थिति
भारत में चीन के राजदूत शू फेइहोंग ने कहा है कि दोनों देशों के बीच संबंधों में उतार-चढ़ाव के बावजूद, यह संबंध "मैत्रीपूर्ण सहयोग" पर आधारित हैं। उन्होंने संवाद, व्यापार और आदान-प्रदान को और मजबूत करने की आवश्यकता पर जोर दिया। अमेरिकी प्रशासन की व्यापार और टैरिफ नीतियों के वैश्विक प्रभाव के संदर्भ में, शू ने मंगलवार को कहा कि भारत और चीन को मिलकर वैश्विक दक्षिण के हितों की रक्षा करनी चाहिए और किसी भी प्रकार के आधिपत्य और "टैरिफ और व्यापार युद्धों" का विरोध करना चाहिए।
वर्चस्व और शक्ति-केंद्रित राजनीति का विरोध
चीन के राजदूत ने कहा कि दोनों देशों को वर्चस्व और शक्ति-केंद्रित राजनीति के खिलाफ एकजुट होना चाहिए। यह टिप्पणी उस समय आई है जब ट्रंप प्रशासन ने भारतीय वस्तुओं पर शुल्क को 50 प्रतिशत तक बढ़ा दिया है, जिससे भारत और अमेरिका के बीच संबंधों में तनाव उत्पन्न हुआ है। एक कार्यक्रम में, शू ने भारत-चीन संबंधों को आगे बढ़ाने के लिए चार सूत्रीय दृष्टिकोण प्रस्तुत किया, जिसमें आपसी सम्मान और विश्वास के साथ तालमेल बिठाने का सही तरीका खोजने की बात शामिल है।
सीमा विवाद और द्विपक्षीय व्यापार
शू ने यह भी कहा कि सीमा विवाद को वर्तमान भारत-चीन संबंधों की परिभाषा नहीं बनने देना चाहिए और द्विपक्षीय व्यापार को बढ़ावा देना चाहिए, क्योंकि इसमें अपार संभावनाएं हैं। चीन की स्थापना की 76वीं वर्षगांठ के अवसर पर दिए गए अपने भाषण में, उन्होंने कहा कि भारत और चीन के लिए यह आवश्यक है कि वे मिलकर वर्चस्व, शक्ति-केंद्रित राजनीति और व्यापार युद्धों का विरोध करें, वैश्विक दक्षिण के साझा हितों की रक्षा करें और मानवता के लिए एक साझा भविष्य का निर्माण करें।
प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति शी की बातचीत
यह टिप्पणी उस समय आई है जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग के बीच तिआनजिन में शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) शिखर सम्मेलन के दौरान बातचीत को तीन सप्ताह से अधिक हो चुके हैं।