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भारत ने अंटार्कटिका में वैज्ञानिक उपकरणों की पहली हवाई आपूर्ति की

भारत ने अंटार्कटिका में अपने वैज्ञानिक उपकरणों को पहली बार हवाई मार्ग से पहुँचाने का एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है। 2 अक्टूबर को, IL-76 विमान ने गोवा से उड़ान भरकर 18 टन सामग्री को भारतीय अनुसंधान स्टेशनों तक पहुँचाया। यह कदम समुद्री आपूर्ति में आने वाली चुनौतियों के समाधान के लिए उठाया गया है। जानें इस मिशन के पीछे की कहानी और भारत के अंटार्कटिका में अनुसंधान के इतिहास के बारे में।
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भारत ने अंटार्कटिका में वैज्ञानिक उपकरणों की पहली हवाई आपूर्ति की

भारत का ऐतिहासिक हवाई मिशन

भारत ने अंटार्कटिका तक अपने वैज्ञानिक उपकरणों को पहली बार हवाई मार्ग से पहुँचाने का एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है। 2 अक्टूबर को, रूसी कार्गो विमान IL-76 ने गोवा के मोपा हवाई अड्डे से उड़ान भरकर लगभग 18 टन वैज्ञानिक उपकरण, दवाइयां, खाद्य सामग्री और अन्य आवश्यक वस्तुएं भारतीय अनुसंधान स्टेशनों 'भारती' और 'मैत्री' तक पहुँचाईं। यह मिशन ड्रोनिंग मॉड लैंड एयर नेटवर्क (DROMLAN) की सहायता से संभव हुआ।


समुद्री मार्ग से हवाई मार्ग की ओर बदलाव

अब तक, भारत अपने अंटार्कटिक अभियानों के लिए समुद्री मार्ग का उपयोग करता था। 1981 से शुरू हुए अभियानों में उपकरणों को जहाजों के माध्यम से भेजा जाता था। हालाँकि, हाल के वर्षों में अनुमति में देरी और समुद्री आपूर्ति में अनिश्चितता के कारण नेशनल सेंटर फॉर पोलर एंड ओशन रिसर्च (NCPOR) को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा।


COVID-19 के प्रभाव और एयर कार्गो का निर्णय

NCPOR के निदेशक थंबन मेलोथ ने बताया कि कोविड-19 के बाद उपकरणों की समय पर आपूर्ति में बाधा आई, जिससे शोध कार्य प्रभावित हुआ। इसलिए पहली बार एयर कार्गो का विकल्प चुना गया। IL-76 विमान भारी उपकरणों को ले जाने में सक्षम है और सीधे अंटार्कटिका के बर्फीले रनवे पर उतर सकता है।


भारत का अंटार्कटिका में अनुसंधान इतिहास

भारत का अंटार्कटिका से संबंध 1980 के दशक से है। पहला अनुसंधान केंद्र 'दक्षिण गंगोत्री' 1983 में स्थापित किया गया था, लेकिन इसे बंद करना पड़ा। इसके बाद 1989 में 'मैत्री' और 2012 में 'भारती' स्टेशन स्थापित किए गए। इन केंद्रों में लगभग 70 वैज्ञानिक और तकनीकी कर्मचारी एक साथ काम करते हैं और यहाँ मौसम विज्ञान, भूविज्ञान, हिमनद विज्ञान, जैवविज्ञान और पर्यावरण पर शोध किया जाता है।


हवाई यातायात की चुनौतियाँ

अंटार्कटिका में मौसम प्रतिकूल और हवाई यातायात सीमित है। तेज़ हवाओं और बर्फबारी के कारण उड़ानें अक्सर रुक जाती हैं। इस मिशन ने भारत की ध्रुवीय शोध क्षमता को नई दिशा दी है। हालाँकि, NCPOR ने स्पष्ट किया है कि हवाई मार्ग का उपयोग हर साल नहीं किया जाएगा, क्योंकि यह महंगा है और विशेष परिस्थितियों में ही आवश्यक है।