भारत ने पाकिस्तान की आतंकवाद नीति पर उठाया सवाल, UNSC में कड़ा रुख अपनाया

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत का बयान
भारत ने मंगलवार को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में एक महत्वपूर्ण चर्चा के दौरान पाकिस्तान की आतंकवाद पर दोहरी नीति और कट्टरपंथी दृष्टिकोण को उजागर किया। इस बहस का मुख्य विषय था – वैश्विक शांति और सुरक्षा में बाधा डालने वाले देशों की भूमिका। भारत ने पाकिस्तान को सीधे तौर पर निशाने पर लेते हुए कहा कि आतंकवाद का समर्थन करने वाले देशों को इसकी गंभीर कीमत चुकानी पड़ेगी।इस खुली बहस में भारत का प्रतिनिधित्व करते हुए, संयुक्त राष्ट्र में स्थायी राजदूत पार्वथानेनी हरीश ने जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हाल ही में हुए आतंकी हमले का उल्लेख किया, जिसमें 26 निर्दोष नागरिकों की जान गई। उन्होंने बताया कि इस हमले की जिम्मेदारी लश्कर-ए-तैयबा से जुड़े 'द रेजिस्टेंस फ्रंट' ने ली है, जो पाकिस्तान से संचालित होता है।
हरीश ने बिना पाकिस्तान का नाम लिए कहा कि कुछ देश न केवल आतंकवाद को बढ़ावा देते हैं, बल्कि खुद भी कट्टरता और वित्तीय अस्थिरता में फंसे हुए हैं। उन्होंने स्पष्ट किया कि दक्षिण एशिया में भारत और उसके पड़ोसी देश के दृष्टिकोण में बड़ा अंतर है। भारत लोकतांत्रिक मूल्यों, आर्थिक विकास और समावेशी विकास का प्रतीक है, जबकि पड़ोसी देश IMF से बार-बार कर्ज लेने पर निर्भर है और चरमपंथ को बढ़ावा दे रहा है।
यह बयान तब आया जब पाकिस्तान ने जुलाई में सुरक्षा परिषद की अध्यक्षता संभाली थी। इस दौरान पाकिस्तान के उप प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री इशाक डार ने जम्मू-कश्मीर और सिंधु जल संधि जैसे मुद्दों को उठाया, जिस पर भारत ने कड़ा विरोध जताया। भारत ने स्पष्ट किया कि जब तक पाकिस्तान सीमा पार आतंकवाद का समर्थन नहीं रोकता, तब तक सिंधु जल संधि पर कोई कार्रवाई नहीं की जाएगी।
भारत का यह बयान आत्मविश्वास से भरा और सख्त था। हरीश ने कहा कि वैश्विक शांति और सुरक्षा पर चल रही बहस के बीच, सभी देशों को आतंकवाद के खिलाफ 'जीरो टॉलरेंस' की नीति अपनानी चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि जो देश आतंकवाद को बढ़ावा देते हैं, उन्हें दूसरों को नैतिक उपदेश देने का कोई अधिकार नहीं है।
हरीश ने बताया कि संयुक्त राष्ट्र अब शांति अभियानों और विवादों के समाधान के लिए गंभीर विमर्श कर रहा है। उन्होंने कहा कि क्षेत्रीय संगठन जैसे अफ्रीकी संघ इस दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। उन्होंने यह भी कहा कि संयुक्त राष्ट्र चार्टर के तहत पक्षकारों की सहमति और राष्ट्रीय स्वामित्व के सिद्धांतों के बिना किसी भी टकराव का समाधान संभव नहीं है।