भारत ने मलेरिया के खिलाफ विकसित की पहली स्वदेशी वैक्सीन

भारत की मलेरिया रोधी वैक्सीन की उपलब्धि
नई दिल्ली: भारत ने मलेरिया के खिलाफ अपनी लड़ाई में एक महत्वपूर्ण सफलता हासिल की है। भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICMR) ने जैव प्रौद्योगिकी विभाग के सहयोग से देश की पहली स्वदेशी मलेरिया रोधी वैक्सीन का निर्माण किया है। इस उपलब्धि के बाद, ICMR ने वैक्सीन के उत्पादन और वितरण के लिए निजी दवा कंपनियों से आवेदन आमंत्रित किए हैं।
हालांकि, इस वैक्सीन के आम जनता तक पहुंचने में अभी समय लगेगा। विशेषज्ञों का मानना है कि सभी आवश्यक परीक्षणों और अनुमोदन प्रक्रियाओं को पूरा करने में लगभग छह से सात साल का समय लग सकता है।
एक रिपोर्ट के अनुसार, इस स्वदेशी वैक्सीन का नाम “एडफाल्सीवैक्स” है, और इसे कई महत्वपूर्ण चरणों से गुजरना होगा। सबसे पहले, इसे ‘गुड मैन्युफैक्चरिंग प्रैक्टिस’ (GMP) और ‘टॉक्सिकोलॉजी स्टडीज’ जैसे मानकों पर खरा उतरना होगा, जिसमें लगभग दो साल का समय लग सकता है।
इसके बाद, विभिन्न चरणों में क्लीनिकल ट्रायल होंगे, जिसमें नियामक संस्थाओं से मंजूरी भी शामिल होगी। इस प्रक्रिया में भी कम से कम दो साल लगने का अनुमान है। इसके पश्चात, फेज 2बी और फेज 3बी के बड़े क्लीनिकल ट्रायल किए जाएंगे, जिनमें दो से तीन साल का और समय लगेगा। इन सभी चरणों के सफल समापन के बाद व्यावसायिक लाइसेंस प्राप्त करने में भी लगभग छह महीने का समय लगेगा।
वैक्सीन का कार्यप्रणाली
ICMR द्वारा विकसित “एडफाल्सीवैक्स” वैक्सीन मलेरिया फैलाने वाले घातक परजीवी ‘प्लाज्मोडियम फाल्सीपेरम’ के जीवनचक्र के दो महत्वपूर्ण चरणों पर हमला करती है। इस वैक्सीन को ‘लैक्टोकोकस लैक्टिस’ नामक एक सुरक्षित खाद्य-श्रेणी के बैक्टीरिया का उपयोग करके विकसित किया गया है। यह एक काइमेरिक (chimeric) वैक्सीन है, जिसका अर्थ है कि इसे विभिन्न आनुवंशिक सामग्रियों को मिलाकर एक हाइब्रिड संरचना के रूप में तैयार किया गया है, ताकि यह परजीवी के खिलाफ मजबूत प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया उत्पन्न कर सके।