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भारत ने सिंधु जल संधि को निलंबित किया, पाकिस्तान ने बहाली की मांग की

भारत ने हाल ही में पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित आतंकवादी हमले के मद्देनजर सिंधु जल संधि को निलंबित कर दिया है। इस निर्णय के बाद, पाकिस्तान ने संधि की बहाली की मांग की है, यह कहते हुए कि यह समझौता अब भी वैध है। पाकिस्तान के उप प्रधानमंत्री ने भी इस मुद्दे पर बयान दिया है, जिसमें उन्होंने भारत से आग्रह किया है कि वह संधि के दायित्वों का पालन करे। जानें इस विवाद के पीछे की पूरी कहानी और दोनों देशों के बीच बढ़ते तनाव के बारे में।
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भारत ने सिंधु जल संधि को निलंबित किया, पाकिस्तान ने बहाली की मांग की

सिंधु जल संधि का निलंबन

पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित आतंकवादी हमले के बाद, भारत ने अपनी रणनीतिक प्रतिक्रिया को तेज करते हुए सिंधु जल संधि (आईडब्ल्यूटी) को निलंबित कर दिया है। यह संधि सिंधु नदी प्रणाली से पाकिस्तान को मिलने वाले पानी के वितरण को नियंत्रित करती है।


सोमवार को पाकिस्तान ने भारत से आग्रह किया कि वह सिंधु जल संधि को बहाल करे, जिसे नई दिल्ली ने पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले के एक दिन बाद स्थगित करने की घोषणा की थी। पाकिस्तान का कहना है कि हेग स्थित स्थायी मध्यस्थता न्यायालय का हालिया निर्णय यह दर्शाता है कि यह समझौता अब भी ‘वैध और क्रियाशील’ है।


सिंधु जल संधि के अंतर्गत दो पनबिजली परियोजनाओं के डिजाइन के कुछ पहलुओं पर पाकिस्तान द्वारा उठाई गई आपत्तियों के चलते स्थायी मध्यस्थता न्यायालय में कार्यवाही हुई, जिसे भारत ने कभी मान्यता नहीं दी। भारत ने शुक्रवार को इस फैसले को दृढ़ता से खारिज करते हुए कहा कि उसने पाकिस्तान के साथ विवाद समाधान के ढांचे को मान्यता नहीं दी है।


पाकिस्तान के विदेश कार्यालय ने सोमवार को एक बयान में कहा कि 27 जून को मध्यस्थता न्यायालय द्वारा सुनाए गए पूरक निर्णय ने पाकिस्तान की स्थिति की पुष्टि की है कि सिंधु जल संधि वैध और क्रियाशील है, और भारत को इसके संबंध में एकतरफा कार्रवाई करने का अधिकार नहीं है।


पाकिस्तान के उप प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री इशाक डार ने एक अलग बयान में कहा कि मध्यस्थता अदालत के फैसले ने यह स्पष्ट कर दिया है कि सिंधु जल संधि पूरी तरह वैध है। उन्होंने सोशल मीडिया पर कहा, ‘पाकिस्तान किशनगंगा-रातले मामले में अपने अधिकार क्षेत्र की पुष्टि करने वाले मध्यस्थता न्यायालय के पूरक निर्णय का स्वागत करता है।’


उन्होंने आगे कहा कि यह निर्णय दर्शाता है कि भारत इस संधि को एकतरफा रूप से स्थगित नहीं कर सकता। देशों को अंतरराष्ट्रीय समझौतों का पालन करना चाहिए, और सिंधु जल संधि को अक्षरशः और भावना, दोनों रूप से बनाए रखा जाना चाहिए।