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भारत-पाकिस्तान विभाजन: एनसीईआरटी के नए मॉड्यूल में उठे विवाद

एनसीईआरटी ने विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस के अवसर पर एक नया मॉड्यूल जारी किया है, जिसमें भारत-पाकिस्तान विभाजन के कारणों और परिणामों का विश्लेषण किया गया है। इस दस्तावेज़ में जिन्ना, कांग्रेस और लॉर्ड माउंटबेटन की भूमिकाओं का उल्लेख किया गया है, लेकिन कुछ बिंदुओं ने राजनीतिक विवाद को जन्म दिया है। कांग्रेस ने इस मॉड्यूल का विरोध करते हुए इसे सच्चाई को तोड़-मरोड़ कर पेश करने का आरोप लगाया है। जानें इस विवाद के पीछे की पूरी कहानी।
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भारत-पाकिस्तान विभाजन: एनसीईआरटी के नए मॉड्यूल में उठे विवाद

भारत-पाकिस्तान विभाजन का संदर्भ

भारत-पाकिस्तान विभाजन: एनसीईआरटी ने विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस के अवसर पर छात्रों के लिए एक विशेष मॉड्यूल जारी किया है। इस मॉड्यूल में भारत के बंटवारे की पृष्ठभूमि, कारण और परिणामों का विस्तृत विवरण दिया गया है। हालांकि, इसमें कुछ बिंदुओं ने राजनीतिक विवाद को जन्म दिया है। इस दस्तावेज़ में विभाजन के लिए तीन प्रमुख कारणों का उल्लेख किया गया है।


1. मुहम्मद अली जिन्ना: उन्होंने अलग मुस्लिम राष्ट्र की मांग की।


2. कांग्रेस पार्टी: जिन्होंने विभाजन को स्वीकार किया।


3. लॉर्ड माउंटबेटन: जिन्होंने विभाजन की प्रक्रिया को तेजी से लागू किया।


मॉड्यूल में यह भी कहा गया है कि विभाजन के परिणामस्वरूप कश्मीर भारत के लिए एक नई सुरक्षा चुनौती बन गया, जिसका उपयोग पड़ोसी देश लगातार भारत पर दबाव डालने के लिए करते रहे हैं।


लाहौर प्रस्ताव का उल्लेख

लाहौर प्रस्ताव: मॉड्यूल में 1940 के लाहौर प्रस्ताव का जिक्र किया गया है, जिसमें जिन्ना ने कहा था कि हिंदू और मुसलमान पूरी तरह से अलग समाज और परंपराओं से जुड़े हैं। इसी आधार पर उन्होंने पाकिस्तान की मांग की। इसके अलावा, यह भी उल्लेख किया गया है कि ब्रिटिश सरकार ने भारत को एकजुट रखने के लिए डोमिनियन स्टेटस का प्रस्ताव रखा था, जिसे कांग्रेस ने अस्वीकार कर दिया।


गांधी, पटेल और नेहरू का दृष्टिकोण

गांधी, पटेल और नेहरू: मॉड्यूल में सरदार वल्लभभाई पटेल के हवाले से कहा गया है कि भारत की स्थिति विस्फोटक हो गई है। उन्होंने कहा, "भारत युद्ध का मैदान बन गया है और गृहयुद्ध की अपेक्षा देश का विभाजन करना बेहतर है।" गांधीजी के रुख का हवाला देते हुए कहा गया है कि वे विभाजन के खिलाफ थे, लेकिन हिंसा के माध्यम से कांग्रेस के निर्णय का विरोध नहीं करेंगे। अंततः, नेहरू और पटेल ने विभाजन को स्वीकार कर लिया।


माउंटबेटन की आलोचना

माउंटबेटन की जल्दबाजी: मॉड्यूल में लॉर्ड माउंटबेटन की आलोचना की गई है। कहा गया है कि उन्होंने सत्ता हस्तांतरण की तारीख को जून 1948 से अचानक अगस्त 1947 में बदल दिया, जिससे सीमा रेखा खींचने का कार्य जल्दबाजी में हुआ और अराजकता फैल गई। कई स्थानों पर लोगों को यह भी नहीं पता था कि वे भारत में हैं या पाकिस्तान में।


कांग्रेस का विरोध

कांग्रेस का विरोध: इस मॉड्यूल को लेकर कांग्रेस ने कड़ा विरोध जताया है। पार्टी प्रवक्ता पवन खेड़ा ने कहा कि यह दस्तावेज़ सच्चाई को तोड़-मरोड़ कर पेश करता है और इसे नष्ट कर देना चाहिए। उनका आरोप था कि विभाजन हिंदू महासभा और मुस्लिम लीग की सांठगांठ का परिणाम था, न कि कांग्रेस की स्वीकृति का।