भारत-पाकिस्तान विवाद: शहबाज शरीफ का आरोप और सिंधु जल संधि का मुद्दा

भारत-पाकिस्तान विवाद
भारत-पाकिस्तान विवाद: संयुक्त राष्ट्र महासभा के 80वें सत्र में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने भारत द्वारा सिंधु जल संधि को निलंबित करने का मुद्दा उठाया। शरीफ ने अपने भाषण में आरोप लगाया कि भारत ने अंतरराष्ट्रीय कानून और संधि की शर्तों का उल्लंघन करते हुए एकतरफा और अवैध तरीके से इस संधि को स्थगित कर दिया है। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान अपनी जनता के जल अधिकारों की रक्षा करेगा और किसी भी उल्लंघन को युद्ध की कार्रवाई माना जाएगा.
संधि का निलंबन
भारत ने 22 अप्रैल को पहलगाम में हुए आतंकी हमले में 26 लोगों की मौत के बाद पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद के खिलाफ कदम उठाते हुए इस संधि को स्थगित किया। भारत ने अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत अपने संप्रभु अधिकार का प्रयोग करते हुए संधि को निलंबित किया और इसे पाकिस्तान के आतंकवाद के समर्थन की समाप्ति से जोड़ा गया है.
सिंधु जल संधि का इतिहास
सिंधु जल संधि समझौता
सिंधु जल संधि 1960 में विश्व बैंक की मध्यस्थता में भारत और पाकिस्तान के बीच हुई थी। इस संधि के तहत भारत को पूर्वी नदियों रावी, ब्यास और सतलुज का नियंत्रण मिला, जबकि पाकिस्तान को पश्चिमी नदियों सिंधु, झेलम और चिनाब पर अधिकार दिया गया। कई युद्धों और तनावपूर्ण रिश्तों के बावजूद यह संधि अब तक कायम रही है, हालांकि भारत में इसे अक्सर असमान समझौता बताया गया है.
कश्मीर मुद्दा
शरीफ ने उठाया कश्मीर मुद्दा
अपने संबोधन में शरीफ ने कश्मीर मुद्दा भी उठाया। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान और वह स्वयं कश्मीरियों के साथ खड़े हैं और एक दिन भारत का अत्याचार खत्म होगा। एक ओर शरीफ ने भारत पर युद्ध जैसे आरोप लगाए, वहीं दूसरी ओर उन्होंने भारत से सभी लंबित मुद्दों पर व्यापक और परिणामोन्मुखी वार्ता का प्रस्ताव भी दिया। इसमें कश्मीर मुद्दा भी शामिल किया गया। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान संवाद के लिए तैयार है। आतंकवाद पर बोलते हुए शरीफ ने दावा किया कि पाकिस्तान ने आतंकवाद के खिलाफ भारी बलिदान दिए हैं और इसके कारण देश को 150 अरब डॉलर से अधिक का आर्थिक नुकसान झेलना पड़ा है. उन्होंने कहा कि पाकिस्तान की कुर्बानियां दुनिया में सबसे बड़ी हैं.
युद्धविराम की घोषणा
युद्धविराम की घोषणा
ट्रंप ने 10 मई को सोशल मीडिया पर युद्धविराम की घोषणा की और तब से मध्यस्थता के अपने दावों को दर्जनों बार दोहराया है। हालांकि, भारत की ओर से इस पूरे विवाद पर बार-बार यह स्पष्ट किया गया है कि वह किसी तीसरे पक्ष के हस्तक्षेप को स्वीकार नहीं करता। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और विदेश मंत्री एस जयशंकर ने भी संसद में यह कहा कि किसी भी विदेशी नेता ने भारत से ऑपरेशन रोकने की बात नहीं कही और यह समझौता सीधे सैन्य वार्ता से हुआ.