भारत में आजादी और लोकतंत्र: एक जटिल परिदृश्य

लोकतंत्र और आजादी का संकट
क्या आधुनिक उपकरण जैसे संविधान, न्यायपालिका, मीडिया, तकनीक और नागरिक समाज वास्तव में लोकतंत्र और आजादी की रक्षा कर रहे हैं, या ये इसके क्षरण का कारण बन रहे हैं? यह एक जटिल प्रश्न है। 18वीं सदी में दार्शनिक ज्यां जॉक रूसो ने यह सवाल उठाया था कि क्या आधुनिक विज्ञान और कला ने मानवता को बेहतर बनाया है या नैतिक रूप से भ्रष्ट किया है। रूसो का मानना था कि आधुनिकता ने मानवता को नैतिक रूप से कमजोर किया है। आज, भारत के संदर्भ में, यह कहा जा सकता है कि ये आधुनिक उपकरण लोकतंत्र और आजादी को सीमित करने का प्रयास कर रहे हैं।
नागरिकों की भूमिका
दुर्भाग्य से, देश के नागरिक भी सामाजिक, धार्मिक, सांस्कृतिक या राजनीतिक दबाव में अपनी आजादी को सीमित करने में सक्रिय भागीदारी निभा रहे हैं। एक ओर, सरकारें अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को नियंत्रित करने के लिए नए कानून बना रही हैं, वहीं नागरिक समाज स्वेच्छा से अपनी आजादी को खोने की प्रक्रिया में शामिल हो रहा है। यदि नागरिक समाज अपने अधिकारों के प्रति सजग रहे, तो वह सरकारी दमन का सफल प्रतिरोध कर सकता है।
आजादी की परिभाषा
भारत में आजादी को केवल एक राजनीतिक अवधारणा बना दिया गया है। जब आजादी की बात होती है, तो यह सवाल उठता है कि क्या आपको सत्ता प्रतिष्ठान की आलोचना करने का अधिकार है। लेकिन आजादी केवल राजनीतिक बयानों तक सीमित नहीं है। मनुष्य स्वाभाविक रूप से आजाद पैदा होता है, और उसके मौलिक अधिकार जैसे खाने-पीने, पहनावे और अपने मूल्यों के साथ जीने की आजादी उसे स्वाभाविक रूप से मिलती है।
संविधान और नागरिक समाज
आजादी के 78 साल बाद भी, खान-पान, पहनावे और भाषा पर पाबंदियाँ लगाई जा रही हैं। अभिव्यक्ति की आजादी का अर्थ केवल बोलने की स्वतंत्रता नहीं है, बल्कि अपनी पसंद का जीवन जीने की आजादी भी है। नागरिकों की सहमति के बिना लोकतंत्र और आजादी को सीमित नहीं किया जा सकता।
सामाजिक दबाव और आजादी
महाराष्ट्र में स्वतंत्रता दिवस पर मांस की बिक्री पर पाबंदी लगाने का निर्णय एक बड़े नागरिक समूह की सहमति के बिना संभव नहीं है। यह एक छोटी बात नहीं है, बल्कि यह एक प्रयोग का हिस्सा है। इसके अलावा, कुछ कथित संतों के विवादास्पद बयानों ने भी महिलाओं की आजादी को सीमित करने का प्रयास किया है।
निष्कर्ष
भारत में आजादी के 78 साल बाद, यह सवाल उठता है कि क्या हम अपनी आजादी को सही मायने में समझते हैं। क्या हम इस प्रचार का हिस्सा बन रहे हैं कि महिलाओं को अपनी पसंद से शादी करने का अधिकार नहीं है? यह एक गंभीर विषय है, जो महिलाओं की शिक्षा, नौकरी और व्यक्तिगत स्वतंत्रता को प्रभावित करता है।