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भारत में गरीबी में कमी: मोदी सरकार की योजनाओं का प्रभाव

भारत ने पिछले 11 वर्षों में गरीबी में महत्वपूर्ण कमी की है, जिसमें मोदी सरकार की जनधन योजना और अन्य कल्याणकारी पहलों का बड़ा योगदान है। विश्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार, 27 करोड़ लोग अत्यधिक गरीबी से बाहर निकले हैं। 2011-12 में 27.1% जनसंख्या गरीबी में थी, जो अब घटकर 5.3% रह गई है। यह लेख भारत की आर्थिक यात्रा, मोदी सरकार की योजनाओं और भविष्य की संभावनाओं पर प्रकाश डालता है।
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भारत में गरीबी में कमी: मोदी सरकार की योजनाओं का प्रभाव

भारत की गरीबी में कमी की कहानी

पिछले 11 वर्षों में मुफ्त राशन, प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (डायरेक्ट बेनेफिट ट्रांसफर) और जनधन योजना जैसी पहलों ने गरीबी में कमी लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। मोदी सरकार द्वारा शुरू की गई ‘प्रधानमंत्री जनधन योजना’ के तहत, 10 जून 2025 तक 55 करोड़ से अधिक लोगों के लिए निशुल्क बैंक खाते खोले गए हैं, जिसमें विभिन्न जनकल्याणकारी योजनाओं के माध्यम से लाभार्थियों के खातों में ढाई लाख करोड़ रुपये से अधिक का हस्तांतरण किया गया है।


भारत ने गरीबी के खिलाफ एक महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल की है। विश्व बैंक की हालिया रिपोर्ट के अनुसार, पिछले 11 वर्षों में लगभग 27 करोड़ लोग अत्यधिक गरीबी से बाहर निकल चुके हैं। वर्ष 2011-12 में जहां 27.1 प्रतिशत जनसंख्या इस श्रेणी में थी, वहीं 2022-23 में यह आंकड़ा घटकर 5.3 प्रतिशत रह गया है। यह महत्वपूर्ण है क्योंकि विश्व बैंक ने इस बार गरीबी रेखा के मानदंड को बढ़ाकर 3 डॉलर प्रतिदिन कर दिया है। यदि पुरानी सीमा 2.15 डॉलर प्रतिदिन को आधार मानें, तो गरीबी दर 2022-23 में केवल 2.3 प्रतिशत रह गई है। यह चमत्कार कैसे संभव हुआ? इसके लिए पिछले 78 वर्षों की आर्थिक यात्रा को समझना आवश्यक है।


जो पाठक 50 वर्ष या उससे अधिक उम्र के हैं, वे जानते हैं कि 1970 और 1980 के दशक में देश की स्थिति क्या थी। उस समय भारतीय अर्थव्यवस्था वामपंथी समाजवाद और योजनाओं के कारण ठप हो गई थी। देश खाद्य वस्तुओं के अकाल, कालाबाजारी, भुखमरी और अत्यधिक गरीबी से ग्रस्त था। आम लोगों को दूध, चीनी जैसी आवश्यक चीजों के लिए लंबी कतारों में लगना पड़ता था। उस समय सबसे ऊंची कर दर 97 प्रतिशत थी। कार खरीदने के लिए सात साल और स्कूटर के लिए नौ साल तक इंतजार करना पड़ता था।


जब समाजवादी आर्थिक नीति विफल हो गई, तब इसके समर्थकों ने अपनी वैचारिक बाध्यता के चलते इस असफलता का दोष भारत की मौलिक पहचान— अनाधिकालीन सनातन संस्कृति पर मढ़ दिया। वर्ष 1978 में एक वामपंथी अर्थशास्त्री प्रो. राजकृष्ण ने भारत की कमजोर विकास दर को ‘हिंदू विकास दर’ कहकर बदनाम किया। वर्ष 1990-91 आते-आते हालात इतने बिगड़ गए थे कि भारत का विदेशी मुद्रा भंडार केवल एक बिलियन डॉलर के आसपास रह गया, जो सिर्फ तीन सप्ताह के आयात के लिए पर्याप्त था। तब भारत को अपनी देनदारियों को चुकाने के लिए लगभग 47 टन सोना विदेशों में गिरवी रखना पड़ा। जब सोवियत संघ का विघटन हुआ, तो पूरी दुनिया ने समाजवाद के अंतर्गत गरीबी और भुखमरी को अपनी आंखों से देखा।


1991 में जब कांग्रेस के पीवी नरसिम्हा राव देश के 9वें प्रधानमंत्री बने, तब उनके नेतृत्व में समाजवाद की बेड़ियों का टूटना शुरू हुआ। उन्होंने भारत की अर्थव्यवस्था को नए रास्ते पर ले जाने की शुरुआत की। इससे दशकों से नीतिगत जाल में फंसी देश की प्रतिभा को खुलने का मौका मिला। इससे न केवल देश की तस्वीर बदली, बल्कि भारत एक उभरती आर्थिक ताकत बनकर उभरा। हालांकि, भ्रष्टाचार ने 2004-14 के बीच विकास की गति को धीमा कर दिया।


साल 2014 में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में एक मजबूत सरकार बनने के बाद से देश में बड़े बदलाव देखने को मिले हैं। भ्रष्टाचार से मुक्त योजनाएं शुरू हुईं, सरकारी सहायता सीधे लोगों तक पहुंचने लगी, और समेकित विकास के साथ अर्थव्यवस्था को नई ताकत मिली। आज भारत दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। 2014 में हम 10वें स्थान पर थे। 1947 से 2014 तक भारत की अर्थव्यवस्था केवल दो खरब डॉलर तक पहुंची थी। लेकिन तीसरा खरब सिर्फ पांच साल (2014-19) में जुड़ गया। कोरोनाकाल और रूस-यूक्रेन युद्ध के बावजूद भारत चार खरब डॉलर से अधिक की अर्थव्यवस्था बन गया है।


विश्व बैंक ने अपनी हालिया रिपोर्ट में माना है कि पिछले 11 वर्षों में मुफ्त राशन, प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (डायरेक्ट बेनेफिट ट्रांसफर) और जनधन योजना जैसी पहलों ने गरीबी को कम करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। मोदी सरकार द्वारा शुरू की गई ‘प्रधानमंत्री जनधन योजना’ के तहत, 10 जून 2025 तक 55 करोड़ से अधिक लोगों के लिए निशुल्क बैंक खाते खोले गए हैं, जिसमें विभिन्न जनकल्याणकारी योजनाओं के माध्यम से लाभार्थियों के खातों में ढाई लाख करोड़ रुपये से अधिक का हस्तांतरण किया गया है। 2018 से जारी प्रधानमंत्री जनारोग्य योजना के अंतर्गत, पांच लाख रुपये के मुफ्त वार्षिक बीमा संबंधित 41 करोड़ आयुष्मान कार्ड जारी किए गए हैं, जिसका लाभ तीन जून 2025 तक साढ़े नौ करोड़ से अधिक लोग ले चुके हैं। इसी प्रकार प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना के अंतर्गत, मोदी सरकार ने सात करोड़ से अधिक पात्रों को मुफ्त एलपीजी गैस कनेक्शन प्रदान किए हैं। वर्ष 2019 से पीएम-किसान सम्मान निधि योजना के तहत औसतन 9-10 करोड़ किसानों को 6,000 रुपये वार्षिक दिए जा रहे हैं। कोरोनाकाल के दौरान मोदी सरकार ने निशुल्क टीकाकरण के साथ पिछले पांच वर्षों से ‘प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना’ के तहत 80 करोड़ लोगों को मासिक मुफ्त अनाज प्रदान किया है। ऐसी जनकल्याणकारी योजनाओं की एक लंबी सूची है। इन सभी का लाभ बिना किसी धार्मिक या जातीय भेदभाव के लाभार्थियों तक पहुंच रहा है।


यह कहना गलत नहीं होगा कि मई 2014 से पहले सरकारों ने लोगों के भले के लिए कोई योजना नहीं चलाई। पहले भी कई योजनाएं बनी थीं, लेकिन उस समय भ्रष्टाचार एक बड़ी समस्या थी। पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने भी कहा था कि सरकार जो 1 रुपया भेजती है, उसमें से केवल 15 पैसा ही लोगों तक पहुंचता है। लेकिन 2014 के बाद से हालात में काफी सुधार हुआ है। यह सच है कि भ्रष्टाचार अभी भी पूरी तरह से समाप्त नहीं हुआ है, लेकिन पिछले 11 वर्षों से मोदी सरकार और सत्तारूढ़ भाजपा का शीर्ष नेतृत्व भ्रष्टाचार और वित्तीय गड़बड़ियों से मुक्त है।


भारत की यह प्रगति केवल आंकड़ों की नहीं, बल्कि देश की सामाजिक और आर्थिक दिशा में हुए सकारात्मक बदलाव की कहानी है। यदि यही गति बनी रही, तो आने वाले वर्षों में भारत गरीबी मुक्त राष्ट्र बनने की दिशा में एक ठोस कदम और बढ़ा सकता है।