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भारत-रूस संबंध: एक मजबूत साझेदारी का इतिहास

भारत और रूस के बीच संबंधों का इतिहास गहरा और विविधतापूर्ण है। राष्ट्रपति पुतिन ने हाल ही में भारत की यात्रा से पहले कहा कि यह साझेदारी केवल हथियारों की खरीद तक सीमित नहीं है, बल्कि तकनीकी सहयोग का भी प्रतीक है। इस लेख में, हम देखेंगे कि कैसे यह मित्रता स्वतंत्रता के शुरुआती वर्षों से शुरू हुई और समय के साथ मजबूत होती गई। कई महत्वपूर्ण घटनाओं और उपहारों के माध्यम से, दोनों देशों ने एक-दूसरे के साथ सहयोग को बढ़ावा दिया है।
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भारत-रूस संबंध: एक मजबूत साझेदारी का इतिहास

भारत और रूस के बीच गहरा विश्वास

भारत और रूस के रिश्ते को विश्व में सबसे विश्वसनीय साझेदारियों में से एक माना जाता है। राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने भारत की यात्रा से पहले कहा कि भारत केवल एक हथियार खरीदने वाला देश नहीं है, बल्कि एक ऐसा सहयोगी है जिसके साथ रूस तकनीकी ज्ञान साझा करता है। पुतिन ने यह भी बताया कि रक्षा क्षेत्र में तकनीकी सहयोग तभी संभव है जब देशों के बीच गहरा विश्वास हो।


इतिहास की गहराई में दोस्ती

भारत और रूस की मित्रता की शुरुआत स्वतंत्रता के प्रारंभिक वर्षों में हुई थी। स्वतंत्रता के तुरंत बाद, भारत ने विजयलक्ष्मी पंडित को सोवियत संघ में राजदूत के रूप में भेजा। इसी समय, रूस ने किरिल नोविकोव को भारत भेजा, जिससे दोनों देशों के बीच संबंधों की नींव मजबूत हुई।



दिलचस्प उपहार और सहयोग

भारत-रूस की मित्रता में कई रोचक घटनाएं शामिल हैं, जैसे जब रूस ने प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को एक गाय भेंट की। इस उपहार का उद्देश्य केवल सौहार्द बढ़ाना नहीं था, बल्कि कृषि और पशुधन सुधार में सहयोग का संदेश भी था।


भारत-रूस संबंध: एक मजबूत साझेदारी का इतिहास


1950 के दशक का महत्वपूर्ण मोड़

1950 के दशक में सोवियत नेता निकिता ख्रुश्चेव और बुल्गानिन की भारत यात्रा ने दोनों देशों के संबंधों को नई ऊंचाई दी। इस दौरान, लगभग दो लाख लोग सड़कों पर उमड़ पड़े थे, जो किसी विदेशी नेता के लिए भारत में स्वागत का एक दुर्लभ दृश्य था।


भारत-रूस संबंध: एक मजबूत साझेदारी का इतिहास


वर्तमान में सहयोग

इन वर्षों में, भारत और रूस ने मिलकर स्टील प्लांट, ऊर्जा परियोजनाएं, अंतरिक्ष कार्यक्रम और रक्षा तकनीक में मजबूत साझेदारी स्थापित की है। यह सहयोग आज S-400, ब्रह्मोस मिसाइल और कई रणनीतिक समझौतों के रूप में दिखाई देता है। हाल ही में रूस की संसद में RELOS समझौते को मंजूरी मिलना भी इसी विश्वास का प्रतीक है। पुतिन की भारत यात्रा इस 70 साल पुरानी मित्रता को एक नए अध्याय की ओर ले जाने वाली है।