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भारत-रूस संबंध: नई रणनीति और वैश्विक शक्ति संतुलन में बदलाव

भारत और रूस के बीच बढ़ते संबंधों का विश्लेषण करते हुए, यह लेख बताता है कि कैसे भारत ने अपनी स्वतंत्रता को बनाए रखते हुए वैश्विक शक्ति संतुलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। पुतिन की हालिया यात्रा ने यह स्पष्ट कर दिया है कि भारत अब केवल एक खरीदार नहीं, बल्कि एक रणनीतिक साझेदार बन चुका है। जानें कैसे भारत की मल्टी-अलाइनमेंट नीति और ऊर्जा सुरक्षा के दृष्टिकोण ने उसे वैश्विक मंच पर एक नई पहचान दी है।
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भारत-रूस संबंध: नई रणनीति और वैश्विक शक्ति संतुलन में बदलाव

भारत की मल्टी-अलाइनमेंट नीति: पुतिन की यात्रा का महत्व


यूक्रेन युद्ध के बाद, अमेरिका और यूरोप ने रूस को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अलग करने के लिए कई प्रयास किए। प्रतिबंधों की एक श्रृंखला लागू की गई, और उम्मीद थी कि भारत जैसे सहयोगी भी रूस से दूर हो जाएंगे। लेकिन भारत ने अपने राष्ट्रीय हितों के अनुसार एक अलग रास्ता अपनाया। उसने रूस के साथ संवाद बनाए रखा और व्यापार को भी जारी रखा। इसे हम 'मल्टी-अलाइनमेंट' नीति कह सकते हैं, जहां भारत किसी एक धुरी से बंधने के बजाय सभी धुरियों के साथ संबंध विकसित कर रहा है। पुतिन की भारत यात्रा इस नीति का एक स्पष्ट उदाहरण है, जो दर्शाता है कि भारत अब अपनी रणनीति खुद तय कर रहा है।


ऊर्जा सुरक्षा: भारत का लाभ और डॉलर के दबाव से मुक्ति

भारत, जो दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल उपभोक्ता है, ने युद्ध के दौरान जब पश्चिम ने रूस से ऊर्जा खरीदने को गलत ठहराया, तब साधारण आर्थिक समझ का सहारा लिया। उसने सस्ते तेल की खरीद जारी रखी, जिससे घरेलू महंगाई नियंत्रित रही और ऊर्जा सुरक्षा मजबूत हुई। इसने भारत को एक विश्वसनीय सप्लायर दिया और रूस को एक बड़ा बाजार। यह संबंध अब डॉलर प्रणाली को चुनौती देने की दिशा में बढ़ रहा है, क्योंकि भारत-रूस लेनदेन में स्थानीय मुद्राओं का उपयोग बढ़ रहा है। पुतिन की यात्रा इस आर्थिक साझेदारी को और मजबूत करती है।


रक्षा सहयोग: तकनीकी साझेदारी की ओर बढ़ता भारत

भारत की सैन्य क्षमताओं में रूस का महत्वपूर्ण योगदान रहा है, लेकिन अब भारत केवल हथियार खरीदने वाला ग्राहक नहीं रहना चाहता। वह तकनीकी साझेदारी और संयुक्त निर्माण की दिशा में बढ़ रहा है। S-400 जैसे सिस्टम ने भारत की हवाई सुरक्षा को मजबूत किया है। इसी तरह, Su-30 विमानों के अपग्रेड और नए प्लेटफार्मों की चर्चा भारत को आत्मनिर्भर रक्षा की ओर ले जा रही है। यह स्पष्ट संकेत है कि भारत किसी एक हथियार बाजार पर निर्भर नहीं रहेगा।


BRICS और Global South: भारत की बढ़ती भूमिका

दुनिया की शक्ति संरचना में बदलाव आ रहा है, और BRICS जैसे मंच पश्चिमी व्यवस्था को चुनौती दे रहे हैं। भारत और रूस मिलकर विकासशील देशों की आवाज को मजबूत कर रहे हैं। BRICS बैंक और व्यापार नेटवर्क यह दर्शाते हैं कि अब केवल एक गुट की अर्थव्यवस्था ही दुनिया को नहीं चला सकती। भारत की भूमिका इसमें महत्वपूर्ण होती जा रही है।


चीन के संदर्भ में: रूस का संतुलन और भारत का भरोसा

हालांकि रूस-चीन साझेदारी मजबूत है, लेकिन रूस समझता है कि किसी एक देश पर निर्भरता जोखिम भरी हो सकती है। भारत एक ऐसा मित्र है जिसकी राजनीति स्वतंत्र है। पुतिन ने भारत को प्राथमिकता दी है, जो दर्शाता है कि रूस को भारत जैसे स्थिर सहयोग की आवश्यकता है।


अमेरिका की Indo-Pacific रणनीति पर प्रभाव

अमेरिका ने हमेशा माना कि भारत उसका स्वाभाविक साथी है, लेकिन भारत ने अपनी 'स्ट्रैटेजिक ऑटोनॉमी' को बनाए रखा है। यह यात्रा अमेरिका के लिए एक चुनौती है, क्योंकि भारत अब वैश्विक स्तर पर 'Power to Shape Outcomes' की भूमिका निभा रहा है।


भारत-रूस की नई दोस्ती: पश्चिम को चुनौती

पुतिन और मोदी की मुलाकात की सहजता एक महत्वपूर्ण राजनीतिक संदेश देती है। भारत ने स्पष्ट कर दिया है कि उसका हित सबसे पहले है। यह साझेदारी आने वाले वर्षों में ऊर्जा, रक्षा और बहुपक्षीय मंचों पर महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी।