भारत विभाजन: एक ऐतिहासिक दृष्टिकोण

भारत विभाजन का सच
कहना कि भारत का विभाजन अंग्रेजों ने किया, न केवल एक भ्रामक धारणा है, बल्कि यह सद्भावना की कमी भी दर्शाता है। वास्तव में, ब्रिटिश शासकों ने 1940 से मार्च 1947 के बीच कांग्रेस और मुस्लिम लीग के नेताओं के बीच कई समझौतों के माध्यम से भारत को एकजुट रखने के प्रयास किए। यह तथ्य विभिन्न मिशनों, वार्ताओं, दस्तावेजों और घोषणाओं में स्पष्ट रूप से दर्ज है।
हिंदू नेताओं ने पिछले सौ वर्षों में 'राष्ट्रवाद' के झूठे नारों से खुद को भ्रमित किया है। विभाजन के लिए वे अंग्रेजों को दोषी ठहराते हैं, जबकि असल में विभाजन के समर्थक खुद कहते थे, 'भारत तेरे टुकड़े होंगे, इन्शाल्लाह!' यह बात किसी नेता को सुनाई नहीं देती, भले ही यह दिल्ली में और टीवी पर घंटों दिखाई दे।
वास्तविकता यह है कि कई हिंदू महापुरुषों ने 19वीं सदी के अंत तक कहा था कि अंग्रेजों ने हिंदुओं को सम्मानपूर्वक खड़े होने का अवसर दिया। उन्होंने भारत को पहली बार एक राजनीतिक इकाई के रूप में देखा और उसका प्रबंधन किया।
1858 का पहला राजनीतिक अखिल भारतीय मानचित्र अंग्रेजों द्वारा बनाया गया था। इससे पहले, भारत का कोई मानचित्र भारतीय स्रोत से नहीं मिला। अंग्रेजों ने न केवल मानचित्र तैयार किया, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा, सैनिक तंत्र, यातायात, संचार, रेलवे, अस्पताल, डाक, करेंसी, और नागरिक-सामाजिक समानता की व्यवस्था भी की।
19-20वीं सदी के डेढ़ सौ वर्षों में, हर महत्वाकांक्षी भारतीय इंग्लैंड जाकर ही शिक्षित हुआ। अंग्रेजों ने भारत में पुलिस, कोर्ट, दंड संहिता, और स्थानीय स्वशासन की व्यवस्था की।
किसी 'लुटेरे' ने ऐसा नहीं किया। मुहम्मद घूरी से लेकर टीपू सुल्तान तक, किसी भी बाहरी शासक ने जनहित की कोई चीज नहीं दी। आज भी, जो लोग मुस्लिम शासकों की विरासत को ढोते हैं, वे भारत के लिए समस्या बने हुए हैं।
अंग्रेजों ने जिहाद को समाप्त किया, जो सदियों से हिंदुओं पर हो रहा था। जबकि आज, कई 'देशी भाई' वही कर रहे हैं जो कभी अंग्रेजों ने नहीं किया।
अंग्रेजों की दी हुई व्यवस्थाएं आज भी भारतीयों के लिए उपयोगी हैं। यदि वे अनुपयोगी होतीं, तो 1947 के बाद उन्हें त्याग दिया जाता। लेकिन भारतीयों ने उन्हें बनाए रखा है।
अंग्रेजों की राजनीतिक, रणनीतिक, और आर्थिक देन की तुलना देसी राज नेताओं द्वारा की जानी चाहिए। तब स्पष्ट होगा कि 'भारत की लूट' और 'मैकॉले' के दो जुमले के सिवा, हिंदू बुद्धिजीवियों ने कोई ठोस अध्ययन नहीं किया।
इसलिए, 'भारत विभाजन अंग्रेजों ने किया' कहना एक आत्म-प्रवंचना है। वास्तव में, अंग्रेजों ने 1940 से मार्च 1947 तक कई प्रयास किए कि भारत एक बना रहे।
हालांकि, मुस्लिम मांगों को भी 'अंग्रेजों ने करवाया' कहने का कोई आधार नहीं है। इस्लामी सिद्धांत और इतिहास के अनुसार, यह मुस्लिम नेताओं का अपना विचार था।
अंततः, विभाजन की रूपरेखा कांग्रेस और मुस्लिम लीग की सहमति से बनी। लॉर्ड माउंटबेटन की गलती थी कि उन्होंने विभाजन को जल्दबाजी में लागू किया।
सभी प्रमाण दिखाते हैं कि ब्रिटिश सरकार ने 1947 तक कई प्रयास किए कि उनका साम्राज्य बना रहे।
इसलिए, यह कहना कि 'अंग्रेजों ने विभाजन किया' एक बड़ा झूठ है।