भोजन की बर्बादी: वैश्विक संकट और भारत की भूमिका

UNEP रिपोर्ट का खुलासा
UNEP रिपोर्ट: हर साल दुनिया भर में एक ट्रिलियन डॉलर से अधिक मूल्य का भोजन बर्बाद होता है, जबकि लगभग 780 मिलियन लोग भूख से जूझ रहे हैं। UNEP की फूड वेस्ट रिपोर्ट 2024 के अनुसार, 2022 में वैश्विक स्तर पर लगभग 1.05 अरब टन खाद्य पदार्थ बर्बाद हुए। इसमें चीन, भारत और अमेरिका का सबसे बड़ा योगदान रहा है। भारत का नाम इस सूची में शीर्ष देशों में शामिल है, जो इस वैश्विक संकट की गंभीरता को और बढ़ाता है।
भोजन की बर्बादी का सामाजिक पहलू
भोजन की बर्बादी केवल प्लेट में बचे खाने तक सीमित नहीं है, बल्कि यह हमारे समाज की असमानता और संवेदनहीनता का भी प्रतीक है। रिपोर्ट के अनुसार, घरों से सबसे अधिक बर्बादी होती है। औसतन, हर व्यक्ति साल में लगभग 132 किलो खाना फेंक देता है, जिसमें से 79 किलो केवल घरों से आता है। यह जानकर आश्चर्य होता है कि गरीब और अमीर देशों के बीच इस मामले में ज्यादा अंतर नहीं है। उच्च आय वाले देशों में प्रति व्यक्ति 81 किलो भोजन बर्बाद होता है, जबकि मध्यम आय वाले देशों में यह आंकड़ा 86 किलो है। इसका मतलब है कि फूड वेस्ट अमीरी की नहीं, बल्कि आदत की समस्या है।
भारत की स्थिति
जनसंख्या और जिम्मेदारी दोनों बड़ी
भारत, जो विश्व का सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश है, हर साल 78.1 मिलियन टन भोजन बर्बाद करता है। यह मात्रा अमेरिका के मुकाबले तीन गुना है, जहां अमेरिका लगभग 24.7 मिलियन टन भोजन बर्बाद करता है। भारत में प्रति व्यक्ति औसत फूड वेस्ट लगभग 55 किलो सालाना है। यह आंकड़ा केवल भोजन की बर्बादी नहीं, बल्कि उस संसाधन की भी हानि है, जैसे जल, भूमि और ऊर्जा, जो भोजन तैयार करने में खर्च होती है। विशेष रूप से शहरी क्षेत्रों में फूड वेस्ट की मात्रा तेजी से बढ़ रही है, जहां लोग उपभोग के बाद बचे हुए खाने को सीधे कूड़े में फेंक देते हैं।
पर्यावरण पर प्रभाव
पर्यावरण पर बढ़ता बोझ और वैश्विक संकट
बर्बाद किया गया भोजन लैंडफिल में सड़कर मीथेन गैस का उत्सर्जन करता है, जो कार्बन डाइऑक्साइड से कहीं अधिक शक्तिशाली ग्रीनहाउस गैस है। विशेषज्ञों के अनुसार, वैश्विक खाद्य प्रणाली से होने वाले उत्सर्जन का लगभग 9 प्रतिशत केवल फूड वेस्ट से आता है। यह वही उत्सर्जन है जो जलवायु परिवर्तन को और तेज कर रहा है। इसके अलावा, लगभग 30 प्रतिशत कृषि भूमि पर ऐसी फसलें उगाई जाती हैं, जिन्हें अंततः कोई नहीं खाता। यह विडंबना है कि एक ओर धरती भूख से तड़प रही है और दूसरी ओर भोजन कूड़े में सड़ रहा है।
समाधान की दिशा में कदम
घर से शुरुआत जरूरी
रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि फूड वेस्ट की सबसे बड़ी जिम्मेदारी घरों की है। छोटे स्तर पर बदलाव, जैसे जरूरत के अनुसार खाना बनाना, बचे हुए भोजन का दान करना और खाद बनाना, बड़े स्तर पर प्रभाव डाल सकते हैं। कई देशों में 'फूड बैंक्स' और 'जीरो वेस्ट किचन' जैसी पहलों की शुरुआत की गई है। भारत में भी स्थानीय प्रशासन और नागरिक संगठनों को इस दिशा में ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है ताकि संसाधनों की बचत हो सके और भूख मिटाई जा सके।