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मणिपुर में राजनीतिक अस्थिरता: सरकार गठन में देरी और चुनाव की संभावनाएं

मणिपुर में राष्ट्रपति शासन के छह महीने बाद भी सरकार का गठन नहीं हो पाया है। प्रधानमंत्री की यात्रा के बाद स्थिति में कुछ शांति आई है, लेकिन पूर्व मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह को हटाने की कोशिशें सफल नहीं हो रही हैं। विधानसभा के स्पीकर और भाजपा के विधायक सरकार गठन के लिए प्रयासरत हैं, जबकि चुनाव की संभावनाएं भी चर्चा का विषय बनी हुई हैं। जानिए इस राजनीतिक संकट का क्या असर होगा।
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मणिपुर में राजनीतिक अस्थिरता: सरकार गठन में देरी और चुनाव की संभावनाएं

मणिपुर की राजनीतिक स्थिति

मणिपुर में वर्तमान राजनीतिक स्थिति स्पष्ट नहीं है। राष्ट्रपति शासन लागू होने के छह महीने से अधिक समय हो चुका है। हालाँकि, स्थिति में कुछ हद तक शांति स्थापित हो गई है, प्रधानमंत्री की हालिया यात्रा के बाद से बड़े पैमाने पर हिंसा की घटनाएं नहीं हुई हैं। फिर भी, राज्य में सरकार का गठन नहीं हो पा रहा है। पहले यह उम्मीद जताई जा रही थी कि जल्द ही एक नई सरकार बनेगी, जिसके बाद मणिपुर के राज्यपाल, पूर्व केंद्रीय गृह सचिव अजय कुमार भल्ला, दिल्ली के उप राज्यपाल के रूप में लौटेंगे। लेकिन ऐसा नहीं हो सका। पूर्व मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह को हटाने की कोशिशें भी सफल नहीं हो रही हैं, क्योंकि मैती समुदाय के विधायक उनके समर्थन में हैं.


भविष्य की चुनावी संभावनाएं

हाल ही में, मणिपुर विधानसभा के स्पीकर टी सत्यब्रत सिंह दिल्ली आए, जहाँ भाजपा के अन्य विधायक भी उपस्थित थे। सभी का एक ही उद्देश्य है - सरकार का गठन करना, क्योंकि अगले चुनाव में केवल डेढ़ साल का समय बचा है। यदि एक लोकप्रिय सरकार बनानी है, तो उसे काम करने का समय भी चाहिए। भाजपा के शीर्ष नेतृत्व को यह चिंता है कि नया मुख्यमंत्री मैती समुदाय से बाहर का होगा, जिससे हिंसा फिर से भड़क सकती है। इस स्थिति में विधानसभा को भंग करने और अगले साल अप्रैल में होने वाले चुनावों के साथ मणिपुर का चुनाव कराने का सुझाव भी दिया जा रहा है। भाजपा के कई नेता मानते हैं कि चुनाव परिणामों के बाद मैती मुख्यमंत्री बनाने में कोई समस्या नहीं होगी, लेकिन लोकसभा चुनाव में मिली हार के कारण विधानसभा चुनाव में भी हार का डर बना हुआ है। इसलिए स्थिति को स्थिर बनाए रखा गया है.