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मतदाता सूची के विशेष पुनरीक्षण में राज्यों के बीच टकराव

चुनाव आयोग ने 12 राज्यों में मतदाता सूची के विशेष पुनरीक्षण की प्रक्रिया शुरू की है, जिसमें विभिन्न राज्यों के बीच टकराव की स्थिति उत्पन्न हो गई है। भाजपा और विपक्षी दलों के बीच विवाद बढ़ता जा रहा है, खासकर तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल और केरल में। इस प्रक्रिया में दस्तावेजों की मांग और सुरक्षा व्यवस्था को लेकर भी मतभेद हैं। जानें इस मुद्दे पर और क्या हो रहा है और कैसे यह चुनावी प्रक्रिया को प्रभावित कर सकता है।
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मतदाता सूची के विशेष पुनरीक्षण में राज्यों के बीच टकराव

मतदाता सूची का विशेष पुनरीक्षण शुरू

चुनाव आयोग ने मंगलवार, चार नवंबर को देश के 12 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) की प्रक्रिया आरंभ की। पहले चरण में बूथ लेवल अधिकारी (बीएलओ) घर-घर जाकर मतगणना प्रपत्र वितरित करेंगे। इसके बाद, ये प्रपत्र एकत्रित कर कंप्यूटर में अपलोड किए जाएंगे और मसौदा सूची जारी की जाएगी। बिहार में एसआईआर के परीक्षण के दौरान कोई दस्तावेज नहीं मांगा गया है, जबकि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार आधार को भी स्वीकार किया जा रहा है। इस बार एसआईआर में बिहार की तुलना में कम टकराव की संभावना जताई जा रही थी।


हालांकि, तमिलनाडु की एमके स्टालिन सरकार ने इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है, जबकि ममता बनर्जी ने सड़क पर उतरकर इसका विरोध किया है। केरल में भी इसी तरह का रुख देखने को मिल रहा है। इन तीनों राज्यों में भाजपा विरोधी पार्टियों की सरकारें हैं, और एनडीए दो राज्यों में मुख्य विपक्षी गठबंधन के रूप में मौजूद है। केरल में भी भाजपा अपनी स्थिति मजबूत कर रही है, जिससे टकराव की स्थिति बन रही है।


बिहार में स्थिति भिन्न थी, क्योंकि वहां एनडीए की सरकार थी, जिससे कोई असहयोग नहीं हुआ। चुनाव आयोग को केवल विपक्षी गठबंधन का सामना करना पड़ा। इन राज्यों में पहले दिन से ही विवाद शुरू हो गया है। बंगाल में बीएलओ प्रशिक्षण के लिए नहीं जा रहे थे, और अनुशासनात्मक कार्रवाई की धमकी देने पर भी प्रदर्शन जारी रहा। बीएलओ सुरक्षा व्यवस्था की भी मांग कर रहे हैं, जिससे राज्य सरकारों में अविश्वास की स्थिति बनी हुई है।


भाजपा ने पश्चिम बंगाल से इस प्रक्रिया की शुरुआत की है। भाजपा ने चुनाव आयोग से कहा है कि वह 24 जून के बाद जारी जन्म प्रमाणपत्रों को स्वीकार न करे। ध्यान रहे कि 24 जून को चुनाव आयोग ने बिहार में एसआईआर की अधिसूचना जारी की थी, जिसमें मतदाताओं के सत्यापन के लिए 11 दस्तावेजों की सूची दी गई थी। इस सूची में आधार शामिल नहीं था, जिससे कई लोगों को मतगणना प्रपत्र जमा करने में कठिनाई हुई। इसके बाद, पश्चिम बंगाल में जन्म प्रमाणपत्र बनाने का काम तेजी से शुरू हुआ। ममता बनर्जी सरकार ने अपने कार्यकर्ताओं को मैदान में उतारा, जिन्होंने मतदाता सूची की जांच की और सुनिश्चित किया कि उनके समर्थकों के पास आवश्यक दस्तावेज हों।


अब भाजपा का कहना है कि चुनाव आयोग को बिहार में एसआईआर की अधिसूचना के बाद तैयार किए गए प्रमाणपत्रों को स्वीकार नहीं करना चाहिए। इसके लिए भाजपा के नेता सड़क पर उतरने के लिए भी तैयार हैं। वहीं, तमिलनाडु और केरल में अधिकांश लोगों के पास पहले से जन्म प्रमाणपत्र या 10वीं कक्षा तक के प्रमाणपत्र हैं, लेकिन पिछले चार महीनों में कई लोगों ने नए प्रमाणपत्र बनवाए हैं। एनडीए की पार्टियां भी इस मुद्दे पर विरोध करेंगी। विपक्षी पार्टियों का आरोप है कि वे बूथ लेवल एजेंट्स तो उपलब्ध करा रही हैं, लेकिन बूथ लेवल अधिकारियों से सहयोग नहीं मिल रहा है।