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मनरेगा का नया रूप: जी राम जी योजना की चुनौतियाँ और प्रभाव

केंद्र सरकार ने महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार योजना, मनरेगा को समाप्त कर नई जी राम जी योजना लागू करने का निर्णय लिया है। यह योजना न केवल नाम बदलने का मामला है, बल्कि इसके उद्देश्य और वित्तीय ढांचे में भी महत्वपूर्ण परिवर्तन किए गए हैं। नई योजना में रोजगार की गारंटी और वित्तीय बोझ का वितरण राज्य सरकारों पर डाला गया है, जिससे राज्यों पर अतिरिक्त दबाव पड़ेगा। जानें इस नई योजना के संभावित प्रभाव और चुनौतियाँ क्या हैं।
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मनरेगा का नया रूप: जी राम जी योजना की चुनौतियाँ और प्रभाव

मनरेगा का अंत और नई योजना का आगाज़

केंद्र सरकार महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार योजना, जिसे आमतौर पर मनरेगा के नाम से जाना जाता है, का केवल नाम नहीं बदल रही है, बल्कि इसे समाप्त करने की प्रक्रिया में है। 2005 में स्थापित इस कानून को खत्म किया जा रहा है और इसकी जगह 'विकसित भारत, गारंटी फॉर रोजगार एंड आजीविका मिशन' यानी 'जी राम जी' कानून लाया जाएगा। संसद के दोनों सदनों से मंजूरी मिलने के बाद, राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के साथ यह नया कानून लागू होगा। इस विधेयक में स्पष्ट रूप से उल्लेख है कि यह एक नई योजना है और पुरानी योजना को समाप्त किया जा रहा है। सरकार और भारतीय जनता पार्टी इसे केवल नाम परिवर्तन के रूप में प्रस्तुत कर रही है, जबकि विपक्षी दल इस मुद्दे पर महात्मा गांधी बनाम जी राम जी के विवाद में उलझ रहे हैं।


नई योजना का उद्देश्य और वित्तीय बोझ

वास्तव में, इस नए कानून का उद्देश्य भी पूरी तरह से बदल दिया गया है। यह पहले की रोजगार गारंटी योजना के समान नहीं है। पुरानी योजना मांग आधारित थी, जिसमें ग्रामीण क्षेत्रों में लोग जरूरत पड़ने पर कानूनी रूप से 100 दिन का रोजगार प्राप्त कर सकते थे। नई योजना अब सप्लाई या आवंटन आधारित होगी, जिसमें सरकार द्वारा काम निर्धारित किया जाएगा और उसी के अनुसार मजदूरों को रोजगार मिलेगा। इसके अलावा, नई योजना का वित्तीय बोझ राज्य सरकारों पर डाल दिया गया है। मनरेगा में अकुशल मजदूरों की पूरी मजदूरी केंद्र सरकार द्वारा दी जाती थी, जबकि अब जी राम जी योजना में यह 60:40 के अनुपात में बदल दिया गया है।


राज्यों पर बढ़ता वित्तीय दबाव

विपक्षी नेताओं के अनुसार, इस योजना के लागू होने के बाद राज्यों पर 50,000 करोड़ रुपये का अतिरिक्त बोझ पड़ेगा। जीएसटी दरों में बदलाव के कारण राज्यों को पहले से ही कम राजस्व मिल रहा है, और दूसरी योजनाओं पर खर्च के कारण उनके पास पर्याप्त धन नहीं होगा। इसका परिणाम यह होगा कि राज्य सरकारें आवश्यक धन आवंटित नहीं कर पाएंगी, जिससे काम के दिन कम होंगे और मजदूरों का भुगतान रुक जाएगा।


नई योजना की मांग आधारित प्रणाली की कमी

इस योजना की एक महत्वपूर्ण कमी यह है कि यह मांग आधारित नहीं रह जाएगी। जब काम देने की योजना मांग आधारित नहीं होगी, तो इसे गारंटी देने वाली योजना कैसे कहा जा सकता है? केंद्र सरकार हर साल एक बजट तय करेगी और अपने नियमों के अनुसार राज्यों को आवंटन करेगी। यदि किसी राज्य को आवंटित धन समाप्त हो जाता है, तो उसके बाद राज्य को अपने खजाने से खर्च उठाना होगा।


तकनीकी बाधाएँ और मजदूरों की स्थिति

नए कानून में ग्राम पंचायतों को योजना बनाने के लिए जीआईएस आधारित टूल्स का उपयोग अनिवार्य किया गया है। यदि गांवों में रहने वाले किसान और मजदूर तकनीकी उपयोग में विफल रहते हैं, तो उन्हें कोई काम नहीं मिलेगा। यह योजना पूरी तरह से विकेंद्रित और जनता के हाथों से केंद्र के हाथों में केंद्रीकृत की जा रही है।


निष्कर्ष: एक राजनीतिक निर्णय

नए कानून में एक महत्वपूर्ण आपत्ति यह है कि राज्यों को हर साल पहले से ही 60 दिन का समय नोटिफाई करना होगा, जब जी राम जी योजना के तहत कोई काम नहीं होगा। इसका मतलब है कि मजदूरों को जबरन निजी ठेकेदारों या जमींदारों के पास काम करना होगा। यह स्पष्ट है कि सरकार रोजगार गारंटी या मजदूरों के कल्याण की बजाय केंद्र नियंत्रित मजदूर सप्लाई की योजना चला रही है।