ममता बनर्जी की बांग्ला अस्मिता की राजनीति: भाजपा की चुनौती

ममता बनर्जी का बांग्ला अस्मिता का दांव
भारतीय जनता पार्टी बांग्ला अस्मिता के मुद्दे पर प्रभावी प्रतिक्रिया देने में असफल रही है। पिछले विधानसभा चुनाव में ममता बनर्जी ने इस कार्ड का कुशलता से उपयोग किया था। उस समय चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर उनके चुनावी प्रबंधन में शामिल थे। उन्होंने 'खेला होबे' का नारा दिया और 'जय श्रीराम' के मुकाबले 'जय मां काली' का नारा भी उठाया। इस बार ममता बनर्जी 'मां, माटी, मानुष' के नारे पर ध्यान केंद्रित कर रही हैं। 21 जुलाई को शहीद दिवस के कार्यक्रम में उन्होंने आगामी विधानसभा चुनाव का एजेंडा स्पष्ट कर दिया। उन्होंने देवियों के मुद्दे को फिर से उठाया है और बांग्ला अस्मिता का दांव खेला है। ममता ने आरोप लगाया है कि बांग्ला बोलने वालों को उन राज्यों में प्रताड़ित किया जा रहा है, जहां भाजपा की सरकार है। इस मुद्दे पर ममता बनर्जी देशभर में आंदोलन करेंगी और दिल्ली में भी प्रदर्शन आयोजित करेंगी। उल्लेखनीय है कि उनकी पार्टी ने दिल्ली से लेकर छत्तीसगढ़ तक कई राज्यों में बांग्ला भाषियों के खिलाफ प्रताड़ना का आरोप लगाया है।
भाषाई आतंकवाद का आरोप
ममता बनर्जी ने भाजपा पर भाषाई आतंकवाद फैलाने का आरोप लगाते हुए बांग्ला भाषा के मुद्दे को उठाया। यह बात सभी को ज्ञात है कि पश्चिम बंगाल में भाषा का मुद्दा अत्यंत संवेदनशील है, जो बंगाली लोगों की पहचान से जुड़ा हुआ है। भाजपा के लिए यह चुनौती है कि ममता बनर्जी की इस राजनीति का प्रभावी उत्तर देने के लिए उनके पास कोई मजबूत बांग्ला अस्मिता वाला नेता नहीं है। ममता ने एक और दांव 'दुर्गा आंगन' का खेला है। उन्होंने कहा कि दीघा में जगन्नाथ धाम के निर्माण की तरह, दुर्गा आंगन का निर्माण किया जाएगा, जहां लोग सालभर मां दुर्गा के दर्शन और पूजा कर सकेंगे। वर्तमान में दुर्गापूजा साल में एक बार होती है, जब लोग पंडालों में जाते हैं। ममता को यह भलीभांति ज्ञात है कि भाजपा मंदिर और 'जय श्रीराम' का नारा उठाएगी, इसलिए उन्होंने काली और दुर्गा के साथ बांग्ला अस्मिता को जोड़ दिया है।