मल्चिंग तकनीक: प्राकृतिक खेती में किसानों की नई दिशा

मल्चिंग तकनीक, रेवाड़ी
हरियाणा में किसान अब प्राकृतिक खेती की ओर तेजी से बढ़ रहे हैं। इस विधि में मिट्टी की नमी, संरचना और पोषण को बनाए रखना अत्यंत महत्वपूर्ण है। प्रगतिशील किसान यशपाल खोला का कहना है कि मल्चिंग तकनीक एक पुरानी लेकिन प्रभावी विधि है। यह न केवल मिट्टी की रक्षा करती है, बल्कि फसल उत्पादन, पोषण और जल संरक्षण में भी महत्वपूर्ण बदलाव ला सकती है। कम लागत और अधिक लाभ के कारण, मल्चिंग प्राकृतिक खेती का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बनती जा रही है। हालांकि, प्राकृतिक मल्च का उपयोग करते समय नाइट्रोजन की कमी हो सकती है, इसलिए गोबर की खाद का उपयोग करना आवश्यक है।
मल्चिंग तकनीक क्या है?
मल्चिंग की प्रक्रिया में खेत की मिट्टी की ऊपरी परत को किसी आवरण से ढक दिया जाता है। यह आवरण मिट्टी को सूरज की गर्मी, बारिश के कटाव, खरपतवार और नमी के वाष्पीकरण से बचाता है। यह प्राकृतिक सामग्री (जैसे सूखी घास, फसल अवशेष, पत्तियां, नारियल की भूसी, कम्पोस्ट) या कृत्रिम सामग्री (जैसे काली या चांदी-काली प्लास्टिक शीट, बायोडिग्रेडेबल फिल्म, रबर ग्रन्युल मल्च) से बनाया जा सकता है।
मल्चिंग के फायदे
मल्चिंग मिट्टी की नमी को बनाए रखने में मदद करती है, जिससे सिंचाई की आवश्यकता कम होती है। यह खरपतवारों की वृद्धि को रोकती है, क्योंकि उन्हें प्रकाश नहीं मिलता। पौधों की जड़ों को गर्मी से सुरक्षा मिलती है और मिट्टी ठंडी रहती है। बीज जल्दी अंकुरित होते हैं और जड़ें मजबूत बनती हैं। प्राकृतिक संतुलन में सुधार होने से उर्वरक और कीटनाशकों की आवश्यकता भी कम होती है।
फसलों के लिए मल्चिंग
विभिन्न फसलों के लिए अलग-अलग प्रकार की मल्चिंग उपयुक्त होती है। उदाहरण के लिए, टमाटर और मिर्च के लिए काली प्लास्टिक मल्च, लौकी और खीरे के लिए सूखी घास या नारियल की भूसी, बैंगन और भिंडी के लिए फसल अवशेष और पत्तियां, और आलू-प्याज के लिए भूसा या जैविक कम्पोस्ट सबसे अच्छे होते हैं। बारिश वाले क्षेत्रों में अजैविक मल्च जल कटाव और खरपतवार को रोकने में मदद करती है, जबकि ठंडे क्षेत्रों में काली प्लास्टिक मल्च मिट्टी को गर्म रखती है।