महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश में रहस्यमयी बीमारी से बच्चों की मौत: क्या है कारण?

मौतों का रहस्य
रहस्यमयी बीमारी से मौतें: पिछले एक महीने में महाराष्ट्र के नागपुर और मध्यप्रदेश के छिंदवाड़ा में कम से कम 14 बच्चों की जान एक अनजानी बीमारी के चलते चली गई है। इन बच्चों की उम्र 15 वर्ष से कम थी और सभी को तेज बुखार के साथ अस्पताल में भर्ती किया गया था। चिकित्सकों के अनुसार, ये मामले एक्यूट एन्सेफेलाइटिस सिंड्रोम (AES) के समान प्रतीत होते हैं, जिसमें मस्तिष्क में अचानक सूजन आ जाती है या उसका कार्य करना बंद हो जाता है, लेकिन इसके पीछे का कारण स्पष्ट नहीं है।
बच्चों की उम्र 3 से 10 वर्ष के बीच
इन बच्चों की हालत अस्पताल में भर्ती होने के कुछ घंटों के भीतर बिगड़ने लगी। कई बच्चे 24 घंटे के भीतर बेहोश हो गए। सबसे चिंताजनक बात यह है कि इनमें से अधिकांश बच्चों को गंभीर गुर्दा (किडनी) फेल्योर का सामना करना पड़ा और उन्होंने मूत्र त्यागना बंद कर दिया। कुछ बच्चों को डायलिसिस और वेंटिलेटर पर रखा गया, लेकिन फिर भी उनकी जान नहीं बचाई जा सकी। छिंदवाड़ा के परासिया ब्लॉक में स्थिति और भी गंभीर रही, जहाँ छह बच्चों की मौत हुई, और सभी की उम्र 3 से 10 वर्ष के बीच थी। यह क्षेत्र अब हाई-अलर्ट ज़ोन घोषित किया गया है।
जांच में वायरस का कोई प्रमाण नहीं
चौंकाने वाली बात यह है कि अब तक किए गए सीरिब्रोस्पाइनल फ्लूड (CSF) और रक्त परीक्षणों में किसी भी ज्ञात बैक्टीरिया या वायरस का कोई प्रमाण नहीं मिला है। इसका मतलब है कि सामान्यतः एन्सेफेलाइटिस के लिए जिम्मेदार संक्रमण, जैसे कि जापानी एन्सेफेलाइटिस (JE) या अन्य वायरल बुखार, इन मामलों में नहीं पाए गए हैं।
अस्पताल में भर्ती बच्चों की संख्या बढ़ रही है
इस रहस्य को सुलझाने के लिए पुणे स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी और नेशनल सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल (NCDC) की टीमें मौके पर भेजी गई हैं। ग्रामीण विदर्भ और आस-पास के जिलों में निगरानी बढ़ा दी गई है, क्योंकि अब भी कई बच्चे इसी तरह के लक्षणों के साथ अस्पतालों में भर्ती हो रहे हैं।
एन्सेफेलाइटिस बनाम एन्सेफैलोपैथी
प्रारंभिक जांच के बाद डॉक्टर अब कुछ मामलों को 'एन्सेफैलोपैथी' मान रहे हैं, न कि केवल एन्सेफेलाइटिस। यह अंतर महत्वपूर्ण है, क्योंकि एन्सेफेलाइटिस आमतौर पर वायरल संक्रमण के कारण मस्तिष्क की सूजन होती है, जबकि एन्सेफैलोपैथी में मस्तिष्क की कार्यप्रणाली किसी ज़हरीले तत्व, प्रदूषण या पर्यावरणीय कारणों से प्रभावित हो सकती है। इसका मतलब है कि यह कोई नया संक्रमण, ज़हर या फिर पर्यावरणीय कारक भी हो सकता है।
जापानी एन्सेफेलाइटिस, एक प्रमुख कारण
भारत में AES के मामलों का एक बड़ा कारण जापानी एन्सेफेलाइटिस (JE) रहा है। यह एक वायरल रोग है, जो क्यूलेक्स मच्छरों के जरिए फैलता है। ये मच्छर अक्सर चावल के खेतों, दलदलों या रुके हुए पानी में पनपते हैं और जानवरों जैसे सूअर और पक्षियों से वायरस लेकर मनुष्यों तक पहुंचाते हैं। मनुष्य इस वायरस के लिए 'संयोगवश' होस्ट होते हैं, यानी वे इसे दूसरों तक नहीं फैलाते।
लक्षण क्या होते हैं?
JE और अन्य वायरल एन्सेफेलाइटिस के लक्षण एक जैसे होते हैं। शुरुआत में तेज बुखार होता है और फिर न्यूरोलॉजिकल (मस्तिष्क से जुड़े) लक्षण सामने आते हैं। आम लक्षणों में सिरदर्द, बेहोशी, शरीर में झटके, गर्दन की अकड़न, रोशनी से चिढ़, और चलने-फिरने में असमर्थता शामिल हैं। कई बार यह बीमारी इतनी तेज़ी से बढ़ती है कि रोगी को लकवा, याद्दाश्त की कमी और मानसिक मंदता तक हो सकती है। गंभीर मामलों में मृत्यु दर 20-30% तक हो सकती है और जो बचते हैं, वे भी जीवन भर के लिए विकलांग हो सकते हैं।
इलाज और रोकथाम
JE या AES का फिलहाल कोई विशिष्ट इलाज नहीं है। डॉक्टर केवल लक्षणों को नियंत्रित करने पर ध्यान देते हैं – जैसे बुखार कम करने के लिए पेरासिटामोल देना, निर्जलीकरण से बचाने के लिए तरल पदार्थ देना, और ज़रूरत पड़ने पर वेंटिलेटर या डायलिसिस का सहारा लेना। यही कारण है कि बचाव और टीकाकरण ही इसका सबसे प्रभावी उपाय माना जाता है।
JE का टीकाकरण
भारत सरकार ने 2013 में JE को यूनिवर्सल इम्यूनाइजेशन प्रोग्राम में शामिल किया था। बच्चों को इसकी दो खुराक दी जाती हैं – पहली खुराक 9 महीने की उम्र में और दूसरी 16 से 24 महीने के बीच। यह टीका अभी देश के 24 राज्यों के 334 जिलों में दिया जा रहा है, जहाँ JE को स्थानिक रोग माना गया है।
सरकार की चुप्पी पर सवाल
इस पूरे मामले में स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने यह चिंता जताई है कि अब तक केंद्र सरकार या स्वास्थ्य एजेंसियों की ओर से कोई स्पष्ट सार्वजनिक बयान नहीं आया है। जबकि मामला गंभीर है और जानलेवा भी साबित हो चुका है, फिर भी इस रहस्यपूर्ण बीमारी को लेकर कोई ठोस जानकारी या दिशा-निर्देश जनता के सामने नहीं रखे गए हैं।