मालेगांव ब्लास्ट मामले में सभी आरोपियों को बरी करने का फैसला, हिंदू नेताओं ने जताया स्वागत

विशेष NIA अदालत का ऐतिहासिक फैसला
गुरुवार को, 2008 के मालेगांव ब्लास्ट मामले में विशेष राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) अदालत ने सभी सात आरोपियों को बरी कर दिया। इस फैसले का हिंदू धार्मिक नेताओं ने जोरदार स्वागत किया है। उन्होंने इसे 'न्याय का क्षण' करार देते हुए कांग्रेस और गांधी परिवार से माफी मांगने की मांग की है, क्योंकि उनका मानना है कि यह हिंदुओं को बदनाम करने की एक 'साजिश' थी।यह निर्णय न केवल कानूनी दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह 'हिंदू आतंकवाद' या 'भगवा आतंकवाद' के खिलाफ बनी राजनीतिक कथा पर भी गंभीर सवाल उठाता है, जिसने पिछले एक दशक से भारतीय राजनीति में गहरी जड़ें जमा रखी थीं।
अदालत ने उन आरोपियों को बरी किया, जिनमें पूर्व भाजपा सांसद साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर और लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद श्रीकांत पुरोहित शामिल हैं। अदालत ने कहा कि आरोपों के लिए पर्याप्त सबूत नहीं थे, जिससे यह स्पष्ट होता है कि जांच एजेंसियां आरोपों को साबित करने में असफल रहीं। NIA कोर्ट ने बरी होने के कारणों में अपर्याप्त सबूतों और कानूनी प्रक्रियात्मक विफलताओं को उजागर किया।
हिंदू धार्मिक नेताओं ने आरोप लगाया कि यह मामला UPA सरकार के कार्यकाल के दौरान एक राजनीतिक साजिश का हिस्सा था, जिसका उद्देश्य 'हिंदू आतंकवाद' जैसे शब्दों का उपयोग करके हिंदुओं को बदनाम करना था।
इस फैसले के बाद, स्वामी जितेंद्रानंद सरस्वती ने कहा, "जहाँ धर्म होता है, वहाँ विजय निश्चित होती है। मालेगांव ब्लास्ट मामला बेहद जटिल था। UPA के कार्यकाल में, कई संतों को सालों तक जेल में रखा गया।"
महंत राजू दास ने कहा, "इस घटना ने हिंदू भावनाओं को गहराई से ठेस पहुंचाई। आज के अदालत के फैसले से सभी सातों को बरी कर दिया गया है। कांग्रेस को माफी मांगनी चाहिए।"
पूर्व केंद्रीय मंत्री साध्वी निरंजन ज्योति ने कहा, "सत्य की हमेशा विजय होती है। कांग्रेस ने भगवा को आतंकवाद का लेबल लगाने की हिम्मत की।"
हरिद्वार के संतों ने भी इस फैसले का स्वागत किया और न्यायपालिका के प्रति आभार व्यक्त किया।
अदालत ने छह मृतकों के परिवारों को 2 लाख रुपये और हर घायल पीड़ित को 50,000 रुपये का मुआवजा देने का आदेश भी दिया। यह मुआवजा पीड़ितों के लिए न्याय और राहत की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।