मेनोपॉज: महिलाओं के स्वास्थ्य पर प्रभाव और जागरूकता की आवश्यकता

मेनोपॉज की समझ और इसके प्रभाव
मेनोंपॉज, जिसे आमतौर पर रजोनिवृत्ति के नाम से जाना जाता है, को अक्सर केवल एक शारीरिक परिवर्तन के रूप में देखा जाता है। यह एक प्राकृतिक जैविक प्रक्रिया है, लेकिन इसके बारे में समाज में खुलकर चर्चा नहीं होती है, जिससे यह एक छिपा हुआ विषय बन जाता है। श्रीमती बिड़ला ने इस बात पर जोर दिया है कि मेनोपॉज केवल शारीरिक बदलाव नहीं लाता, बल्कि यह गहरे भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक परिवर्तनों को भी जन्म देता है, जिन्हें अक्सर अनदेखा किया जाता है।महिलाएँ इस दौरान मूड में उतार-चढ़ाव, चिड़चिड़ापन और कभी-कभी अपनी पहचान से दूर होने का अनुभव कर सकती हैं। ये सभी पहलू उनके मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकते हैं, जिससे अवसाद, चिंता और नींद की समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं। श्रीमती बिड़ला ने बताया कि पेरिमेनोपॉज, जो मेनोपॉज से पहले की अवस्था है, पर चर्चा की कमी है, जिससे महिलाएँ अपनी समस्याओं का सामना अकेले करती हैं।
यह स्थिति चिंताजनक है क्योंकि पेरिमेनोपॉज और मेनोपॉज का महिलाओं के स्वास्थ्य, कार्यस्थल की उत्पादकता और सामाजिक संबंधों पर गहरा प्रभाव पड़ता है। जब महिलाएँ इन परिवर्तनों का सामना करती हैं, तो उन्हें समर्थन की कमी का सामना करना पड़ता है, जिससे उनके जीवन की गुणवत्ता प्रभावित होती है।
वैश्विक स्तर पर, यह समस्या गंभीर है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, 2025 तक 1.1 बिलियन से अधिक महिलाएँ रजोनिवृत्ति के बाद की अवस्था में पहुँचने की उम्मीद है। भारत में, लगभग 150 मिलियन महिलाएँ वर्तमान में पेरिमेनोपॉज़ल या मेनोपॉज़ल चरण में हैं।
हालांकि, चौंकाने वाली बात यह है कि इनमें से 25% से भी कम महिलाएँ अपनी स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं के लिए चिकित्सा सहायता प्राप्त करती हैं। यह आंकड़ा जागरूकता, स्वास्थ्य सेवाओं की पहुँच और सामाजिक खुलापन की कमी को दर्शाता है। महिलाओं को अक्सर मेनोपॉज के लक्षणों के बारे में जानकारी नहीं होती और वे सामाजिक कलंक के कारण अपनी समस्याओं को छिपाती हैं।
इस स्थिति को सुधारने के लिए सार्वजनिक शिक्षा अभियानों, बेहतर स्वास्थ्य सेवा बुनियादी ढाँचे और मेनोपॉज के प्रति एक सहायक सामाजिक वातावरण की आवश्यकता है, ताकि हर महिला इस प्राकृतिक जीवन चरण को गरिमा और समर्थन के साथ पार कर सके।