मेरठ में रामकथा: भारतीय संस्कृति और महिलाओं के अधिकारों पर जोर

मेरठ में रामकथा का आयोजन
Meerut Ramkatha: मेरठ के भामाशाह पार्क में जगद्गुरु रामभद्राचार्य द्वारा रामकथा का आयोजन किया जा रहा है। रविवार को इस कथा के सातवें दिन उन्होंने भारतीय संस्कृति, महिलाओं की स्थिति और सामाजिक मूल्यों पर गहन प्रवचन दिया। उनका कहना था कि यदि लोग भारतीय संस्कृति और वैदिक परंपराओं को सही तरीके से समझें, तो किसी भी प्रकार का विवाद उत्पन्न नहीं होगा।
महिलाओं का स्थान और समाज की जिम्मेदारी
रामभद्राचार्य ने बताया कि भारतीय संस्कृति में महिलाओं को सर्वोच्च स्थान दिया गया है। अन्य धर्मों में महिलाओं को सामान्य नामों से संबोधित किया जाता है, जबकि हिंदू धर्म में उन्हें देवी का दर्जा दिया गया है। उन्होंने समाज से अपील की कि बेटों को महाराणा प्रताप और शिवाजी जैसे आदर्शों से प्रेरित होना चाहिए, और बेटियों को रानी लक्ष्मीबाई जैसे संस्कार प्राप्त करने चाहिए। उनका मानना है कि यदि हर परिवार अपने बच्चों को संस्कारी बनाए, तो समाज की तस्वीर अपने आप बदल जाएगी।
हिंदू धर्म की उदारता
उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि मनु स्मृति या वेदों में किसी का अपमान नहीं किया गया है और हिंदू धर्म सबसे उदार धर्म है। जातिवाद पर टिप्पणी करते हुए उन्होंने कहा कि पहले भारत में जातियां थीं, लेकिन जातिवाद नहीं था। महिलाओं को अधिकार देने की आवश्यकता पर जोर देते हुए रामभद्राचार्य ने कहा कि गर्व से कहा जाता है कि महिलाओं को 33% आरक्षण दिया गया है, जबकि सही में पुरुषों को 33% और महिलाओं को 67% आरक्षण मिलना चाहिए। उन्होंने मनु स्मृति का उल्लेख करते हुए कहा कि माता को पिता से भी बड़ा माना गया है।
सच्चा धर्म बच्चों को संस्कारी बनाना
इस्लामी परंपराओं पर चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि महिलाओं की स्थिति वहां बेहद दयनीय रही है। एक महिला से 25-25 बच्चे पैदा करना और वृद्धावस्था में तीन तलाक देकर छोड़ देना भारतीय संस्कृति का हिस्सा नहीं है। उन्होंने कहा कि भारतीय परंपरा में अत्यधिक संतानोत्पत्ति को उचित नहीं माना गया है। यदि तीन बच्चे भी हों, तो उन्हें संस्कारी बनाना ही सच्चा धर्म है।
शिक्षा से समाज को सशक्त बनाना
रामभद्राचार्य ने माता-पिता से अपील की कि वे बच्चों को केवल आधुनिक शिक्षा न दें, बल्कि उन्हें संस्कारी भी बनाएं। उन्होंने कहा कि बच्चों को सरस्वती विद्यालयों में भेजें, न कि कॉन्वेंट या मदरसों में। संस्कारयुक्त शिक्षा ही समाज को सशक्त बना सकती है। अपने प्रवचन के अंत में उन्होंने कहा कि भारतीय वैदिक संस्कृति में समाज और विश्व कल्याण का मार्ग छिपा है। यदि समाज ने इन मूल्यों को अपनाया, तो न कोई झंझट रहेगा और न भेदभाव। सभी वर्ग मिलकर भारत को पुनः विश्वगुरु बना सकते हैं।