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यमकेश्वर में अंकिता भंडारी हत्या मामले में न्याय की गूंज

यमकेश्वर के वनंतरा रिजॉर्ट में अंकिता भंडारी की हत्या के मामले में न्याय का फैसला सुनाया गया। 19 वर्षीय अंकिता की हत्या ने पूरे देश को झकझोर दिया। इस मामले की सुनवाई दो साल आठ महीने तक चली, जिसमें 47 गवाहों ने गवाही दी। कोर्ट के फैसले ने हर लड़की के लिए एक संदेश दिया है कि इंसाफ अब भी जिंदा है। जानें इस दर्दनाक घटना की पूरी कहानी और न्याय की प्रक्रिया के बारे में।
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यमकेश्वर का वनंतरा रिजॉर्ट: एक खामोश चीख की कहानी

पौड़ी गढ़वाल के सुरम्य यमकेश्वर में स्थित वनंतरा रिजॉर्ट, जो कभी पर्यटकों की चहचहाहट से गूंजता था, अब एक खामोश चीख की याद बन गया है। यहाँ 19 वर्षीय अंकिता भंडारी काम करती थी, एक साधारण युवती जो अपने सपनों के साथ जीवन की शुरुआत कर रही थी, लेकिन नफरत और हैवानियत की शिकार हो गई। शुक्रवार को कोटद्वार की अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश की अदालत में जब फैसला सुनाया गया, तो कक्ष में सन्नाटा छा गया। यह फैसला पुलकित आर्य और उसके दो साथियों को दोषी ठहराने का था। यह केवल एक कानूनी निर्णय नहीं था, बल्कि उन पहाड़ों की गूंज थी जहाँ कभी अंकिता की हंसी गूंजती थी।


18 सितंबर 2022 की रात, जब अंधकार ने इंसानियत को ढक लिया, अंकिता अपने वरिष्ठ पुलकित आर्य के साथ विवाद में उलझ गई। यह विवाद जो मामूली शब्दों से शुरू हुआ, अंततः हत्या में बदल गया। एसआईटी द्वारा दायर चार्जशीट में बताया गया है कि पुलकित ने अपने दो सहयोगियों के साथ मिलकर अंकिता को प्रताड़ित किया और फिर उसे ऋषिकेश की चीला नहर में धक्का देकर मार डाला। उस नहर ने एक दर्दनाक सच को अपने भीतर समेट लिया जब तक कि उसका शव बाहर नहीं निकला।


इस मामले की सुनवाई दो साल आठ महीने तक चली, जिसमें अभियोजन पक्ष ने 47 गवाह पेश किए। हर गवाही जैसे इंसाफ की एक ईंट रख रही थी। चार्जशीट में 97 नामित गवाह थे, जिनमें से कुछ की गवाही ने इस केस की रीढ़ बनाई। जब अंकिता का शव चीला नहर से बरामद हुआ, तो गांव और शहर में सन्नाटा टूट गया। लोगों का आक्रोश सड़कों पर फूट पड़ा, मोमबत्तियों की रैलियाँ और इंसाफ की पुकार।


लोगों का गुस्सा केवल एक लड़की की मौत पर नहीं था, बल्कि उस सत्ता के अहंकार पर था जिसने सोचा कि पैसे और राजनीतिक रसूख के दम पर हर जुर्म दबाया जा सकता है। पुलकित आर्य भाजपा नेता विनोद आर्य का पुत्र था, लेकिन जब मामला उजागर हुआ, तो पार्टी ने उसे तुरंत बाहर का रास्ता दिखाया। राज्य सरकार को जनता के गुस्से को शांत करने के लिए विशेष जांच दल (SIT) गठित करना पड़ा और यह वादा करना पड़ा कि अपराधियों को सख्त सजा मिलेगी।


अंकिता, जो अब भी बोलती है, हर चुप लड़की की आवाज बनकर। वह केवल 19 साल की थी, उसकी आंखों में पहाड़ों जैसा विस्तार और मुस्कान में भरोसे जैसा उजाला था। उसकी मौत ने देश को झकझोर दिया। आज जब कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया, तो यह केवल एक कानूनी प्रक्रिया नहीं थी, बल्कि हर लड़की के लिए एक संदेश था कि देर से ही सही, इंसाफ अब भी जिंदा है।