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योगी आदित्यनाथ का ऐतिहासिक निर्णय: जाति आधारित उल्लेखों पर लगी रोक

उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने जातीय भेदभाव को समाप्त करने के लिए एक ऐतिहासिक निर्णय लिया है। सभी सरकारी विभागों, पुलिस रिकॉर्ड और सार्वजनिक स्थानों से जाति के उल्लेख को हटाने का आदेश दिया गया है। यह कदम इलाहाबाद उच्च न्यायालय के निर्देशों पर आधारित है, जिसमें जाति का उल्लेख संविधान के खिलाफ बताया गया था। इस निर्णय से न केवल प्रशासनिक प्रक्रियाएं निष्पक्ष होंगी, बल्कि जातीय भेदभाव की जड़ों को भी कमजोर किया जाएगा। जानें इस महत्वपूर्ण फैसले के पीछे की कहानी और इसके संभावित प्रभावों के बारे में।
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योगी आदित्यनाथ का ऐतिहासिक निर्णय: जाति आधारित उल्लेखों पर लगी रोक

जातीय भेदभाव के खिलाफ एक महत्वपूर्ण कदम

Yogi Adityanath Caste Ban in Police Records :  उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने जातीय भेदभाव को समाप्त करने के लिए एक महत्वपूर्ण निर्णय लिया है। सोमवार को, राज्य के सभी सरकारी विभागों, पुलिस रिकॉर्ड, सार्वजनिक स्थानों और वाहनों से जाति के उल्लेख को हटाने का आदेश जारी किया गया। यह कदम इलाहाबाद उच्च न्यायालय के निर्देशों के आधार पर उठाया गया, जिसमें जाति का उल्लेख संविधान के खिलाफ बताया गया था।


जाति का उल्लेख अब प्रतिबंधित

जाति से संबंधित किसी प्रकार का उल्लेख प्रतिबंधित
मुख्य सचिव दीपक कुमार द्वारा जारी आदेश में स्पष्ट किया गया है कि अब किसी भी गिरफ्तारी में एफआईआर या अन्य पुलिस दस्तावेजों में आरोपी की जाति का उल्लेख नहीं किया जाएगा। इसके अलावा, पुलिस थानों, कार्यालयों, नोटिस बोर्ड, पुलिस वाहनों और साइनबोर्डों पर भी जाति से संबंधित किसी प्रकार का उल्लेख नहीं किया जाएगा। पहचान के लिए माता-पिता के नाम का उपयोग किया जाएगा।


पुलिस मैनुअल में संशोधन

राज्य सरकार ने यह भी निर्णय लिया है कि पुलिस मैनुअल और एसओपी (स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर) में आवश्यक संशोधन किए जाएंगे, ताकि यह आदेश प्रभावी रूप से लागू किया जा सके और प्रणाली में स्थायी बदलाव हो।


SC/ST एक्ट के मामलों में छूट

SC/ST एक्ट के मामलों में मिलेगी छूट
हालांकि यह आदेश सभी मामलों पर लागू होगा, लेकिन अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत दर्ज मामलों में जाति का उल्लेख किया जा सकेगा, क्योंकि इन मामलों में पीड़ित की जाति कानूनी दृष्टि से आवश्यक होती है।


उच्च न्यायालय की टिप्पणी

HC की टिप्पणी, ‘संवैधानिक नैतिकता के खिलाफ’
यह आदेश इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 16 सितंबर को दिए गए फैसले के बाद आया है, जिसमें अदालत ने पुलिस रिकॉर्ड में जातियों के उल्लेख को “कानूनी भ्रांति” और “संवैधानिक नैतिकता का उल्लंघन” बताया था। अदालत ने कहा कि एफआईआर और सीजर मेमो में जातियों का उल्लेख न तो कानूनी रूप से उचित है और न ही नैतिक रूप से स्वीकार्य।


जातिविहीन समाज की दिशा में एक कदम

एक जातिविहीन समाज की ओर पहल
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने यह भी कहा कि राज्य की उच्च पुलिस प्राधिकरण की असंवेदनशीलता ने न्यायालय को इस विषय पर गहन मंथन के लिए मजबूर किया। अदालत ने केंद्र सरकार को भी इस मुद्दे पर गंभीर विचार करने का सुझाव दिया, ताकि संविधान में निहित जातिविहीन समाज की परिकल्पना को साकार किया जा सके।


संवैधानिक मूल्यों की दिशा में बड़ा कदम

संवैधानिक मूल्यों की दिशा में बड़ा कदम 
उत्तर प्रदेश सरकार का यह कदम सामाजिक समानता और संवैधानिक मूल्यों की दिशा में एक साहसी प्रयास है। यह आदेश न केवल प्रशासनिक प्रक्रियाओं को निष्पक्ष बनाएगा, बल्कि जातीय भेदभाव की जड़ों को भी कमजोर करेगा। इस फैसले से उम्मीद की जा सकती है कि अन्य राज्य भी इस दिशा में पहल करेंगे और भारत को एक समानतामूलक समाज बनाने की दिशा में कदम बढ़ाएंगे।