Newzfatafatlogo

राखी गुलजार का जन्मदिन: भारतीय सिनेमा की एक अद्भुत यात्रा

राखी गुलजार का जन्मदिन 15 अगस्त को मनाया जाता है, जो न केवल भारत की स्वतंत्रता का प्रतीक है, बल्कि एक महान अभिनेत्री के रूप में उनकी पहचान भी है। जानें कैसे उन्होंने अपने करियर में कई सफल फिल्मों में काम किया और आज भी भारतीय सिनेमा में अपनी गरिमा बनाए रखी है। इस लेख में उनके जीवन और करियर की महत्वपूर्ण बातें साझा की गई हैं।
 | 
राखी गुलजार का जन्मदिन: भारतीय सिनेमा की एक अद्भुत यात्रा

राखी गुलजार का विशेष दिन

राखी गुलजार का जन्मदिन: 15 अगस्त, 1947, यह दिन हर भारतीय के लिए गर्व का प्रतीक है। लेकिन दिग्गज अभिनेत्री राखी गुलजार के लिए यह दिन और भी महत्वपूर्ण है। जिस दिन भारत ने अपनी स्वतंत्रता का पहला सूरज देखा, उसी दिन पश्चिम बंगाल के रानाघाट में उनका जन्म हुआ। इस दिन उन्होंने भी अपनी जिंदगी की पहली सांस ली।


राखी की फिल्मी पहचान

राखी ने 1970 के दशक की शुरुआत में बॉलीवुड में कदम रखा और जल्दी ही हिंदी सिनेमा की सबसे प्रतिष्ठित अभिनेत्रियों में से एक बन गईं। उनकी आंखों के माध्यम से भावनाओं को व्यक्त करने की अद्भुत क्षमता और सहज गरिमा ने उन्हें एक अलग पहचान दिलाई।


इन फिल्मों से मिली पहचान


‘शर्मीली’ (1971), ‘कभी कभी’ (1976), ‘त्रिशूल’ (1978) और ‘तपस्या’ (1976) जैसी फिल्मों में उनके किरदारों ने न केवल बॉक्स ऑफिस पर सफलता पाई, बल्कि आलोचकों से भी सराहना प्राप्त की। वह सुपरस्टार अमिताभ बच्चन के साथ रोमांटिक भूमिकाओं में उतनी ही प्रभावशाली रहीं, जितनी कि दमदार मां के किरदारों में।


करीब चार दशकों के करियर में, राखी ने कई फिल्मफेयर पुरस्कार, एक राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार और दर्शकों का अपार प्रेम जीता। कम संवादों में गहरी भावनाएं व्यक्त करने की उनकी कला ने उन्हें अपने समय की सबसे संवेदनशील और सशक्त अभिनेत्रियों में शामिल किया।


सिनेमा से दूरी के बाद भी राखी का महत्व

सिनेमा से दूर हुईं राखी गुलजार


सिनेमा से दूरी बनाने के बावजूद, राखी भारतीय फिल्म उद्योग में गरिमा और गहराई का प्रतीक बनी हुई हैं। हर साल 15 अगस्त को सोशल मीडिया पर उन्हें जन्मदिन की बधाइयों के साथ-साथ उनके देश से जुड़े इस अनोखे रिश्ते के लिए भी याद किया जाता है।


आधी रात को भारत ने लगभग 200 साल की ब्रिटिश हुकूमत से आजादी पाई। संविधान सभा में पंडित जवाहरलाल नेहरू ने अपना ऐतिहासिक ‘ट्रिस्ट विद डेस्टिनी’ भाषण दिया और पहली बार भारतीय तिरंगा लहराया गया। सड़कों पर जश्न का माहौल था, मंदिरों और गुरुद्वारों में घंटियां बजीं, ढोल-नगाड़ों की थाप गूंजी।