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राहुल गांधी के खिलाफ चुनाव आयोग की कड़ी कार्रवाई: क्या होगी अगली रणनीति?

राहुल गांधी द्वारा चुनाव आयोग पर 'वोट चोरी' का आरोप लगाने के बाद विवाद बढ़ता जा रहा है। महाराष्ट्र के मुख्य निर्वाचन अधिकारी ने उन्हें एक नोटिस भेजा है, जिसमें दस दिनों के भीतर हस्ताक्षरित घोषणा-पत्र जमा करने की मांग की गई है। इससे पहले, कर्नाटक और हरियाणा के चुनाव अधिकारियों ने भी उन्हें नोटिस जारी किया था। चुनाव आयोग ने स्पष्ट किया है कि यदि राहुल गांधी समय पर जवाब नहीं देते हैं, तो कानूनी कार्रवाई की जा सकती है। जानें इस मामले में आगे क्या हो सकता है।
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राहुल गांधी के खिलाफ चुनाव आयोग की कड़ी कार्रवाई: क्या होगी अगली रणनीति?

चुनाव आयोग का नोटिस

चुनाव आयोग की चेतावनी: लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी द्वारा चुनाव आयोग पर 'वोट चोरी' का आरोप लगाने के बाद स्थिति और भी गंभीर हो गई है। महाराष्ट्र के मुख्य निर्वाचन अधिकारी ने उन्हें एक औपचारिक पत्र भेजा है, जिसमें कहा गया है कि उन्हें दस दिनों के भीतर एक हस्ताक्षरित घोषणा-पत्र (Declaration/Oath) आयोग को प्रस्तुत करना होगा। यह प्रक्रिया जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 और मतदाता पंजीकरण नियम, 1960 के तहत अनिवार्य है।




कर्नाटक से पहले का नोटिस

कर्नाटक से भी मिल चुका है ECI का नोटिस
राहुल गांधी को पहले कर्नाटक के मुख्य निर्वाचन अधिकारी द्वारा एक नोटिस भेजा गया था। इसके अलावा, हरियाणा के चुनाव अधिकारी ने भी उन्हें एक रिमाइंडर भेजा था। इन दोनों राज्यों के चुनाव अधिकारियों के नोटिस के बावजूद, राहुल गांधी ने अब तक कोई औपचारिक उत्तर नहीं दिया है, जिससे चुनाव आयोग की नाराजगी और बढ़ गई है।




चुनाव आयोग का सख्त रुख

EC का राहुल गांधी के खिलाफ सख्त रुख
चुनाव आयोग ने अब स्पष्ट रूप से कहा है कि राहुल गांधी को कर्नाटक, हरियाणा और महाराष्ट्र के नोटिस का समय पर उत्तर देना होगा, अन्यथा उन्हें सार्वजनिक रूप से माफी मांगनी पड़ेगी। आयोग ने इस मुद्दे को गंभीरता से लेते हुए चेतावनी दी है कि यदि निर्धारित समय में औपचारिकताएं पूरी नहीं की गईं, तो कानूनी कार्रवाई की जा सकती है।


वोट चोरी का आरोप

ECI पर लगाया था वोट चोरी का आरोप 
राहुल गांधी ने हाल ही में एक सार्वजनिक मंच पर आरोप लगाया था कि चुनाव आयोग 'वोट चोरी' में संलिप्त है। इस बयान ने आयोग की विश्वसनीयता पर सवाल उठाए हैं, जिसके चलते आयोग अब पारदर्शिता और संवैधानिक प्रक्रिया का पालन करने पर जोर दे रहा है। आयोग का कहना है कि बिना सबूत के लगाए गए ऐसे आरोप न केवल संस्थानों की छवि को नुकसान पहुंचाते हैं, बल्कि लोकतंत्र की नींव को भी कमजोर करते हैं।