राहुल गांधी के खिलाफ चुनाव आयोग की कड़ी कार्रवाई: क्या होगी अगली रणनीति?

चुनाव आयोग का नोटिस
चुनाव आयोग की चेतावनी: लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी द्वारा चुनाव आयोग पर 'वोट चोरी' का आरोप लगाने के बाद स्थिति और भी गंभीर हो गई है। महाराष्ट्र के मुख्य निर्वाचन अधिकारी ने उन्हें एक औपचारिक पत्र भेजा है, जिसमें कहा गया है कि उन्हें दस दिनों के भीतर एक हस्ताक्षरित घोषणा-पत्र (Declaration/Oath) आयोग को प्रस्तुत करना होगा। यह प्रक्रिया जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 और मतदाता पंजीकरण नियम, 1960 के तहत अनिवार्य है।
Lok Sabha LoP Rahul Gandhi's allegations on the EC | Maharashtra Chief Electoral Officer writes to Lok Sabha LoP Rahul Gandhi, requesting him to return the signed Declaration/Oath to the office within ten (10) days, so that necessary proceedings may be initiated in accordance… pic.twitter.com/7yyVE5YThg
— News Media August 10, 2025
कर्नाटक से पहले का नोटिस
कर्नाटक से भी मिल चुका है ECI का नोटिस
राहुल गांधी को पहले कर्नाटक के मुख्य निर्वाचन अधिकारी द्वारा एक नोटिस भेजा गया था। इसके अलावा, हरियाणा के चुनाव अधिकारी ने भी उन्हें एक रिमाइंडर भेजा था। इन दोनों राज्यों के चुनाव अधिकारियों के नोटिस के बावजूद, राहुल गांधी ने अब तक कोई औपचारिक उत्तर नहीं दिया है, जिससे चुनाव आयोग की नाराजगी और बढ़ गई है।
After the Notice issued by Chief Electoral Officer, Karnataka and reminder by Chief Electoral Officer, Haryana today, Election Commission of India has once again said sternly: "Rahul Gandhi should either give a Declaration on Chief Electoral Officer, Karnataka's first Notice and…
— News Media August 10, 2025
चुनाव आयोग का सख्त रुख
EC का राहुल गांधी के खिलाफ सख्त रुख
चुनाव आयोग ने अब स्पष्ट रूप से कहा है कि राहुल गांधी को कर्नाटक, हरियाणा और महाराष्ट्र के नोटिस का समय पर उत्तर देना होगा, अन्यथा उन्हें सार्वजनिक रूप से माफी मांगनी पड़ेगी। आयोग ने इस मुद्दे को गंभीरता से लेते हुए चेतावनी दी है कि यदि निर्धारित समय में औपचारिकताएं पूरी नहीं की गईं, तो कानूनी कार्रवाई की जा सकती है।
वोट चोरी का आरोप
ECI पर लगाया था वोट चोरी का आरोप
राहुल गांधी ने हाल ही में एक सार्वजनिक मंच पर आरोप लगाया था कि चुनाव आयोग 'वोट चोरी' में संलिप्त है। इस बयान ने आयोग की विश्वसनीयता पर सवाल उठाए हैं, जिसके चलते आयोग अब पारदर्शिता और संवैधानिक प्रक्रिया का पालन करने पर जोर दे रहा है। आयोग का कहना है कि बिना सबूत के लगाए गए ऐसे आरोप न केवल संस्थानों की छवि को नुकसान पहुंचाते हैं, बल्कि लोकतंत्र की नींव को भी कमजोर करते हैं।