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रेवाड़ी के किसान ने प्राकृतिक खेती में किया अद्भुत प्रयोग

रेवाड़ी के किसान अशोक यादव ने खेती में एक नई दिशा दिखाई है। उन्होंने प्राकृतिक खाद और कीटनाशक का उपयोग कर दीमक की समस्या को कम किया है। उनके प्रयोग से न केवल उनकी आय बढ़ी है, बल्कि अन्य किसानों के लिए भी यह प्रेरणा का स्रोत बन रहा है। जानें उनके अनोखे तरीकों के बारे में और कैसे वे लाखों की कमाई कर रहे हैं।
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रेवाड़ी के किसान ने प्राकृतिक खेती में किया अद्भुत प्रयोग

प्रगतिशील किसान का अनोखा प्रयास

Organic Farming Haryana (रेवाड़ी) : रेवाड़ी के मूसेपुर गांव के किसान अशोक यादव ने खेती में एक नई दिशा दिखाई है। 30 एकड़ में खेती करने वाले अशोक ने 1990 में सब्जियों को दीमक से बचाने के लिए एक विशेष देसी खाद का निर्माण किया। मटर और गन्ने की फसल में दीमक के नुकसान के बाद, उन्होंने नीम, कनेर, आक और धतूरे के पत्तों से प्राकृतिक खाद तैयार की।


Haryana के किसान का कमाल

इस खाद ने उनके खेतों में दीमक की समस्या को काफी हद तक कम कर दिया है। अशोक बताते हैं कि एक ट्रॉली गोबर की खाद में 20 किलो नीम के पत्ते, 15 किलो कनेर के पत्ते, 15 किलो आक और धतूरे के पत्ते मिलाए जाते हैं। इसके ऊपर 400 ग्राम सूखा पिसा हुआ तंबाकू डाला जाता है। यह खाद छह महीने में तैयार होती है और सब्जियों तथा बागवानी के लिए अत्यंत लाभकारी है।


प्राकृतिक कीटनाशक का अनोखा तरीका

अशोक ने केवल खाद ही नहीं, बल्कि एक देसी कीटनाशक भी बनाया है। इसके लिए 5 किलो नीम के पत्ते, 5 किलो कनेर के पत्ते, 300 ग्राम लहसुन, 300 ग्राम पिसी लाल मिर्च और 100 लीटर पानी को लोहे के ड्रम में उबाला जाता है। ठंडा होने के बाद इसे छानकर ड्रम में बंद कर दिया जाता है। इसकी तीखी गंध के कारण ड्रम का ढक्कन लगाना आवश्यक है।


फसल पर छिड़काव का तरीका

फसल पर छिड़काव के लिए 20 लीटर पानी में 400 मिलीलीटर कीटनाशक मिलाकर उपयोग किया जाता है। प्रगतिशील किसान और किसान रत्न अवॉर्डी यशपाल खोला ने अशोक के इस देसी नुस्खे की सराहना की है। उन्होंने कहा कि रसायनों के स्थान पर जीवामृत, घन जीवामृत और गौकृपा अमृत जैसे प्राकृतिक तरीकों का उपयोग करना चाहिए।


मुर्गी फार्म से लाखों की कमाई

अशोक ने 2019 में एक नया प्रयोग शुरू किया और 11 हजार लेयर अंडों वाला मुर्गी फार्म खोला। इससे उन्हें सालाना औसतन 10 लाख रुपये की आय हो रही है। इसके अलावा, मुर्गी फार्म से निकलने वाली बीट से वे हर साल 300 ट्रॉली खाद तैयार करते हैं। इस खाद को वे 1,500 रुपये प्रति ट्रॉली की दर से अन्य किसानों को बेचते हैं। यह खाद फसलों के लिए अत्यंत लाभकारी साबित हो रही है। अशोक का यह मॉडल न केवल उनकी आय बढ़ा रहा है, बल्कि अन्य किसानों के लिए भी प्रेरणा का स्रोत बन रहा है।