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लखनऊ की अदालत ने झूठे दुष्कर्म मामले में युवती को सजा सुनाई

लखनऊ की विशेष अदालत ने एक 24 वर्षीय महिला को सामूहिक दुष्कर्म के झूठे आरोप लगाने के लिए साढ़े सात साल की सजा सुनाई है। यह मामला तब शुरू हुआ जब रेखा ने अपने प्रेमी और उसके दोस्त पर आरोप लगाया, लेकिन पुलिस ने इसे झूठा पाया। अदालत ने न केवल आरोपियों को बरी किया, बल्कि रेखा को भी दोषी ठहराया। इस निर्णय ने कानून के प्रति जनता के विश्वास को बनाए रखने की आवश्यकता को उजागर किया है।
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विशेष अदालत का ऐतिहासिक निर्णय

लखनऊ की विशेष अदालत ने एक महत्वपूर्ण मामले में 24 वर्षीय महिला को सामूहिक दुष्कर्म और अनुसूचित जाति-जनजाति अत्याचार अधिनियम के तहत झूठा मामला दर्ज कराने के लिए साढ़े सात साल की कैद और 2.1 लाख रुपये का जुर्माना लगाया है।


महिला का नाम रेखा है, जिसने राजेश और उसके मित्र भूपेंद्र कुमार के खिलाफ दुष्कर्म का आरोप लगाया था। दोनों के बीच प्रेम संबंध थे, लेकिन रिश्तों में तनाव के बाद रेखा ने यह शिकायत दर्ज कराई। पुलिस ने जांच के बाद बताया कि यह शिकायत झूठी थी।


रेखा ने पुलिस की रिपोर्ट का विरोध किया, जिसके बाद मामले की सुनवाई हुई। अदालत ने न केवल राजेश और भूपेंद्र को बरी किया, बल्कि रेखा को धारा 182 (लोकसेवक को गलत सूचना देना) और 211 (झूठा मुकदमा दर्ज कराना) के तहत भी दोषी ठहराया। लखनऊ की विशेष कोर्ट के जज विवेकानंद शरण त्रिपाठी ने रेखा को सजा सुनाते हुए कहा कि यदि एससी-एसटी एक्ट, पोक्सो और अन्य संवेदनशील कानूनों का दुरुपयोग किया गया, तो इससे कानून पर जनता का विश्वास कमजोर होगा।