लखनऊ नगर निगम में सफाई टेंडर में भ्रष्टाचार का मामला उजागर

लखनऊ नगर निगम में भ्रष्टाचार का खुलासा
लखनऊ। लखनऊ नगर निगम के सफाई टेंडर में व्यापक भ्रष्टाचार की खबरें सामने आई हैं। शहर की सफाई व्यवस्था के लिए जारी किए गए हजारों करोड़ के टेंडर में बड़े पैमाने पर गड़बड़ी की जा रही है। इसमें अपर नगर आयुक्त अरविंद राव और पर्यावरण इंजीनियर संजीव प्रधान की महत्वपूर्ण भूमिका है। सफाई व्यवस्था के नाम पर हो रहे इस घोटाले को लेकर लगातार सवाल उठते रहे हैं। हाल ही में कंपनियों और अधिकारियों के बीच एक और खेल का पर्दाफाश हुआ है, जिसमें थर्ड पार्टी जांच के नाम पर हर महीने लाखों रुपये का बंदरबांट किया जा रहा है।
यह मामला थर्ड पार्टी जांच से संबंधित है, जिसमें हर महीने 40 लाख रुपये खर्च किए जा रहे हैं। इस भ्रष्टाचार की शिकायत लखनऊ नगर निगम के पार्षद अमित कुमार चौधरी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर की है। उन्होंने अपने पत्र में नगर निगम में हो रहे भ्रष्टाचार को विस्तार से उजागर किया है।
पार्षद ने बताया कि लखनऊ नगर निगम ने पहले प्राइवेट कंपनियों एल०एस०ए० और एल०एस०जी० को सफाई व्यवस्था का काम सौंपा था। इसके बाद इसकी जांच के लिए एक प्राइवेट कंपनी, जिसका नाम मैनेजमेंट कंसेल्टेंसी (PMC) है, को नियुक्त किया गया। इस कंपनी को हर महीने 40 लाख रुपये का टेंडर दिया जा रहा है। थर्ड पार्टी जांच के नाम पर सरकारी धन का दुरुपयोग अधिकारियों की मिलीभगत से किया जा रहा है। यह भी ध्यान देने योग्य है कि यह कंपनी भी एल०एस०ए० की ही सहायक है। इस प्रकार अधिकारियों और कंपनी के बीच की मिलीभगत से भ्रष्टाचार का मामला स्पष्ट हो रहा है।
अधिकारी की भूमिका पर सवाल
लखनऊ नगर निगम में सफाई व्यवस्था के नाम पर हो रही लूट में दो अधिकारियों की महत्वपूर्ण भूमिका है। अपर नगर आयुक्त अरविंद राव और पर्यावरण इंजीनियर संजीव प्रधान, जो 25 वर्षों से निगम में तैनात हैं, कंपनियों के साथ मिलकर सफाई व्यवस्था में बड़े पैमाने पर लूट कर रहे हैं। अरविंद राव के खिलाफ अक्सर सवाल उठते हैं, लेकिन कार्रवाई केवल दिखावे के लिए होती है। दरअसल, सफाई व्यवस्था का टेंडर इन दोनों अधिकारियों के बिना जारी नहीं हो सकता, जिससे ये दोनों अधिकारी हर टेंडर में खुलेआम लूट कर रहे हैं।
भ्रष्टाचार की जांच की मांग
लखनऊ नगर निगम 4000 से 6000 करोड़ रुपये की लागत वाली परियोजनाओं का संचालन कर रहा है, जिसकी अवधि 10 से 15 वर्ष तक है। यदि इन अधिकारियों को छूट दी गई, तो वे सरकारी खजाने का दुरुपयोग कर सकते हैं। पार्षद ने सफाई व्यवस्था से संबंधित कंपनियों और अधिकारियों की मिलीभगत की जांच कराने की मांग की है।