लद्दाख में अशांति: सोनम वांगचुक की गिरफ्तारी और उसके पीछे की कहानी

लद्दाख में बढ़ती हिंसा
Ladakh Unrest: लद्दाख, जो अपनी शांतिपूर्ण सुंदरता, मनमोहक झीलों और बौद्ध मठों के लिए प्रसिद्ध है, अब हिंसा की घटनाओं से प्रभावित हो गया है। यह क्षेत्र, जिसे हमेशा भारत का क्राउन ज्वेल माना गया, अब आग और आक्रोश की घटनाओं से झकझोर उठा है। इस अशांति के केंद्र में सोनम वांगचुक हैं, जिन्हें पर्यावरण रक्षक के रूप में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिली थी, लेकिन अब उन पर अशांति भड़काने का आरोप लगाया गया है।
हिंसा के परिणाम
24 सितंबर को लेह में हिंसा की लहर देखी गई। शुरू में राज्य और सिक्स्थ स्केड्यूल सुरक्षा की मांग को लेकर बुलाया गया बंद जल्दी ही अराजकता में बदल गया। भीड़ ने सरकारी और भारतीय जनता पार्टी कार्यालयों पर हमला किया, वाहनों को आग के हवाले कर दिया और पुलिस के साथ झड़पें कीं। इस हिंसा में चार लोगों की जान गई और कई लोग घायल हुए। प्रशासन ने स्थिति को नियंत्रित करने के लिए कर्फ्यू लागू किया।
सोनम वांगचुक की छवि में बदलाव
सोनम वांगचुक का नाम पहले एक प्रेरक व्यक्ति के रूप में जाना जाता था, लेकिन अब उनकी छवि में बदलाव आ गया है। 2019 में जब अनुच्छेद 370 को रद्द किया गया, तब उन्होंने इसे सकारात्मक रूप से स्वीकार किया था। लेकिन अब उनके शब्दों में बदलाव आया है, जिससे उनके समर्थक और आलोचक दोनों में मतभेद उत्पन्न हो गए हैं।
भूमि विवाद और प्रशासनिक कार्रवाई
वांगचुक की मुश्किलें तब बढ़ीं जब प्रशासन ने उनके प्रिय प्रोजेक्ट को रद्द कर दिया। 21 अगस्त 2025 को, लेह के डिप्टी कमिश्नर ने फ्यांग में हाइमालयन इंस्टिट्यूट ऑफ़ अल्टरनेटिव लर्निंग के लिए दिए गए पट्टे को रद्द कर दिया। इसके बाद वांगचुक ने अनशन शुरू किया, जो सिक्स्थ स्केड्यूल सुरक्षा की मांग से जुड़ा था।
वित्तीय मुद्दे और गिरफ्तारी
वांगचुक की समस्याएं केवल भूमि विवाद तक सीमित नहीं रहीं। उनके संगठन का फॉरेन कंट्रीब्यूशन रेगुलेशन एक्ट के तहत लाइसेंस रद्द कर दिया गया। इसके बाद, जब प्रदर्शन हिंसक हो गए, तो उन्हें राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम के तहत गिरफ्तार किया गया।
राजनीतिक पृष्ठभूमि और लद्दाख का महत्व
लद्दाख का महत्व केवल सांस्कृतिक सौंदर्य में नहीं, बल्कि सुरक्षा दृष्टि से भी है। यह चीन से सटी हुई है और यहां भारतीय सेना की महत्वपूर्ण इकाइयाँ मौजूद हैं। वांगचुक का मामला अब केवल एक व्यक्ति की सक्रियता तक सीमित नहीं है, बल्कि यह लद्दाख के राजनीतिक भविष्य और भारत के सीमा क्षेत्रों की संवेदनशीलता से जुड़ा हुआ है।