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लद्दाख में युवा पीढ़ी का विरोध: राज्य का दर्जा और पर्यावरण सुरक्षा की मांग

लद्दाख में युवा पीढ़ी का विरोध प्रदर्शन तेजी से बढ़ रहा है, जिसमें हजारों छात्र और छात्राएं शामिल हैं। सोनम वांगचुक के नेतृत्व में ये युवा केंद्र सरकार से लद्दाख को राज्य का दर्जा देने, इसे संविधान की छठी अनुसूची में शामिल करने और पर्यावरण की रक्षा की मांग कर रहे हैं। इस आंदोलन की जड़ें अगस्त 2019 में अनुच्छेद 370 के हटने से जुड़ी हैं, जब स्थानीय लोगों को बाहरी प्रभावों और विकास के खतरे का सामना करना पड़ा। जानें इस आंदोलन की मुख्य मांगें और युवा पीढ़ी की सक्रियता के बारे में।
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लद्दाख में युवा पीढ़ी का विरोध: राज्य का दर्जा और पर्यावरण सुरक्षा की मांग

लद्दाख में विरोध की लहर

लद्दाख, जो अपनी शांत और बर्फीली वादियों के लिए जाना जाता है, इन दिनों विरोध की लपटों में जल रहा है। इस आंदोलन का नेतृत्व सामाजिक कार्यकर्ता और शिक्षा सुधारक सोनम वांगचुक कर रहे हैं, जिसमें हजारों युवा, विशेषकर छात्राएं और छात्र, शामिल हैं। ये लोग लेह की सड़कों पर उतरकर केंद्र सरकार के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं। उनका मुख्य उद्देश्य लद्दाख को राज्य का दर्जा दिलाना, इसे संविधान की छठी अनुसूची में शामिल करना और नाजुक हिमालयी पर्यावरण की रक्षा करना है।


विरोध की यह चिंगारी क्यों भड़की? अगस्त 2019 में जब जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाया गया और लद्दाख को एक अलग केंद्र शासित प्रदेश बनाया गया, तो शुरुआत में इसे सकारात्मक रूप से लिया गया। लेकिन यह खुशी जल्दी ही चिंता में बदल गई। स्थानीय लोगों को डर है कि बाहरी प्रभाव और अनियंत्रित विकास उनकी संस्कृति, पहचान और पारिस्थितिकी को नुकसान पहुंचा सकता है।


प्रदर्शनकारियों की प्रमुख मांगें हैं: छठी अनुसूची में शामिल करना, जो आदिवासी क्षेत्रों को स्वायत्तता प्रदान करती है, एक अलग लोक सेवा आयोग (PSC) की स्थापना, ताकि लद्दाख के युवाओं को सरकारी नौकरियों में आरक्षण मिल सके, और लेह तथा कारगिल जिलों के लिए अलग-अलग संसदीय सीटों की मांग।


सोनम वांगचुक, जो इस आंदोलन के प्रतीक बन चुके हैं, सरकार पर वादाखिलाफी का आरोप लगा रहे हैं। वहीं, गृह मंत्रालय का कहना है कि वे लद्दाख के विकास के प्रति प्रतिबद्ध हैं, लेकिन छठी अनुसूची की मांग को संवैधानिक रूप से व्यवहार्य नहीं मानते। सरकार का तर्क है कि वे स्थानीय लोगों को सशक्त बनाने के लिए अन्य उपायों पर विचार कर रहे हैं, लेकिन प्रदर्शनकारी इसे "अड़ियल" रवैया मानते हैं।


इस बार के विरोध में युवा पीढ़ी की भागीदारी ने इसे नई ऊर्जा दी है। ये युवा सोशल मीडिया पर सक्रिय हैं, रचनात्मक नारों और पोस्टरों का उपयोग कर रहे हैं और शांतिपूर्ण तरीके से अपनी आवाज उठा रहे हैं। उनके लिए यह केवल एक राजनीतिक लड़ाई नहीं, बल्कि अपने अस्तित्व और अपनी भूमि की रक्षा की लड़ाई है।