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लोकतंत्र में असहमति का दमन: एक चिंताजनक संकेत

हाल ही में, 25 विपक्षी दलों के लगभग 300 सांसदों ने निर्वाचन आयोग के समक्ष अपनी शिकायतें रखने का प्रयास किया, लेकिन उन्हें रोका गया। यह कदम लोकतंत्र के लिए चिंताजनक है, क्योंकि यह दर्शाता है कि सत्ता पक्ष और निर्वाचन आयोग विपक्ष को एक वैध हितधारक नहीं मानते। इस लेख में जानें कि कैसे असहमति को दबाने का प्रयास भारतीय लोकतंत्र को प्रभावित कर रहा है और इसके संभावित परिणाम क्या हो सकते हैं।
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लोकतंत्र में असहमति का दमन: एक चिंताजनक संकेत

असहमति का दमन

असहमति को दबाना एक सकारात्मक संकेत नहीं है। इससे उन सांसदों में संदेह और बढ़ता है, जो निर्वाचन भवन तक अपनी बात पहुंचाना चाहते थे या संसद में बहस की मांग कर रहे थे।


यदि लगभग 300 सांसद, जो 25 विपक्षी दलों का प्रतिनिधित्व करते हैं, अपनी शिकायतें निर्वाचन आयोग के समक्ष रखना चाहते हैं, तो उन्हें रोकना किसी भी दृष्टिकोण से लोकतांत्रिक नहीं कहा जा सकता। यह ध्यान देने योग्य है कि ये सभी सांसद निर्वाचित हैं और देश के एक बड़े जनसमूह का प्रतिनिधित्व करते हैं। संसद भवन से शुरू हुआ यह मार्च किसी ऐसे समूह का नहीं था, जो अनियंत्रित हो सकता है या जिससे कानून-व्यवस्था की समस्या उत्पन्न हो सकती है। लेकिन केंद्र और निर्वाचन आयोग का दृष्टिकोण यह दर्शाता है कि वे विपक्ष को चुनाव प्रक्रिया में एक वैध हितधारक नहीं मानते। उनकी बातों या शिकायतों को सुनने योग्य भी नहीं समझा जाता। अन्यथा, बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण पर संसद में बहस की मांग को केंद्र ठुकराता नहीं और निर्वाचन आयोग एक निष्पक्ष संवैधानिक संस्था के रूप में व्यवहार करता।


सोमवार को निर्वाचन आयोग ने सांसदों के प्रतिनिधिमंडल से मिलने में तकनीकी रुख अपनाया, जबकि प्रशासन ने बैरिकेडिंग करके और सांसदों को हिरासत में लेकर एक दमनकारी दृष्टिकोण अपनाया। सवाल यह है कि यदि देश की राजधानी में निर्वाचित सांसदों को प्रदर्शन करने की अनुमति नहीं है, तो आम नागरिकों को क्या उम्मीद करनी चाहिए? स्पष्ट है कि असहमति के स्वर को दबाना भारतीय लोकतंत्र के लिए एक चिंताजनक संकेत है।


इससे उन सांसदों में संदेह और बढ़ता है, जो निर्वाचन भवन तक अपनी बात पहुंचाना चाहते थे या संसद में इस मुद्दे पर बहस की मांग कर रहे थे। सत्ता पक्ष और संवैधानिक संस्थाओं का यह कर्तव्य है कि वे ऐसे संदेहों को दूर करने के लिए विश्वसनीय कदम उठाएं। इसका आरंभ विपक्ष के साथ संवाद स्थापित करके किया जा सकता था, जो सोमवार को निर्वाचन आयोग के पास एक अवसर था। लेकिन विपक्षी प्रदर्शन के प्रति सख्त और हिकारत भरा रुख अपनाकर इस अवसर को गंवा दिया गया। यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है।