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वंदे मातरम: 150 वर्षों की यात्रा और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में इसकी भूमिका

वंदे मातरम, जो आजादी के आंदोलन का प्रतीक है, आज 150 वर्ष पूरे कर चुका है। बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय द्वारा रचित इस गीत ने भारतीय राष्ट्रवाद को नई दिशा दी। यह गीत न केवल स्वतंत्रता सेनानियों के लिए प्रेरणा का स्रोत रहा, बल्कि आज भी हर भारतीय के दिल में गर्व का संचार करता है। जानें इस गीत की उत्पत्ति, इसके महत्व और स्वतंत्रता संग्राम में इसकी भूमिका के बारे में।
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वंदे मातरम: 150 वर्षों की यात्रा और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में इसकी भूमिका

वंदे मातरम का 150वां वर्ष


नई दिल्ली: आज देशभक्ति से भरे राष्ट्रीय गीत वंदे मातरम की रचना को 150 वर्ष पूरे हो गए हैं। यह गीत पहली बार 7 नवंबर 1875 को बंगदर्शन पत्रिका में प्रकाशित हुआ था और यह स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन गया। मातृभूमि के प्रति गहरी भावना का प्रतीक, यह गीत आज भी हर भारतीय के दिल में गर्व का संचार करता है।


वंदे मातरम की उत्पत्ति

इस गीत की रचना बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय ने की थी, और इसे उनके उपन्यास आनंदमठ में शामिल किया गया। रवींद्रनाथ टैगोर ने इसे संगीतबद्ध कर इसे अमर बना दिया। वंदे मातरम की यात्रा एक साधारण कविता से राष्ट्रीय गीत बनने तक की प्रेरणादायक कहानी है।


वंदे मातरम का महत्व

1875 में बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय ने इसे लिखा और 1882 में आनंदमठ में शामिल किया। 1907 में अरविंदो ने इसे वंदे मातरम नामक अंग्रेजी दैनिक में इसके महत्व के बारे में बताया। इसी वर्ष, मैडम भीकाजी कामा ने विदेश में भारत का पहला तिरंगा फहराया, जिस पर वंदे मातरम लिखा था।


स्वतंत्रता संग्राम में वंदे मातरम की भूमिका


  • 1896 में कलकत्ता कांग्रेस अधिवेशन में रवींद्रनाथ टैगोर ने इसे गाया।


  • 7 अगस्त 1905 को बंगाल विभाजन के विरोध में इसे राजनीतिक नारे के रूप में गाया गया।


  • 1905 से 1907 के बीच, यह स्वदेशी आंदोलन का प्रमुख प्रतीक बन गया।


  • 1906 में बारीसाल के जुलूस में हिंदू-मुस्लिम समुदाय ने इसे एक साथ गाया।


  • 1907 में लाहौर और रावलपिंडी की रैलियों में भी यह गूंजता रहा।



ब्रिटिश शासन इस गीत से इतना भयभीत हुआ कि उसने इसे स्कूलों और कॉलेजों में गाने पर प्रतिबंध लगा दिया। रंगपुर में 200 छात्रों पर जुर्माना लगाया गया, जिसने लोगों के बीच क्रांति की भावना को और बढ़ावा दिया।


आनंदमठ और मातृभूमि की भक्ति

आनंदमठ की कहानी संन्यासी योद्धाओं के इर्द-गिर्द घूमती है, जो मातृभूमि को देवी मानते हैं। मातृभूमि की तीन मूर्तियां गुलामी, जागृति और समृद्धि भारतीय राष्ट्रवाद की आत्मा को दर्शाती हैं।


बंकिम चंद्र चटर्जी का योगदान

बंकिम चंद्र चटर्जी बंगाली साहित्य के महान लेखक थे। उनकी रचनाएं जैसे आनंदमठ, कपालकुंडला, और दुर्गेश नंदिनी ने न केवल साहित्य में क्रांति लाई, बल्कि भारतीय राष्ट्रवाद को भी नई दिशा दी।


वंदे मातरम का आजादी के प्रतीक के रूप में महत्व

1905 से 1907 के बीच, वंदे मातरम कोलकाता से लेकर लाहौर तक ब्रिटिश शासन के खिलाफ आवाज उठाने का प्रतीक बना। यह गीत विदेशी वस्त्रों के बहिष्कार और स्वदेशी आंदोलन का प्रतीक बन गया।


स्वतंत्र भारत में वंदे मातरम का स्थान

24 जनवरी 1950 को संविधान सभा ने वंदे मातरम को भारत के राष्ट्रीय गीत का दर्जा दिया। आज इसके 150 वर्ष पूरे होने पर केंद्र सरकार ने पूरे देश में समारोह आयोजित करने का निर्णय लिया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इन आयोजनों का शुभारंभ किया।


वंदे मातरम का अर्थ

वंदे मातरम का शाब्दिक अर्थ है 'मां, मैं आपकी वंदना करता हूं'। यह मातृभूमि के प्रति समर्पण और प्रेम की अभिव्यक्ति है।