वंदे मातरम्: आजादी का प्रतीक और विवाद का केंद्र
वंदे मातरम् का महत्व
नई दिल्ली: वंदे मातरम् आज भी देश की आत्मा और स्वतंत्रता संग्राम का प्रतीक माना जाता है, लेकिन इसके पीछे कई विवाद भी छिपे हुए हैं। 1937 से शुरू हुआ यह विवाद समय के साथ राजनीतिक, सामाजिक और धार्मिक मुद्दा बन गया है, जिससे आज भी बहस जारी है.
वंदे मातरम् का इतिहास
यह गीत 7 नवंबर 1875 को बंकिम चंद्र चटर्जी द्वारा अक्षय नवमी पर लिखा गया था। इसे बाद में उनके उपन्यास 'आनंद मठ' में शामिल किया गया। 1896 में कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में रवींद्रनाथ टैगोर ने इसे गाया, जो इसकी पहली सार्वजनिक प्रस्तुति थी। इसके बाद यह गीत स्वतंत्रता आंदोलन का एक महत्वपूर्ण नारा बन गया.
विवाद की शुरुआत
विवाद की शुरुआत 1905 में बंगाल विभाजन आंदोलन से हुई, जब वंदे मातरम् को आंदोलन का मुख्य नारा बनाया गया। मुस्लिम लीग ने इसमें 'दुर्गा' और 'मंदिर' जैसे शब्दों पर आपत्ति जताई, यह कहते हुए कि यह गीत उन्हें हिंदू धार्मिक प्रतीकों को मानने के लिए मजबूर करता है. 1923 में कांग्रेस के अधिवेशन में वंदे मातरम् गाए जाने पर अध्यक्ष मोहम्मद अली जौहर ने विरोध किया.
समाधान की कोशिशें
विवाद बढ़ने पर सुभाष चंद्र बोस, मौलाना आजाद और आचार्य नरेंद्र देव की एक समिति बनाई गई। समिति ने सुझाव दिया कि विवादित हिस्से न गाए जाएं और केवल वे दो छंद गाए जाएं जिनमें धार्मिक प्रतीक नहीं हैं। महात्मा गांधी ने इस प्रस्ताव का समर्थन किया, जिसका उद्देश्य हिंदू-मुस्लिम एकता को बनाए रखना था.
1937 का निर्णय
1937 में फैजपुर में कांग्रेस अधिवेशन में यह निर्णय लिया गया कि वंदे मातरम् के केवल पहले दो छंद गाए जाएंगे। यह निर्णय बाद में स्थायी रूप से मान्यता प्राप्त कर गया। 24 जनवरी 1950 को इसे राष्ट्रगीत घोषित किया गया, जिसमें दो छंदों तक सीमित रखने का निर्णय लिया गया.
राष्ट्रगान का मुद्दा
हालांकि वंदे मातरम् की लोकप्रियता बहुत थी, लेकिन इसे राष्ट्रगान बनाने में मुसलमानों का विरोध सबसे बड़ी बाधा बना। मौलाना अबुल कलाम आजाद का मानना था कि धार्मिक प्रतीकों के कारण यह राष्ट्रगान नहीं बन सकता। इसके विपरीत, तिलक और अरविंदो घोष इसे राष्ट्रगान बनाने के पक्ष में थे, लेकिन धार्मिक विभाजन के खतरे को देखते हुए 'जन गण मन' को राष्ट्रगान और वंदे मातरम् को राष्ट्रगीत का दर्जा दिया गया.
वंदे मातरम् का अर्थ
वंदे मातरम् का अर्थ है- 'मां, मैं तुम्हें प्रणाम करता हूं।' गीत के पहले दो छंद भारत माता की प्रकृति और सौंदर्य को समर्पित हैं. 'सुजलाम् सुफलाम्, मलयज शीतलाम्' का अर्थ है- जल से भरा, फलों से समृद्ध और ठंडी हवा से भरा राष्ट्र. इन दो छंदों में किसी धार्मिक प्रतीक का उल्लेख नहीं है, इसलिए इन्हें गाने की परंपरा बनाई गई.
वर्तमान में विवाद
हाल ही में यूपी में स्कूलों में वंदे मातरम् का गायन अनिवार्य होने के बाद मुस्लिम संगठनों ने विरोध जताया। प्रधानमंत्री मोदी ने 7 नवंबर 2025 को इसके 150 साल पूरे होने पर हुए विवाद का उल्लेख किया, जिसके बाद संसद में इस विषय पर चर्चा हुई। यह दर्शाता है कि वंदे मातरम् आज भी राष्ट्रीय पहचान का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, लेकिन इसके ऐतिहासिक विवाद को समझना भी आवश्यक है.
