Newzfatafatlogo

वंदे मातरम् का विरोध: एक भ्रामक धारणा का विश्लेषण

इस लेख में 'वंदे मातरम्' के विरोध के पीछे के भ्रामक तर्कों का विश्लेषण किया गया है। यह बताया गया है कि कैसे कुछ मुस्लिम समूह इस गीत को 'गैर-इस्लामी' मानते हैं, जबकि इसका असली कारण भारतीय संस्कृति के प्रति द्वेष है। लेख में स्वतंत्रता आंदोलन के संदर्भ में 'वंदे मातरम्' के महत्व और कांग्रेस के विकास पर भी चर्चा की गई है। क्या विभाजन के बाद मुस्लिम समुदाय का दृष्टिकोण बदल गया? जानें इस लेख में।
 | 
वंदे मातरम् का विरोध: एक भ्रामक धारणा का विश्लेषण

वंदे मातरम् का विरोध और इसके पीछे के कारण

भारतीय उपमहाद्वीप में कुछ मुस्लिम समूह जो 'वंदे मातरम्' के खिलाफ मजहबी तर्क प्रस्तुत करते हैं, वह वास्तव में भ्रामक और गलत है। इस क्षेत्र में मुसलमानों का एक बड़ा हिस्सा पाकिस्तान को इस्लामी पहचान का प्रतीक मानता है, लेकिन पाकिस्तान न तो इस्लाम का रक्षक है और न ही 'उम्माह' के प्रति वफादार।


विरोध का असली कारण

भारत के राष्ट्रीय गीत 'वंदे मातरम्' के खिलाफ उठाए गए सवालों का मुख्य कारण तथाकथित 'सेकुलर' समूह है, जिसमें वामपंथी, उदारवादी और कुछ मुस्लिम नेता शामिल हैं। उनका कहना है कि यह गीत 'गैर-इस्लामी' है। लेकिन असल में, इस आपत्ति की जड़ें इस्लामी विचारधाराओं से ज्यादा भारतीय उपमहाद्वीप के मुस्लिम अभिजात वर्ग में व्याप्त सनातन सभ्यता के प्रति द्वेष में हैं।


वंदे मातरम् का ऐतिहासिक संदर्भ

'वंदे मातरम्' बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय द्वारा रचित एक गीत है, जिसे 1875 में स्वतंत्र कविता के रूप में लिखा गया था और 1882 में 'आनंदमठ' उपन्यास में शामिल किया गया। यह गीत 1773 के 'संन्यासी विद्रोह' पर आधारित है, जो ब्रिटिश शासन और उस समय की इस्लामी व्यवस्था के खिलाफ था। बीसवीं सदी की शुरुआत से यह गीत स्वतंत्रता आंदोलन का एक महत्वपूर्ण प्रतीक बन गया।


कांग्रेस का परिवर्तन

कांग्रेस का गठन 1885 में हुआ था, जिसका उद्देश्य ब्रिटिश शासन की स्थिरता को बनाए रखना था। लेकिन एक पीढ़ी के भीतर, विशेषकर गांधीजी के नेतृत्व में, यह दल जन-आधारित राष्ट्रवाद का प्रतीक बन गया। क्या केवल इसलिए कांग्रेस को खारिज किया जा सकता है कि इसकी स्थापना एक अंग्रेज ने की थी? यदि नहीं, तो फिर 'वंदे मातरम्' का विरोध उसके साहित्यिक संदर्भ के नाम पर कैसे सही ठहराया जा सकता है?


विभाजन के बाद का परिदृश्य

क्या विभाजन के बाद भारत में बसे मुस्लिम समुदाय का दृष्टिकोण बदल गया? यह कहा जाता है कि वर्तमान भारतीय मुसलमानों ने 'दो-राष्ट्र सिद्धांत' को ठुकराया है। लेकिन फिर भी, 'वंदे मातरम्' आज भी कुछ मुस्लिम समूहों को क्यों खटकता है? यह सच है कि पाकिस्तान की मांग उस समय बिहार, उत्तर प्रदेश और बंगाल के मुस्लिम अभिजात वर्ग ने की थी, लेकिन उनमें से अधिकांश पाकिस्तान नहीं गए।


पाकिस्तान का दोहरा चरित्र

पाकिस्तान और उससे सहानुभूति रखने वाले वर्ग का दोहरा चरित्र स्पष्ट है। वे अमेरिका-इजराइल के साथ खड़े होते हैं और ईरान पर हमले में भागीदार बनते हैं। यह विडंबना है कि जो मुस्लिम समूह 'भारत माता' को नमन करने वाले 'वंदे मातरम्' का विरोध करते हैं, वही मंदिर तोड़ने वाले आक्रांताओं का महिमामंडन करते हैं।


निष्कर्ष

इसलिए, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह का यह कहना कि 1937 में कांग्रेस ने विभाजन के बीज बोए, कोई राजनीतिक बयान नहीं, बल्कि ऐतिहासिक तथ्य है।