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वर्षा ऋतु में पशुधन की देखभाल: स्वस्थ मवेशियों के लिए आवश्यक टिप्स

वर्षा ऋतु में पशुधन की देखभाल करना किसानों के लिए एक चुनौती हो सकता है। गीले शेड, कीचड़, और परजीवियों का खतरा मवेशियों की सेहत को प्रभावित कर सकता है। इस लेख में, हम आपको बताएंगे कि कैसे आप अपने मवेशियों को स्वस्थ रख सकते हैं, उनके पोषण का ध्यान रख सकते हैं, और बीमारियों से बचा सकते हैं। जानें कुछ सरल और प्रभावी उपाय जो आपकी आय को सुरक्षित रखने में मदद करेंगे।
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वर्षा ऋतु में पशुधन की देखभाल: स्वस्थ मवेशियों के लिए आवश्यक टिप्स

वर्षा ऋतु में पशुधन की देखभाल: मवेशियों को स्वस्थ रखें

जब वर्षा ऋतु की बात आती है, तो किसान भाइयों का ध्यान तुरंत पशुधन की देखभाल पर जाता है। बारिश का मौसम खेतों में हरियाली लाता है, लेकिन यह मवेशियों के लिए कई चुनौतियाँ भी लेकर आता है। गीले शेड, कीचड़, परजीवियों का खतरा, और चारे की कमी ये सभी पशुओं की सेहत और किसानों की आय पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकते हैं। लेकिन चिंता करने की आवश्यकता नहीं है! उचित देखभाल और वैज्ञानिक तरीकों से आप अपने मवेशियों को स्वस्थ रख सकते हैं। आइए जानते हैं कि इस बारिश में अपने पशुओं को बीमारियों से कैसे बचाएं और उनकी उत्पादकता कैसे बढ़ाएं।


शेड को सूखा रखें

बारिश के दौरान पशु शेड का गीला होना सबसे बड़ी समस्या है। छत से रिसता पानी और गीला फर्श न केवल पशुओं को बीमार करता है, बल्कि अमोनिया जैसी गैसों से उनकी आंखों में जलन भी पैदा कर सकता है। गीले फर्श पर गंदगी जमा होने से कॉक्सीडियॉसिस और खुर सड़ने जैसी बीमारियाँ उत्पन्न होती हैं। इसे रोकने के लिए शेड की छत को वाटरप्रूफ करें और फर्श को ढलान वाला तथा एंटी-स्लिप बनाएं। सूखे पुआल या जूट की बोरियों का उपयोग करें ताकि पशु ठंडी और गीली जमीन से बचे रहें।


चारे और पोषण का ध्यान रखें

वर्षा में हरा चारा प्रचुर मात्रा में मिलता है, लेकिन उसकी नमी पोषण को कम कर देती है। गीला चारा बिना सुखाए देने से पशुओं को दस्त या पोषक तत्वों की कमी हो सकती है। फफूंद लगे चारे से मायकोटॉक्सिन का खतरा भी होता है। इसलिए हरे चारे को धूप में सुखाएं और सूखे चारे के साथ मिलाकर दें। फीड ब्लॉक या यूरिया मोलासेस मिनरल ब्लॉक का उपयोग करें। साफ और गुनगुना पानी पिलाना भी आवश्यक है ताकि पशु दस्त और सर्दी से बचे रहें।


परजीवियों और बीमारियों से बचाव

बारिश के मौसम में परजीवियों और बैक्टीरिया का खतरा बढ़ जाता है। फीताकृमि जैसे आंतरिक परजीवी हरे चारे के साथ पशुओं में प्रवेश कर सकते हैं, जबकि मक्खियां और जूं जानलेवा बीमारियाँ फैला सकती हैं। इसे रोकने के लिए मौसम की शुरुआत, मध्य, और अंत में कृमिनाशन करें। कीटनाशक का छिड़काव भी आवश्यक है। दूध देने वाले पशुओं में थनैला (थन की सूजन) का खतरा होता है, इसलिए शेड की सफाई और थनों की नियमित जांच करें। बछड़ों और बकरियों को PPR, एंटरोटॉक्सिमिया, और खुर सड़न से बचाने के लिए टीकाकरण करवाना न भूलें।


बछड़ों और बकरियों की विशेष देखभाल

वर्षा ऋतु में बछड़े और बकरियाँ सबसे अधिक संवेदनशील होते हैं। बछड़ों को बारिश में बाहर नहीं निकालें और उन्हें गर्म बिछावन और अधिक दूध दें। तीन महीने से बड़े बछड़ों को कृमिनाशक और छह महीने से ऊपर वालों को ब्लैक क्वार्टर और हेमरेजिक सेप्टिसीमिया का टीका लगवाएं। बकरियों के खुरों को हफ्ते में दो बार चूने या पोटाश के पानी से साफ करें। इन सरल उपायों से आप अपने पशुओं को स्वस्थ और उत्पादक रख सकते हैं।