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वामन और कल्कि द्वादशी: धार्मिक महत्व और विशेष पूजा विधि

इस लेख में भाद्रपद माह की द्वादशी तिथि पर वामन जयंती और कल्कि द्वादशी के महत्व को समझाया गया है। जानें कैसे भगवान विष्णु के अवतारों की पूजा की जाती है और इनकी पौराणिक कथाएँ क्या हैं। यह दिन विशेष पूजा विधियों के साथ मनाया जाता है, जो धार्मिक आस्था को और भी मजबूत बनाता है।
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वामन और कल्कि द्वादशी: धार्मिक महत्व और विशेष पूजा विधि

वामन जयंती और कल्कि द्वादशी का महत्व

नई दिल्ली: भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि, जो गुरुवार को है, को वामन जयंती और कल्कि द्वादशी दोनों मनाई जाती हैं। इस दिन सूर्य सिंह राशि में और चंद्रमा मकर राशि में स्थित रहेगा। दृक पंचांग के अनुसार, अभिजीत मुहूर्त सुबह 11:55 बजे से 12:45 बजे तक रहेगा, जबकि राहुकाल का समय दोपहर 1:55 बजे से 3:29 बजे तक होगा।


धार्मिक ग्रंथों में इस दिन भगवान वामन की विशेष पूजा का विधान बताया गया है। वामन भगवान विष्णु के दस अवतारों में से एक हैं। विष्णु पुराण के अनुसार, वामन देव का जन्म भाद्रपद माह की शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को अभिजीत मुहूर्त में माता अदिती और ऋषि कश्यप के पुत्र के रूप में हुआ था।


त्रेता युग में भगवान विष्णु ने इंद्र देव के अधिकार को पुनः स्थापित करने के लिए वामन अवतार लिया। पौराणिक कथा के अनुसार, असुर राजा बलि ने अपनी तपस्या से तीनों लोकों पर अधिकार कर लिया था, जिससे देवता परेशान थे। देवताओं ने भगवान विष्णु से सहायता मांगी।


भगवान विष्णु ने एक छोटे ब्राह्मण बालक का रूप धारण किया और राजा बलि से तीन पग भूमि मांगी। जब बलि ने दान दिया, तो वामन ने अपना आकार बढ़ाकर दो पगों में पृथ्वी और स्वर्ग नाप लिए। तीसरे पग के लिए जगह न मिलने पर, बलि ने अपना सिर झुकाया, और वामन ने उनके सिर पर तीसरा पग रखकर उन्हें पाताल लोक भेज दिया। बलि की दानवीरता से प्रसन्न होकर भगवान ने उन्हें पाताल लोक का स्वामी बना दिया।


इसके साथ ही, इस दिन कल्कि महोत्सव भी मनाया जाता है, जो भगवान विष्णु के दसवें और अंतिम अवतार, भगवान कल्कि के अवतरण को समर्पित है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, कलयुग के अंत में सावन माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को भगवान कल्कि का जन्म होगा।


श्रीमद्भागवत पुराण के अनुसार, जब गुरु, सूर्य और चंद्रमा पुष्य नक्षत्र में एक साथ आएंगे, तब भगवान कल्कि का जन्म होगा। कल्कि पुराण में भगवान कल्कि का जन्म उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद के एक गांव में होगा। अग्नि पुराण में भगवान कल्कि को देवदत्त नामक घोड़े पर सवार और हाथ में तलवार लिए हुए दर्शाया गया है, जो दुष्टों का संहार करके सतयुग की शुरुआत करेंगे।


भगवान कल्कि तब अवतरित होंगे जब अधर्म और पाप अपने चरम पर होगा। उनका उद्देश्य पृथ्वी से पापियों का नाश करना और धर्म की पुनर्स्थापना करना होगा। भगवान विष्णु के कल्कि अवतार की पूजा उनके जन्म से पहले से की जा रही है।